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Showing posts from 2012

भड़काऊ भड़ास पर अंकुश

मन में जो आए बक दें और दिल में जो आए कलमबंद कर दें, भले ही उससे किसी की इज्जत का भTा बैठ जाए। यदि इतनी छूट किसी भी आदमजात को दे दी जाए तो वह क्या-क्या कर सकता है? इसकी छोटी सी मिसाल सोशल नेटवîकग साइट्स पर देखने को मिल जाती है। किसी के धड़ में आपका सिर या आपके नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ देना तो बच्चों के खेल से भी आसान व सहज हो गया है। कई बार तो अर्द्ध नंगे बदन में आपकी काया भी इन साइट्स पर दिख सकती है, बशर्ते आप मशहूरियत की बिरादरी के सदस्य हों। जब तक बात हंसी-मजाक तक थी तब तक तो सबको मजा आ रहा था लेकिन अब यह नाक का फोड़ा हो गया है। जब इस आग की लपट पार्टी के आला नेताओं को अपनी लपेट में लेने लगी तो सरकार की नींद खुली। लाजिमी है कि तीखा हमला सरकारी पक्ष पर ही होता है। विपक्ष अभी चटखारे भरकर मजे ले रहा है, लेकिन कल इनकी भी बारी आ सकती है। बात सत्ता पक्ष या विपक्ष के चरित्र हनन की नहीं है। इस तरह की हरकत पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है। हमारे महापुरुषों व देवी-देवताओं के चित्र के साथ भी अतीत में खिलवाड़ होता रहा है, जो किसी भी सूरत में सहन नहीं की जा सकती। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम

आजादी की लड़ाई और मीडिया का तोप

आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने के लिए मीडिया रूपी तोप का सहारा लिया जा रहा है। तोप के गोले की जगह महत्वपूर्ण लोगों के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोपों की झड़ी लगाई जा रही है, जिसे मीडिया का भरपूर समर्थन मिल रहा है। मीडिया का भरोसा करने वाले समाजसुधारकों को यह भान होना चाहिए, कि वर्तमान समय में मीडिया भी बंटा हुआ है। कब कौन मीडिया किसके पक्ष में होगा, यह समय के अनुसार तय किया जाता है, जिसका कोई तय फार्मुला नहीं होता। अब आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू करने की घोषणा की जा रही है। ऐसा लगता है कि इस बार भी मीडिया के सहारे ही जग जीतने की योजना है। देश में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की संख्या में हुई भारी वृद्धि का लाभ आजकल सरकार विरोधी मुहिम को आसानी से मिल जाता है। इसका लाभ अन्ना हजारे व उनकी टीम को भी मिला। सरकार के विरोध में जब विपक्ष की धार कमजोर हो गई थी तो भष्टाचार के मुद्दे पर टीम अन्ना को मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। टीआरपी वृद्धि के लिए मीडिया ने उस आन्दोलन को मसालेदार बनाकर परोसा। जनता को भाया भी। इसका श्रेय किसे मिला इस पर चर्चा नहीं भी की जाए, तो सभी जानते हैं कि कौन इस आन्दोलन का हीरो बनकर उभरा

मलाई काटने वालों पर नकेल : समय की मांग

सरकार जब अपनी हो तो मलाई काटने की मंशा रखने वालों की फौज तैयार हो जाती है। पश्चिम बंगाल मंे तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस गठबंधन की सरकार के गठन के बाद इस तरह की गतिविधियों में तेजी आना लाजिमी है। इन दोनों ही पार्टियों में नेताओं और कार्यकर्ताओं में रेवड़ी बटोरने की होड़ लग गई है। कई जगह इसे लेकर भयानक मारा-मारी भी मची हुई है। कोलकाता से सटे के ष्टोपुर में तृणमूल कांग्रेस के अंदरुनी घमासान की परिणति ने एक युवा नेता की जान ले ली। इसकी मौत को पहले तो राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई। माकपाइयों पर इस हत्या का आरोप मढ़ने की कोशिश की गई। भारी हाय तौबा के बीच सत्ताधारी पार्टी के दबाव में आकर पुलिस ने भी आनन-फानन कार्रवाई करते हुए सच्चाई की तह तक पहुंचने मंे सफलता अर्जित की। जब बात उजागर हुई तो शीर्ष नेताओं की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई। मीडिया में जब यह खबर प्रकाशित हुई तो लीपा-पोती की कोशिश शुरू हो गई। बाध्य होकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। शीर्ष नेताओं के कान उमेठने की प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इसके पीछे असली वजह कमाई में हिस्सेदारी पर हुआ बवाल माना जा रहा है। जबक

