Posts

Showing posts from 2015

सोनिया का इटली का वह घर

Image
'फोर्ब्स' पत्रिका ने दुनिया की ताकतवर महिलाओं की सूची में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी को छठे स्थान पर रखा है. सोनिया इस सूची में अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा से एक पायदान ऊपर हैं.    इटली का एक छोटा सा शहर तुरीन और उसका गाँव ओवासान्यो. नौ दिसंबर, 1946 को मध्यमवर्गीय माइनो परिवार में सोनिया का जन्म हुआ. यही है सोनिया का वह घर जहाँ उनका बचपन बीता और वह पली बढ़ीं.

आध्यात्मिक इंदिरा गांधी

Image
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि जनता पार्टी के शासनकाल में श्रीमती इंदिरा गांधी पूरी तरह आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो गई थीं। उन दिनों सुबह-सवेरे के नित्यकर्मों से विमुक्त होने के बाद वे लगभग एक घंटे तक  योगाभ्यास  करती थीं और तत्पश्चात मा आनंदमयी के उपदेशों का मनन। सुबह दस बजे से लेकर बारह बजे के मध्य वे आगंतुक दर्शनार्थियों से मिलती थीं।  इन अतिथियों में विभिन्न प्रदेशों के कांग्रेसी नेताओं के अतिरिक्त कतिपय साधु-संत भी होते थे। अपनी उन भेंट-मुलाकातों के मध्य आमतौर पर श्रीमती गांधी के हाथों में ऊन के गोले और सलाइयां रहती थीं। अपने स्वजनों के लिए स्वेटर आदि बुनना उन दिनों उनकी हॉबी बन गई थी।  एक बजे के लगभग भोजन करने के बाद वे घंटेभर विश्राम करती थीं। विश्राम के बाद अक्सर वे पाकिस्तान के मशहूर गायक मेहंदी हसन की गजलों के टेप सुनती थीं। रात में बिस्तर पर जाने के पहले उन्हें आध्यात्मिक साहित्य का पठन-पाठन अच्छा लगता था।  इस साहित्य में मा आनंदमयी के अतिरिक्त स्वामी रामतीर्थ और ओशो की पुस्तकें प्रमुख थीं। ओशो के कई टेप भी उन्होंने मंगवा रखे थे, जिनका वे नियमित रू

Published in Bharat Mitra

Image

घर की बात घर में ही रहे तो बेहतर

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची विकास की हड़बड़ी में वास्को डि गामा बने नेताजी को हर जगह बस एक ही राग सूझ रहा है. जवाब में जनता भी टेप रिकॉर्डर की तरह तालियां बजा रही है. बीच-बीच में कोरस ध्वनि में हौसला बढ़ाती गूंज भी सुनायी देती है. ऐसे में नेताजी को खुशफहमी होना लाजिमी है.    लेकिन काका सरीखे लोगों को यह तनिक भी नहीं भा रहा. उनका मानना है कि अपने घर की बात घर की चहारदीवारी में ही रहे तो मान-मर्यादा बची रहती है.    हम अपनी गंदगी का ढिंढोरा बाहर पीटने लगेंगे, तो बाहरवाले बस मजा लेंगे. अपने सदाबहार भाषणों से रॉकस्टार को मात देते नेताजी जब कहते हैं कि गंदगी करनेवाले गंदगी करके चले गये, अब उसे साफ करने के लिए उन्होंने भारत में स्वच्छता अभियान चला रखा है, तो कहीं न कहीं वह अपने घर की छवि धूमिल करते ही नजर आते हैं.   लोकतांत्रिक देशों में कहां नहीं विरोधियों के खिलाफ जहर उगला जाता है? हर जगह विपक्षी नाक में दम किये रहते हैं, लेकिन उनके नेता बाहर जाकर देश का महिमामंडन ही करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी उनके नेता हैं, तो उनसे सीख भी लेनी चाहिए. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत

क्या खूब उल्लू बनाते हैं जनाब!

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची किसान का दर्द कौन नहीं जानता, अर्थात् सभी जानते हैं. या यूं कहिए कि जानने का दावा करते हैं. आखिर क्यूं न करें? दावा करने में कुछ लगता जो नहीं. कभी विदेश से काला धन वापस ला कर हर व्यक्ति को 15-20 लाख रुपये देने का दावा भी तो यूं ही किया गया था. आज भी 56 इंच के सीनेवाले के उस ओजस्वी भाषण की याद आती है, तो कानों में मिसरी सी घुलने लगती है. अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि जिस दिन भारतीय जनता पार्टी को मौका मिलेगा, हिंदुस्तान की एक-एक प ाई वापस लायी जायेगी और देश के गरीबों के कल्याण के काम में लगायी जायेगी. उस समय किसी ने काला धन कितना है, कैसे लायेंगे, यह सवाल नहीं किया था. जादुई चुनावी अभियान में सारे तथ्य बेमानी हो गये थे. दावे पर भरोसा करके लोगों ने जी खोल कर भाजपा को वादा निभाने का मौका दिया, लेकिन मोदी जी ने अपने ‘मन की बात’ में गरीबों की आशाओं पर पानी फेर दिया. कहा कि काला धन कितना है, उनको नहीं पता. पिछली सरकार को भी नहीं पता था. यदि ऐसी ही बात थी तो बड़े-बड़े दावे क्यों किये? खैर मोदीजी न सही, पर उनके सिपहसालार अमित शाह ने मा

