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Showing posts from September, 2009

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-2

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-2

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-2

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-2

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-1

"मैं फूलन देवी हूँ भेनचोद.. मैं हूँ।" बेंडिट क्वीन फ़िल्म का यह पहला संवाद है, जो दर्शक के कपाल पर भाटे की नुकीली कत्तल की माफिक टकराता है। अगर दर्शक किसी भी तरह के आलस्य के साथ फ़िल्म देखने बैठा है, या बैठा तो स्क्रीन के सामने है और मग़ज़ में और ही कुछ गुन्ताड़े भँवरे की तरह गुन गुन कर रहे हैं, तो सब एक ही झटके में दूर छिटक जाते हैं। दर्शक पूरी तरह से स्क्रीन पर आँखें जमाकर और मग़ज़ के भीतर के भँवरे पर काबू पाकर केवल फ़िल्म देखता है और फ़िल्म यहीं से फ्लैश बैक में चली जाती है। स्क्रीन पर नमुदार होते हैं, चप्पू के हत्थे को थामें मल्लहा के हाथ, और फिर पूरी नाव। नाव चंबल की सतह पर धीरे से आगे खिसकती है, अपनी गोदी में आदमी, औरत, बच्चे, पोटली, ऊँट और भी बहुत कुछ मन के भीतर का, जो नाव में सवार चेहरों पर दिखता है। शायद काम की तलाश, शायद गाँव को छोड़ने का दुख और भी कुछ। दर्शक इन्हीं चेहरों में खोजता है ख़ुद को और कुछ सोचने की तरफ़ बढ़ता है कि भूरे, मटमेले, ऊँचे बीहड़ों में से निकलता है बकरियों का एक झुण्ड। नदी किनारे आते झुण्ड के पीछे चल रहे हैं एक दाना (बुजुर्ग) और किशोर। यह पूरा

फूलन देवी : The Bandit Queen

ओसामा बिन लादेन की हकीकत क्या....3

पार्ट-3 तीन नवंबर, 2001 को जारी दूसरे वीडियो टेप में भी बीमार ओसामा ने अमेरिका की आलोचना की थी और मुस्लिमों से कहा था कि वे हमले पर खुशी जताएँ, लेकिन उसने किसी भी अवसर पर यह नहीं माना कि वह हमले में शामिल था। ग्रिफिन का दावा है कि 13 दिसंबर, 2001 को ओसामा की मौत होने के बाद अमेरिकी सरकार ने नया वीडियो जारी किया जिसमें लादेन ने अपने पूर्व बयानों से हटते हुए 11 सितंबर के हमलों की सारी जिम्मेदारी स्वीकारी और यह बताने की कोशिश की कि किस तरह हमला किया गया। कहा गया कि यह टेप जलालाबाद, अफगानिस्तान में एक घर में अमेरिकी सैनिकों को मिला था, जबकि इसके साथ जुड़ा एक लेबल यह दर्शाता है कि इसे 9 नवंबर, 2001 को बनाया गया था। अमेरिका और ब्रिटेन में कहा गया कि इस वीडियो से साफ है कि अमेरिका पर आतंकवादी हमला उसी ने कराया था। ग्रिफिन का कहना है कि स्वीकृति वाला यह वीडियो टेप जितने सवालों के उत्तर नहीं देता है उससे ज्यादा संख्या में सवाल खड़े करता है क्योंकि इस टेप में ओसामा बिल्कुल अलग दिखता है। इसमें वह भारी आदमी दिखता है जिसकी दाढ़ी पूरी तरह से काली है। उसकी पीली त्वचा का रंग भी काला पड़ गया

