Posts

Showing posts from March, 2014
Image
Its' me @ Office.
Image
Bapu's Last glimpse 

कसमें-वादे-प्यार वफा.. सब बेमानी

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) रांचीः जिसने वादा निभाया, उसने सब गंवाया. कलयुगी नेताओं की जमात की कथनी-करनी देख कर तो यही कहा जा सकता है. वैसे भी वादा करना ही आसान होता है, निभाने की बारी आती है तो कसमें-वादे-प्यार वफा सब बातें बेमानी लगती हैं. हमारे लोकप्रिय नेताओं को ही ले लें, इनके कर्णप्रिय वादे सौ करोड़ी फिल्मों के दो-अर्थी संवाद से भी अधिक लोकलुभावन होते हैं, लेकिन जब पूरा करने की बारी आती है तो ये ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. अब इसमें इन आदत से लाचार नेताओं का भी कोई दोष नहीं है. जनार्दन कही जानेवाली जनता की याददाश्त ही कमजोर है, जो हर बार ऐसे अनेकों वादे सुनती है , वादा-खिलाफी की गुहार भी लगाती है , फिर कभी वादों के चक्कर में न पड़ने की कसमें खाती है, लेकिन फिर से उन्हीं नेताओं के भूल-भुलैया वाले वादों के डोर में बंधने से खुद को रोक नहीं पाती. हमारे देश में यह सिलसिला यूं ही चलता रहता है. नेता वादा करते नहीं अघाते. जनता उन पर बार-बार अल्पकालिक विश्वास भी कर लेती है. चुनाव के बाद जैसे नेता अपना वादा भूल जाते हैं, उसी तरह जनता भी यह पूछना भूल जाती ह

डीएनए में घुस गया है डिवाइड एंड रूल

डीएनए में घुस गया है डिवाइड एंड रूल  ।। लोकनाथ तिवारी।। ( प्रभात खबर, रांची) तेलंगाना को भारत का 29वां राज्य बनाने के पीछे की मनसा क्या है, इसकी विषद व्याख्या करना कहीं से समझदारी नहीं कही जा सकती. बांटो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) की नीति हमारे डीएनए में बसी हुई है. यह कब से और कहां से अपनायी गयी, इसकी व्याख्या से भी कोई लाभ नहीं है. हमारी फितरत में तो सदैव बंटवारे का भूत सवार रहता है. दक्षिण व उत्तर भारतीय में बंटे हम कभी हिंदी तो कभी गैर हिंदी प्रदेशों में बंट जाते हैं. भाषा व प्रांतों की सीमाओं में सिमटी हमारी मानसिकता संकीर्णता की सारी हदें लांघती नजर आती है. एक ही प्रांत में अलग-अलग जिलों के रहने वाले भले ही पड़ोसी क्यों न हो, अपने जिले का बखान करते समय दूसरे जिले के लोगों के बारे में सरेआम  अभद्र शब्दों का प्रयोग करते नहीं अघाते. दिवंगत लोकगायक बलेसर ने तो इसी को आधार बना कर गीत भी गढ़ लिया था. रसवा भरल बा पोरे पोर, जिला . . वाली, उनके लोकप्रिय गानों में से एक था. एक ही जिले में ब्लॉकों, जवार व गांवों में बंटे हम यहीं नहीं थमते.  बचपन में कई बार काका की जुबान से सुना ह