करो कम, नगाड़ा बजाओ जमकर

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची बॉस लोग बेवजह फजीहत करने लगे हैं. बात बेबात फींचने लगे है. लगता है मार्च का महीना कपार पर आ गया है. अप्रेजल टाइम हो और आपके बॉस बिना बात के आपको डांटे नहीं. ऐसा होते कम से कम हमने तो नहीं देखा. इसलिए हमने भी ठान लिया है कि अब गुजरात मॉडल का सहारा लिये बिना कोई चारा नहीं है. वरना पिछली बार की तरह इस बार भी बाबा जी के ठुल्लू से ही संतोष करना पड़ेगा. अरे भाई गुजरात मॉडल नहीं जानते ? इसे तो अब अपना बराक भी जान गया है. गुजरात का मॉडल यह है कि करो जितना भी, नगाड़ा बजाओ जमकर. इसे अपने भाई लोग दूसरी तरह भी समझाते हैं, लेकिन उसे लिखना मुनासिब नहीं है.  खैर पते की बात यह है कि गुजरात मॉडल अपनाकर आप फेल नहीं हो सकते है. भले ही आपका परफॉर्मेस कैसा भी हो. अपने कई शब्दकोषी भाई बंधु तो नगाड़े की बदौलत ही चांदी काट रहे हैं. यह मॉडल आजकल सफलता की कुंजी माना जा रहा है. अब तो इस मॉडल को उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्य भी अपनाने लगे हैं. इनका मानना है कि नगाड़ा बजाने यानी पब्लिसिटी पर पूरा जोर देने की जरूरत है. गुरु घंटालों का कहना है कि गुजरात में मीडिया को

सोचों कभी ऐसा हो तो क्या हो ..

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची. खा-पीकर कोई काम नहीं है, इसलिए सोचने बैठ गया. जब बैठ ही गया तो दुनिया की चिंता सताने लगी. सोचा साधु, संन्यासी ही बेहतर हैं. किसी की परवाह नहीं है. लेकिन फिर सोचा कि आजकल तो कुछ साधु-साध्वी बच्चों को लेकर चिंतित दिखने लगे हैं. सोचिए अगर इनकी बातों पर अमल शुरू हो गया तो क्या होगा. अगर चार-चार, पांच-पांच और दस-दस बच्चे पैदा होने लगे तो नागा बाबाओं की तो कोई कमी नहीं होगी क्योंकि पहनाने के लिए कपड़ा कहां से आएगा. अन्य साधुओं की भी कोई कमी नहीं होगी क्योंकि हर परिवार को अपना एक बच्चा तो साधु-संतों को देना ही होगा. इससे कई समस्याएं भी हल हो सकती हैं. सबसे पहले तो कन्या भ्रूण हत्या की समस्या अपने आप हल हो जाएगी.  कन्याएं वैसे भी भारत भूमि पर जन्म नहीं लेना चाहेंगी. कहेंगी- वहां तो हमें बच्चे पैदा करनेवाली मशीन बनकर रहना पड़ेगा. नेताओं को भी  भाइयों और बहनों के संबोधन के झंझट से मुक्ति मिल जायेगी. आधी आबादी के आरक्षण, औरतों की आजादी का लफड़ा भी स्वत: खत्म हो जायेगा. दस-दस बच्चों को संभालने के चक्कर में नारियां घर से निकलेंगी ही नहीं. नेता,अफसर और धर्मगुरु  व

जब तक रहेगा समोसे में आलू....

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची पता नहीं क्यों अपने काका आज सुबहिए से समोसा आउर आलू का भजन कर रहे थे. जब तक रहेगा समोसा में आलू, तब तक रहेगा.. अब काका की बातें कभी बेवजह तो होती नहीं. इस बार भी जरूर कोई जगत प्रसिद्ध प्रसंग उनके दिमाग में कुलबुला रहा होगा. काका के सामने चाय की प्याली रखते ही उन्होंने बिहार का प्रसंग छेड़ दिया. अरे बबुवा, अब समझ में आया अपने लालू भइया के कंप्यूटर सरीखा खोपड़िया का करिश्मा. बेचारे को जब चारा घोटाला में कुरसी छोड़नी पड़ी थी तो उन्होंने बहुत सोच-विचार कर ही राबड़ी देवी को इस पर बिठाया था. वे बिहार व बिहारी पॉलिटिक्स की नस-नस से वाकिफ हैं. बढ़िया से जानते हैं कि उत्तर भारत में पन्नीरसेल्वम (तमिलनाडु) सरीखा नेता नहीं होता. यहां तो हर कोई अपने आप में बड़का नेता बन सकता है. बस उसे एक बार कुरसी की गंध मिल जाय, फिर तो.. अपने नीतीश भाई ने नैतिकता की दुहाई देकर अपने सिपहसालार जीतनराम मांझी को सत्ता सौंपी. उस समय अपने मांझी भी नीतीश प्रेम में कसीदे पढ़ते नहीं थकते थे. लेकिन कुछ दिन बाद ही कुरसी की ताकत ने उनको तिकड़म व दावं पेंच सिखा दिया. अब वे खुद को ही