ओसामा बिन लादेन की हकीकत क्या.....Part -2

Part -2 हाल ही में अमेरिका और ब्रिटेन में एक किताब आई है, जिसका शीर्षक है 'ओसामा बिन लादेन : डैड ऑर अलाइव'। राजनीतिक विश्लेषक और दार्शनिक प्रोफेसर डेविड रे ग्रिफिन की इस किताब में ओसामा की संभावित मौत और पश्चिमी देशों द्वारा इसे छिपाने को लेकर विस्तृत और तर्कसंगत जानकारी दी गई है। इस पुस्तक में दावा किया गया है कि किडनी के फेल होने से या इससे संबंधित किसी बीमारी की शिकायत से ओसामा की मौत हो चुकी है और यह 13 दिसंबर, 2001 या इसके आसपास की घटना हो सकती है। इस समय वह वजीरिस्तान की सीमा से लगे तोरा बोरा की पहाडि़यों में रह रहा था। उनका मानना है कि मुस्लिम धार्मिक नियमों के अनुरूप 24 घंटों के भीतर ही उसको दफन भी कर दिया गया। उसकी कब्र को भी चिन्हित नहीं किया गया है क्योंकि वहाबी मुस्लिमों में ऐसा ही रिवाज है। लेखक का दावा है कि इस तारीख के बाद के बहुत से टेपों में दुनिया को यह भरोसा दिलाया गया है कि ओसामा जिंदा है। उनका यहाँ तक कहना है कि ये टेप भी फर्जी हैं और इनका उद्‍देश्य है कि इराक और अफगानिस्तान में चल रहे आतंक के खिलाफ युद्ध के लिए दुनिया के समर्थन और सहायता को सुनिश

ओसामा बिन लादेन: हकीकत क्या है?

part-1 परत दर परत..... ..... विश्लेषण..... ..... पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन लगातार इस बात का दावा करते रहे हैं कि विश्व का खूँखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन जिंदा है और वह समय समय पर अपनी धमकियों से इस बात की पुष्टि करता रहता है, लेकिन अब पश्चिमी देशों में यह धारणा जोर पकड़ रही है कि वास्तव में ओसामा बिन लादेन कम से कम सात वर्ष पहले ही मर चुका है और उसे जिंदा रखने का काम पश्चिमी देशों की सरकारें कर रही हैं ताकि आतंकवाद के खिलाफ कथित युद्ध को तब तक चलाया जा सके जब‍ तक कि उनके उद्‍देश्य पूरे नहीं हो जाते। क्या यह नहीं हो सकता है कि अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के शुरुआती दिनों के बाद से जो ऑडियो और वीडियो उसके नाम पर जारी किए गए हैं, वे सभी फर्जी हैं? क्या यह संभव नहीं है कि ओसामा को जिंदा बनाए रखने का काम ब्रिटिश और अमेरिकी खुफिया एजेंसियाँ कर रही हैं ताकि आतंक के खिलाफ युद्ध में अपने यूरोपीय सहयोगी देशों की मदद लेती रहें? ओसामा के जिंदा होने की धारणा के ठीक विपरीत बहुत सारे सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि इन महत्वपूर्ण तथ्‍यों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। अमेर

Ten Quotes of Gandhi Ji

Strength… The weak can never forgive. Forgiveness is the attribute of the strong. Government… What difference does it make to the dead, the orphans, and the homeless, whether the mad destruction is wrought under the name of totalitarianism or the holy name of liberty and democracy? Self-Help… The only tyrant I accept in this world is the still voice within. Government… It may be long before the law of love will be recognized in international affairs. The machineries of government stand between and hide the hearts of one people from those of another. God… As soon as we lose the moral basis, we cease to be religious. There is no such thing as religion over-riding morality. Man, for instance, cannot be untruthful, cruel or incontinent and claim to have God on his side. Life… There is more to life than simply increasing its speed. Change… We must be the change we wish to see. Self-Help… The best way to find yourself is to lose yourself in the service of others. Truth…

ओसामा बिन लादेन: हकीकत क्या है?

ओसामा बिन लादेन: हकीकत क्या है?

प्रेमचंद : उपन्यास सम्राट

जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी और उपनिवेशवाद को उकेरने वाले आदर्शोन्मुख यथार्थवादी साहित्य के कालजयी रचनाकार प्रेमचंद को बांग्ला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उपन्यास सम्राट का नाम दिया था। कोलकाता में वणिक प्रेस के महावीर प्रसाद पोद्दार प्रेमचंद की रचनाएं बांग्ला साहित्यकार शरत बाबू को पढ़ने के लिए देते थे। एक दिन जब वह शरत बाबू के घर गये तो उन्होंने देखा कि शरत बाबू प्रेमचंद का कोई उपन्यास पढ़ रहे थे। उत्सुकतावश उन्होंने उपन्यास उठाकर देखा तो शरत बाबू ने उस पर अपनी हस्तलिपि में 'उपन्यास सम्राट प्रेमचंद' लिख रखा था। बस इसके बाद से पोद्दार ने प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट प्रेमचंद लिखना प्रारंभ कर दिया। प्रेमचंद के बेटे और साहित्यकार अमृतराय के अनुसार वह उर्दू मासिक पत्रिका 'जमाना' के संपादक मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर धनपतराय से प्रेमचंद बने लेकिन उन्होंने मुंशी शब्द का स्वयं कभी प्रयोग नहीं किया। यह शब्द सम्मान सूचक है जिसे उनके प्रशंसको ने लगा दिया होगा। हालांकि कहते हैं कि मासिक पत्रिका 'हंस' में प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी दो सह संपादक थे चूंकि संप