क्षमा शोभती उस भुजंग को . .

प्रभुता पाई काहि मद नाही। यदि आप शक्तिशाली हैं और घमंडी भी हैं तो इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं। हमारे ही कवि दिनकर की यह पंक्ति भी मशहूर है कि क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन विनीत सरल हो। चीन में विनम्रता व क्षमा की कल्पना करना शायद अति-आशावादी कल्पना होगी। चीन को शायद यह गुमान हो गया है कि वह किसी भी राष्ट्र को अपनी बातें मानने के लिए विवश कर सकता है। कई देश चीन की बातें मान भी सकते हैं, क्योंकि आजकल सारी नीति व रणनीति बाजार को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन एक बहुत बड़ा बाजार है। लेकिन भारतीय बाजार का आकार भी किसी मायने में कम नहीं है। तिब्बतियों के अध्यात्मिक गुरु दलाई लामा की सभा में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन के शामिल होने को लेकर चीन की चिंता नाजायज ही नहीं बल्कि भारतीय परम्परा के विपरीत भी है। चीन के वाणिज्य दूतावास ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि इस राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल एम के नारायणन, दलाई लामा के साथ मंच साझा न करें। नारायणन ने हालांकि इसकी

गरीबों की चिंता में दुबले राजनेता

गरीबों की रोटी छीनने की कोशिश करने वालों की ईंट से ईंट बजाने के लिए राजनेता सदा तत्पर रहते हैं। विशेषरूप से उत्तर प्रदेश में हर मुद्दे पर घमासान मचना तय है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति पर भी हंगामा शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने ब्रांडेड खुदरा निवेश में 51 फीसदी से 1०० फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)की अनुमति दिए जाने पर वॉलमार्ट में आग लगाने की घोषणा की है। यह आग उत्तर प्रदेश में लगाई जाएगी। जाहिर सी बात है उत्तर प्रदेश पर सबकी नजरे-इनायत हो रही है। आखिर वहां विधानसभा चुनाव जो होने हैं। फायर ब्रांड लीडर ने घोषणा की है कि उत्तर प्रदेश में वॉलमार्ट का एक भी स्टोर खुला तो वह अपने हाथों से उसमें आग लगा देंगी। अब ध्यान देने योग्य बात है कि केवल वॉलमार्ट ही निशाने पर क्यों? इससे तो उसका भारी विज्ञापन हो गया है। उत्तर प्रदेश के अधिकांश लोग तो वॉलमार्ट का नाम तक नहीं जानते थे, उमा जी के ऐलान से इनके बीच चर्चा होने लगी है कि 'भई ई वालमारट का जिनिस हौ, जरूरे कवनो बढिèया चीज होई तबै उमा भारती नियर नेता ओहकर नाम रटत रहली।’