नसीब वाले परजीवियों से बच के दिखाओ

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुङो नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं. अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है. आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे.  मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली. अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है. ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे. बाकी लोग क्या जाने पीर पराई.  उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समङोंगे. खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी. बात हो रही है नसीब की. अपने मोदी जी ने तो दिल्ली की चुनावी रैली में अपने नसीब की दुहाई देकर सभी की बोलती ही बंद कर दी. मोदी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम उनके नसीब से कम हुए हैं.  अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण आम आदमी का पैसा बचता है, तो बदनसीब को लाने
लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुङो नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं. अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है. आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे.  मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली. अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है. ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे. बाकी लोग क्या जाने पीर पराई.  उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समङोंगे. खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी. बात हो रही है नसीब की. अपने मोदी जी ने तो दिल्ली की चुनावी रैली में अपने नसीब की दुहाई देकर सभी की बोलती ही बंद कर दी. मोदी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम उनके नसीब से कम हुए हैं.  अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण आम आदमी का पैसा बचता है, तो बदनसीब को लाने

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आप गंगासागर जायें और वहां रास्ता न भटकें, ऐसा हो ही नहीं सकता. एक ही तरह के रास्ते व एक ही तरह के होगला (एक तरह का पत्ता) के आवास दूर-दूर तक दिखते हैं. ऐसे में अच्छे-अच्छे अपने झुंड से बिछड़कर कलपने लगते हैं. ऐसे लोगों की मददगार संस्था भी है. बजरंग परिषद. इनके शिविर के सामने की यह घटना देखिए.  ए बाबू हमरे बड़का के बाबूजी भुलाइ गइल हवे, दुइ घंटा से खोजत बानी. मुंह फुकवना के कवनो पता नइखे चलत. इतना कह कर प्रौढ़ महिला बिलखने लगी. बार-बार बड़का के बाबू को खोजने की गुहार लगाती महिला ने बताया कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आयी थी. सुबकते हुए पति के डील-डौल व हुलिया का बारीकी से बखान करती महिला से जब पति का नाम पूछा गया तो वह इधर-उधर ताकने लगी. अपने मलिकार (पति) का नाम जुबान पर लाना उसके लिए कठिन था. मर जायेगी,  पति को गालियां बकेगी लेकिन उनका नाम नहीं पुकारेगी. चिढ़ कर जब वॉलंटीयर ने कहा कि नाम नहीं बताने पर माइक में घोषणा नहीं करायी जायेगी, तब महिला ने अपने पौराणिक ज्ञान का परिचय देते हुए बताया, जवन लक्ष्मण के बाण

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन देश की राजधानी में चुनावी डुगडुगी बजते ही आदर्श समाजसेवी नेताओं में नीतिवाद (मलाई) की लहरें हिलोर मारने लगी हैं. अपने अंदर परिवर्तन की भावना को रोक पाने में असमर्थ मलाईवादी महापुरुषों की नये (सत्ताधारी) नेतृत्व के प्रति अगाध भक्ति जग गयी है. कल तक पानी पी-पीकर जिसे कोसते थकते नहीं थे, आज उनमें विकास पुरुष दिखने लगे हैं. इसके पीछे अंतरात्मा की आवाज और पता नहीं क्या-क्या और किस-किस की दुहाई देने लगे हैं. ऐसे लोग स्थान काल पात्र से परे होते हैं. ऐसे लोगों की पौध भारत के हर प्रदेश में लहलहाती नजर आती है. बिना खाद-पानी के भी इस तरह के लोग सदा फलते-फूलते रहते हैं. लगभग हर बार किसी न किसी चुनाव के मौके पर ही दल के साथ इनका दिल परिवर्तन हुआ. इसमें राजनीतिक विचारधारा कभी आड़े नहीं आयी. तभी तो इन सदाबहार मलाईवादियों को न तो भाजपा में जाने से परहेज है और न कांग्रेस में और न ही समाजवादी में. एक अदद चुनावी टिकट के लिए मलाईवाद का यह खेल कोई नया नहीं है. यह खेल वर्षो से चल रहा है.  चुनाव में सबको  एडजस्ट  करना मुश्किल होता है, लिहाजा टिकट कटने या नहीं मिलने का