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Showing posts from August, 2011

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हमारे महात्मा ऐसे भी थे

गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में जिस तरह चैंकाने वाले सच को स्वीकारा है वह उनके जैसे महात्मा के लिये ही संभव था । गांधी ने स्वीकारा कि वे पत्नी पर निगरानी रखते थे । नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं के कारण वे मानते थे कि व्यक्ति को एकपत्नी-व्रत का पालन करना चाहिये , ..... फिर तो पत्नी को भी एकपति-व्रत का पालन करना चाहिये । यदि ऐसा है तो , मैंने सोचा कि मुझे पत्नी पर निगरानी रखना चाहिये । गांधीजी ने निडरता की बात कहीं हैं किन्तु वे डरपोक बहुत थे । वे कहते हैं - ‘‘ मैं चोर , भूत और सांप से डरता था । रात कभी अकेले जाने की हिम्मत नहीं होती थी । दिया यानी प्रकाश के बिना सोना लगभग असंभव था । सत्य, अहिंसा और शकाहार के समर्थक बापू ने कई बार मांसाहार किया था । ‘‘ ..... मित्रों द्वारा डाक बंगले में इंतजाम होता था । .... वहां मेज-कुर्सी वगैरह के प्रलोभन भी था । .... धीरे धीरे डबल रोटी से नफरत कम हुई ,बकरे के प्रति दया भाव छूटा और मांस वाले पदार्थो में स्वाद आने लगा । ...... एक साल में पांच-छः बार मांस खाने को मिला । ... जिस दिन मांस खा कर आता ... माताजी भोजन के लिये बुलातीं तो उन्ह

बॉस

एक दिन एक व्यक्ति तोता खरीदने निकला। एक पेट शॉप पर पहुंच कर उसने तोता दिखाने को बोला। दुकानदार ने व्यक्ति को तीन तोते दिखाए। और बताया तीनों की कीमत व खासियत बताई। पहला तोता: इसकी खासियत है कि यह कम्प्यूटर चला लेता है और इसकी कीमत 500 रुपए है। दूसरा तोता: इसकी कीमत 1000 रुपए है और खासियत यह है कि कम्प्यूटर के साथ ही यह नाचता है,गाता है और दूसरे सारे बड़े काम कर लेता है। तीसरा तोता: यह दोनों से थोड़ा ज्यादा महंगा है। इसकी कीमत 2000 है। दुकानदार ने जब तीसरे तोते की कोई खासियत नहीं बताई तो व्यक्ति ने कहा यह तोता इतना महंगा क्यों है जबकी इसकी तो कोई खासियत भी नहीं है। इस पर दुकानदार बोला साहब पता नहीं यह तोता कुछ नहीं करता फिर भी यह दोनों तोते इसे बॉस कहते हैं। बस इसी लिए इसकी कीमत ज्यादा है।

सावधान अन्ना हजारे

अन्ना हजारे के साथ जनता के होने के कई मायने हो सकते हैं लेकिन राजनेताओं के होने का केवल एक ही मतलब है, वह है कांग्रेस को धकियाकर सत्ता पर काबिज होना। भ्रष्टाचार की खिलाफत तो एक जरिया मात्र है। अन्ना व जनता को सतर्क रहकर इस आंदोलन को बरकरार रखना होगा। जनता को खुद के प्रति ईमानदार रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी होगी। घूस बेना व देना बंद करना होगा, भले ही इसके लिए तकलीफ उठानी पड़े।