मैं जिनका मुरीद हूं.. उनकी पहली रचना उन्हीं की जुबानी

मेरी पहली रचना : मुंशी प्रेमचंद उस वक्त मेरी उम्र कोई 13 साल की रही होगी। हिंदी बिलकुल न जानता था। उर्दू के उपन्यास पढ़ने-लिखने का उन्माद था। मौलाना शजर, पं. रतननाथ, मिर्जा रूसवा,मौलवी मुहम्मद अली हरदोई निवासी, उस वक्त के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे। इनकी रचनाएँ जहाँ मिल जाती थी स्कूल की याद भूल जाती थी और पुस्तक समाप्त करके ही दम लेता था। उस जमाने में रेनॉल्ड के उपन्यासों की धूम थी। उर्दू में उनके अनुवाद धडा़धड़ निकल रहे थे और हाथों-हाथ बिकते थे। मैं भी उनका आशिक था। स्व. हजरत रियाज ने जो उर्दू के प्रसिध्द कवि थे और जिनका हाल में देहांत हुआ है, ने रेनॉल्ड की एक रचना का अनुवाद 'हरम सरा' के नाम से किया था। उसी जमाने में लखनऊ के साप्ता‍‍हिक अवध पंच के संपादक स्व. मौलाना सज्जाद हुसैन ने जो हास्यरस के अमर कलाकार हैं, रेनॉल्ड के दूसरे उपन्यास का 'धोखा' या 'तिलिस्मी फानूस' के नाम से किया था। ये सारी पुस्तकें मैंने उसी जमाने में पढ़ी। और पं. रतननाथ से तो मुझे तृप्ति ही न होती थी। उनकी सारी रचनाएँ मैंने पढ़ डालीं। उन दिनों मेरे पिता गोरखपुर में रहते थे और मैं

झरिया एक्शन प्लान-बहुआयामी योजना को सरकार की हरी झंडी

झरिया एक्शन प्लान-बहुआयामी योजना लोकनाथ तिवारी बहुप्रतीक्षित झरिया एक्शन प्लान को इन्फ्रास्ट्रक्चर कैबिनेट कमेटी की मंजूरी मिल गई है। झरिया और रानीगंज कोलफील्ड में छिपे बहुमूल्य कोकिंग कोल के भंडार को निकालने, यहां पर बसे लाखों लोगों के पुनर्वास, भूगर्भ खदानों में लगी आग को बुझाने तथा इस क्षेत्र के विकास के लिए यह योजना अति महत्वपूर्ण है। सर्व प्रथम इस योजना का प्रस्ताव वर्ष 1999 में किया गया और कोयला मंत्रालय इसे केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए भेज दिया था। राज्य सरकार ने भी इस योजना को गत वर्ष मंजूरी दे दी थी। इस योजना के तहत भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) और ईस्टर्न कोलफील्ड्स (ईसीएल) क्षेत्र में बसे लोगों का पुनर्वास, बुनियादी सुविधाओं का विकास और खदानों में लगी आग को बुझाने के लिए अनुमानित 9657.61 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसमें से 7028.40 करोड़ रुपए झरिया कोलफील्ड और 2629.21 करोड़ रुपए रानीगंज कोलफील्ड क्षेत्र के विकास पर खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा विभिन्न एन्वायरमेंटल मेजर एंड सब्सिडेंस कंट्रोल (ईएमएससी) स्कीम के लिए 116.23 करोड़ रुपए पहले ही दिए जा चुके है