कोलगेट का कोलकाता कनेक्शन

कोलगेट का कोलकाता कनेक्शन लोकनाथ तिवारी कोलकाता। कोयला खदानों से जुड़ी अच्छी या बुरी किसी तरह की घटनाओं का सम्बन्ध कोलकाता से होना स्वाभाविक है। विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का मुख्यालय कोलकाता में ही है। अत: कोयला मंत्री का कोलकाता आगमन स्वाभाविक है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की बेटी की शादी न्यूअलीपुर में हुई है। पूर्व कोयला मंत्री संतोष बागड़ोदिया का भी कोलकाता से गहरा सम्बंध रहा है। उनका मकान भी न्यूअलीपुर में है तथा उनका जमाजमाया कारोबार भी कोलकाता में है। कोयला आवंटन विवाद में सीबीआई ने जिन पांच कंपनियों पर छापे मारे, उनमें से कई का संबंध नागपुर के मनोज जायसवाल के अभिजीत ग्रुप से है। श्रीप्रकाश जायसवाल व मनोज का परिवार कानपुर से हैं, और दोनों की ही रिश्तेदारी कोलकाता में हैं। मनोज की ससुराल कोलकाता में है तो मंत्री की बेटी की शादी कोलकाता में हुई है। सूत्रोें के अनुसार नागपुर के अभिजीत ग्रुप की कई कंपनियां बिजली, सड़कें, माइनिग, स्टील, सीमेंट और टोल कलेक्शन में काम करती हैं। मनोज तीन दशकों तक पिता की कंपनी में अपनी सेवाएं देते रहें लेकिन

जिन्दगी- मौत न बन जाए सम्हालो यारो

जिन्दगी- मौत न बन जाए सम्हालो यारो · ममता के जुझारूपन से लें सबक लोकनाथ तिवारी कोलकाता। दक्षिण कोलकाता के प्रिंस अनवर शाह रोड स्थित साउथ सिटी कॉम्प्लेक्स के पैंतीस मंजिले टॉवर से कूदकर जान देने वाली माँ व दो बेटियों में से एक कSर पर्यावरण प्रेमी थी। पेड़ों की टहनियों को नुकसान पहुंँचने पर हाय तौबा मचाने वाली युवती ने अपनी जीवन लीला समा’ कर ली। आर्थिक तौर पर मजबूत इन मा-बेटियों की आत्महत्या ने एक बार फिर चुलबुली हीरोइन दिव्या भारती, पूर्व मिस इंडिया और अभिनेत्री नफीसा जोसेफ, आइटम गर्ल सिल्क स्मिता, हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन की पूर्व पत्नी फिजा उर्फ अनुराधा बाली और गीतिका शर्मा सरीखी महिलाओं की याद दिला दी। इनकी मौत ने यह साबित कर दिया है कि रंग-बिरंगी और बेवाक जिदगी जीने के बावजूद मानसिक संतुष्टि नहीं होने से अपना ही जीवन बोझ लगने लगता है। पैसा, शोहरत और आलीशान जीवन जीने वालों की शान ऐसी होती है कि ये बदहाली व गम को अपनी राह बदलने पर मजबूर कर दें। पर अचानक काल के गाल में खुद को धकेलने वाली इन शोहरतमंद महिलाओं की परिणति देखकर अनायास ही यह सवाल उठ खड़ा होता है कि इनके

यौन कारोबार में हाई प्रोफाइल हुए दलाल

यौन कारोबार में हाई प्रोफाइल हुए दलाल लोकनाथ तिवारी कोलकाता। यौन कारोबार के दलाल हाई प्रोफाइल हो गये हैं। बाकायदा कार्यालय खोलकर अपने क्लायंट की मुंहमांगी मुरादें पूरी करते हैं। ग्राहक की पुलिस से सुरक्षा व पूर्ण संतुष्टि का भी पूरा ख्याल रखा जाता है ताकि क्लायंट स्थायी ग्राहक बना रहे। कॉलगल्र्स और दलालों का नेटवर्क दो स्तरों पर है। एक अत्यंत हाईप्रोफाइल है जिसमें फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली और आधुनिक वेशभूषा वाली हाई फाई कॉलगर्ल हैं तो दूसरा नेटवर्क महाराष्ट्र, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, नेपाल और भूटान से लाई गई बेबस लड़कियों का है। ग्राहक की मांग के अनुसार ही कॉलगर्ल उपलब्ध कराई जाती है। सेक्स के इस कारोबार में नये ग्राहक को प्रवेश बहुत मुश्किल से मिलता है। पकड़े जाने के डर से केवल पुराने व नियमित ग्राहकों को ही प्राथमिकता दी जाती है। ग्राहक को एक निश्चित स्थान पर कॉलगर्ल की डिलीवरी कार के माध्यम से कर दी जाती है। वहां से ग्राहक अपने वाहन से उसको मनचाहे स्थान पर ले जाता है। कोलकाता पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार विश्वसनीयता इस धंधे का प्रमुख हिस्सा है। कॉलगर्ल सीधी ड

भड़काऊ पहनावा या कमजोर चरित्र

हर वह स्त्री वेश्या नहीं होती और ना ही हो सकती है, जो अपनी पसंद के कपड़े पहने। सवाल यह भी है कि उकसाने वाले कपड़े अगर पहने भी है तो पुरुष की अपनी नैतिकता कौन तय करेगा? पुरुष का चरित्र इतना दुर्बल क्यों हैं कि पहनावे या नारी काया को देखते ही पतनोन्मुख हो जाता है? नैतिकता और गरिमा की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के ही सिर पर क्यों? अगर कोई लड़की सुंदर व आकर्षक लग रही है तो इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि वह यौन आमंत्रण दे रही है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि पुरुष अपने पर काबू ही ना रख पाए और उस पर टूट पड़े तथा बाद में इसका दोष लड़की के कपड़ों पर मढ़ दे? हमारे देश के दक्षिणी भाग में स्थित एक बड़े राज्य के पुलिस विभाग के मुखिया ने अपने सुविचार व्यक्त करते समय महिलाओं के पोशाक व पहनावे को निशाना बनाया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि केन्द्गीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस बयान का विरोध करते हुए कहा है कि हर नागरिक को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है। पहनावा अवसर के हिसाब से होना चाहिए। जाहिर है कि आप जब फुटबॉल या टेनिस खेलने जाते हैं तो ऊपर से नीचे तक कपड़ों में लिपटकर नहीं जा सकते। वहीं किसी कॉ

गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में

'वैलेंटाइन डे’ का मौसम शुरू हो गया है। कुछ देकर दिल लेने या देने की परंपरा हमारे देश में कहाँ से आई, इसका कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं मिल पाया है। 'रोज डे’, 'प्रपोज डे’, 'चॉकलेट डे’, टेडी बीयर डे, 'हग डे’ और 'किस डे’ के बाद वैलेंटाइन डे का बहुप्रतीक्षित दिवस आता है। इन दिनों को माध्यम बनाकर प्रेमी युगल एक दूसरे के प्रति अपने दिल की भावनाओं को उजागर करते हैं। हाँ, इसके पहले कुछ न कुछ देकर अपनी सुरक्षा पुख़्ता करने की कोशिश जरूर की जाती है। स्वयंभू प्रेमगुरुओं का मानना है कि पहले किसी के समक्ष प्रेम का इजहार करना खतरे से खाली नहीं होता था। पता नहीं कब लेने के देने पड़ जाए। कुछ देकर खुश करने के बाद अपने दिल की भावनाओं को जुबान देने में कम खतरा होता है। पहले तो चिTियों के माध्यम से दिल की बात कही जाती थी, जिसमें बहुत खतरा भी होता था। खत के साथ गुलाब या गेंदे का फूल भी होता था। साथ में यह करबद्ध अनुनय विनय भी होती थी कि इसे अपने भाई, पिता या काका के हाथ में नहीं पड़ने दें। भले ही प्रेम प्रस्ताव ठुकराकर राखी बाँधने की नौबत आ जाए, प्रेम के इजहार में अच्छे-अच्छों की घिग्