झरिया एक्शन प्लान-बहुआयामी योजना को सरकार की हरी झंडी

जीवन का सार

पत्ते पर बैठी जल की एक बूंद नीचे बहती नदी के जल को देख रही थी। हहर-हहर करता जल वेग से आगे बढता जा रहा था। उछलती तरंगों से निकलती अनेक बूंदे खेलती हंसती नाचती पुन: नदी के जल में विलीन हो जाती। पत्ते पर बैठी बूंद उदास थी, " ओह, मैं कितनी अकेली हूं ... कोई मेरे साथ खेलता नहीं .... मेरी सुध नहीं लेता। " हवा ने उसका रोना सुना। उस पर तरस आया। उसने पत्ते के हिला दिया कि बूंद फिलसकर नदी में जा मिले। बूंद अकर्मण्य थी। वह कसकर पत्ते से चिपक गई, " मुझे गिरने से डर लगता है। वैसे भी नदी के जल में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठूंगी। " नदी जल की बूंद आगे बढ हुई सागर में विलीन होकर शाश्वत में मिल गई। पत्ते पर की बूंद वहीं बैठी-बैठी सूखकर समाप्त हो गई। बूंद की सबसे बडी भूल थी कि वह स्वयं को अपने जन्मदाता जल से अलग मान बैठी। वह भूल गई कि उसका अस्तित्व जल से है। दूसरी भूल थी अर्कमण्यता। वह कर्म करने से डरती रही, अत: नष्ट हो गयी। बूंद और जल का सम्बन्घ आत्मा-परमात्मा के सम्बन्घ के समान है। इतने बडे विश्व मे बच्चा अकेला आता है। परिवार, समाज में अन्य लोगों से

बेसहारों का सहारा थीं मदर टेरेसा

5 सितम्बर: पुण्यतिथि पर विशेष विश्व इतिहास ऐसे अनेकों समाजसेवियों तथा समाज के प्रति समर्पित सद् पुरुषों, महात्माओं, ऋषियों, मुनियों व सन्तों के नामों से भरा पड़ा है, जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों, दीन-दुखियों तथा असहाय लोगों की सेवा हेतु समर्पित कर दिया। प्रत्येक युग में ऐसे अनेकों अवतारी अथवा अवतारी कही जा सकने वाली हस्तियों ने जन्म लिया है। ऐसी ही एक अवतार रूपी महिला का नाम था मदर टेरेसा। 27 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया में जन्मी मदर टेरेसा का सम्बन्ध अल्बानियाई परिवार से था। बताया जाता है कि 12 वर्ष की आयु में ही उन्हें ईश्वर की आवाज का आभास होने लगा था। चूंकि वे एक ईसाई परिवार में जन्मीं थीं इसलिए स्वाभाविक रूप से उनका पहला झुकाव अपने आराध्य प्रभु ईसा मसीह की ओर ही था। अत: बाल्यकाल में ही उन्होंने यीशू मसीह का प्रेम सन्देश जन-जन तक पहुंचाने का निर्णय लिया। 18 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा ने अपना घर व परिवार त्याग दिया तथा एक ऐसी मिशनरी में शामिल हो गईं जोकि भारत में भी अपना कामकाज देखती थी। डबलिन में कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद उन्हें मिशनरी की ओर से भारत भेज दिया गया। यहां 24 मई 193

मदर टेरेसा जन्मदिन व पुण्यतिथि पर विशेष

हर दुखिया के आंसू पोंछती थीं मदर हर दुखिया के आंखों से आंसू पोछने और हर बेघर को छत दिलाने की हसरत रखने वाली मदर टेरेसा बीसवीं शताब्दी की ऐसी महान विभूति थी जिन्होंने अपनी करूणा को किसी भौगोलिक सीमा में न बांधते हुए भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया तथा पीड़ितों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगाकर यह साबित कर दिया कि वह सही मायने में विश्व नागरिक थीं।मदर टेरेसा ने अपने बारे में एक बार कहा था कि रक्त से मैं अल्बानियाई (जन्मस्थान) हूं। नागरिकता के अनुसार भारतीय हूं। धर्म के अनुसार मैं एक कैथोलिक नन हूं। मेरी धारणा है कि मैं पूरे विश्व की हूं और दिल से मैं पूरी तरह जीसस की हूं। मकदूनिया के स्कोपजे में 26 अगस्त 1910 को जन्मी मदर टेरेसा के सिर से पिता का साया महज आठ साल की उम्र में उठ गया था। घोर आर्थिक कष्टों के बावजूद उनकी धर्म और प्रभु में आस्था बनी रही। परियों और राजकुमार के सपने देखने वाली 12 साल की उम्र में उन्होंने नन बनने का निश्चय कर लिया। यह निश्चिय पूरा हुआ 18 साल की बालिग उम्र में, जब वह ईसाई ननों की आयरिश संस्था सिस्टर्स आफ लारेट में शामिल हुईं। इस संस्था के कुछ मिशन भारत में थे। उन्होंन