टुकड़े-टुकड़े मेंं बंटती जिन्दगी

बांटो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) की नीति अंग्रेजों ने यूं ही नहीं अपनाई थी। यह तो मानव जाति के डीएनए में बसी हुई है। पूरी मानव जाति से हम भारतीय भी शामिल हैं। हमारी फितरत में तो सदैव बटवारे का भूत सवार रहता है। जब हम पृथ्वी से बाहर होते हैं तो हमें दूसरे ग्रहों की तुलना में अपनी धरती सुंदर लगती है। धरती पर हमें एशिया महाद्बीप खूबसूरत लगता है। यहां तक कि विश्व कप फुटबाल या हॉकी प्रतियोगिताओं में हमारी टीम नहीं होने पर हम एशियाई समर्थक बन जाते हैं। विदेश यानि पश्चिमी महादेशों में होने पर एशियाई होने की भावना, एशिया में आते ही दक्षिण एशिया या सार्क देशीय बन जाती है। यहां तक कि हमारे प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को भी चांद से 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा’ दिखा। भारत मेें पहले तो हम दक्षिण व उत्तर भारतीय में बंटे रहते हैं। उसके बाद हिन्दी व गैर हिन्दी प्रदेशों में बंट जाते हैं। भाषा के आधार से परे हटते ही हम प्रांतों की सीमाओं में सिमट जाते हैं। प्रांतीयता के भीतर भी उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम इलाकों को अलग करने की मांग हमारे भीतर बलवती हो उठती है। इसका ज्वलंत उदा

.....जब रावण बस्यो पड़ोस

हमारे जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान अगर किसी के लिए होता है तो वे हैं हमारे पड़ोसी, जिनको चाहकर भी हम बदल नहीं सकते। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शायद पड़ोसियों से परेशान होकर या उनके प्रति अपना अगाध प्रेम प्रदर्शित करने के लिए ही कहा होगा कि आप मित्र तो बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते। पड़ोसियों के मामले में मेरे एक मित्र काफी खुशकिस्मत रहे हैं। घर हो या कार्यस्थल हर जगह उनकी पड़ोस सुखदायी होती है। इस संदर्भ में मेरी किस्मत काफी दगाबाज है। 'जहां गइली खेहो रानी, ऊंहा ना मिले आग पानी’ की कहावत चरितार्थ होती है। वहीं बंजर की स्थिति है। घर में मेरे पड़ोस में बलियाटिकों का जमावड़ा है। दिनदहाड़े हो या घोर अन्हरिया, इनके घरों से दोअर्थी गाने की गंूज सुनाई देती रहती है। सीढिèयों पर चढ़ते-उतरते इनकी मोबाइल फोन पर फुल वॉल्युम में 'लगाई दिहीं ... .. हूक राजाजी’ और 'लगावेलू जब लिपिस्टिक हिलेला आरा डिस्टि्रक्ट’ जैसे गाने बजते रहते हैं। जब धार्मिक मूड में होते हैं तो असमय 'ऊं जय जगदीश हरे’ की धुन भी सुनने को मि

व्हाई दिस कोलावरी डी ?

इक्कीसवीं सदी की अत्याधुनिकता का असर कहिए या पाश्चात्य जगत की छाया, हमारे देश के अति उत्साही युवाओं में कई गलत प्रवृत्तियां घर करती जा रही हैं। जिसकी भाषा समझ में नहीं आती और धुन में मदहोशी भरी हुई है, इस तरह के 'कोलावरी-डी’ बाजार में लोकप्रियता के शिखर पर हैं। छात्र अपने शिक्षकों का आदर नहीं करते बल्कि उनका उपहास उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। किशोर-किशोरियां अपनी उम्र से जल्दी जवान व वयस्क हो रहे हैं। बच्चे, बड़ों की तरह गम्भीर व जिम्मेदाराना व्यवहार करने लगे हैं। इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों में समाज में कई तरह के अनदेखे आचरण नमूदार हो रहे हैं। कोलकाता में एक दस वर्ष की बालिका ने ठान लिया है कि वह प्रियंका चोपड़ा की तरह मशहूर अभिनेत्री बनेगी। हावड़ा का सात वर्षीय किशोर सचिन तंेंदुलकर की तरह क्रिकेटर बन अगाध धन कमाना चाहता है। आईएएस या आईपीएस बनने की चाह बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है, लेकिन विजय माल्या सरीखे उद्योगपति की तरह का जीवन जीने की ललक किशोरों में अभी से दिखाई देती है। मुंबई में 15 साल की एक छात्रा ने अपनी कोख में पल रहे बच्चे के बारे में जानकारी देकर समाज को अ