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Showing posts from 2016

धन काला या मन काला

अगर हमारे देश में लोग स्वत: अपना आयकर सहित अन्य कर च्ाुकाने लगे तो कई समस्याओं का समाधान अपनेआप हो जायेगा। इसके लिए हमारी मानसिकता बदलनी होगी। कानूनी चाब्ाुक के डर से कर च्ाुकाने की प्रवृत्ति से किनारा करना होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पांच सौ और एक हजार के नोट अचानक बंद करके सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अपनी इस पहल से मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार है। इससे पहले 1978 में एक हजार, पांच हजार और दस हजार रुपये के नोट वापस लिए गए थे। लेकिन उन दिनों ये नोट बहुत ज्यादा चलन में नहीं थे। आज पांच सौ और एक हजार का चलन इतना ज्यादा है, जितना उस वक्त दस-बीस के नोटों का रहा होगा। एक आकलन के मुताबिक 2011 से 2016 के बीच 500 रुपये के नोटों की संख्या 76 फीसदी और 1,000 रुपये के नोटों की तादाद 109 फीसदी बढ़ गई, जिससे यह संदेह भी गहराने लगा कि बड़ी संख्या में जाली नोट चलन में आ गए हैं। इन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के नेटवर्क के जरिए नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते भारत भेजा जा रहा है। जाली नोट का इस्तेमाल अर्थ

कट्टरपंथ का बोलबाला

अमेरिकी च्ाुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कट्टरपंथ के प्रति आम लोगों के रवैये में परिवर्तन आया है। तमाम विरोधों को दरकिनार कर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व डोनाल्ड ट्रंप के बीच बैठक में सौजन्यतामूलक माहौल में चर्चा हुई। ओबामा ने बताया है कि उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के बाद व्हाइट हाउस में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ पहली मुलाकात में कई मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की है। उनकी पहली प्राथमिकता यह सुनिश्‍चित करना है कि अगले दो महीने में सत्ता का हस्तांतरण सहज हो। उन्होंने कहा कि अगर ट्रंप सफल होंगे तो देश सफल होगा। चुनाव के दौरान अमेरिकी समाज में कई मुद्दों पर मतभेद सामने आने पर ओबामा ने कहा, हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी और राजनीतिक वरीयताओं की परवाह किए बिना सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए सब एक साथ आएं। ट्रंप ने कहा कि ओबामा के साथ बातचीत उम्मीद से अधिक लंबी चली। इसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। ट्रंप ने भविष्य में ओबामा के साथ काम करने में दिलचस्पी दिखाई। हालांकि अमेरिका में चुनाव नतीजे आने के बाद से ही विजयी उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के खिल

ट्रंप की जीत के मायने

अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया मेें चर्चा श्ाुरू हो गयी है। भारत में भी इसे लेकर बहस श्ाुरू है। एक तो इसलिए कि किसी को भी उनकी ऐसी जीत की उम्मीद नहीं थी। अभी दो महीने पहले तक यह माना जा रहा था कि इस बार भी अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के लिए उम्मीद का कोई कारण नहीं है। फिर अभी एक हफ्ते पहले तक यह लगा कि वह डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिटंन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। फिर कुछ सर्वेक्षणों ने कहा कि नहीं, जीत तो हिलेरी ही रही हैं। लेकिन कल ट्रंप जिस अंतर से जीते, वह बताता है कि चुनावी सर्वेक्षण और आकलन अक्सर भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी चूक जाते हैं। यह अंतर बताता है कि वहां ट्रंप के समर्थन की एक हवा चल रही थी, जिसे तमाम तरह के विशेषज्ञ समझने में नाकाम रहे। इस जीत ने चौंकाया इसलिए भी है कि अमेरिका के अलावा बाकी दुनिया में उन्हें एक अगंभीर व्यक्ति माना जा रहा था, इसलिए वे चाहते नहीं थे कि ट्रंप जीतें। हाल-फिलहाल तक अमेरिकी मीडिया उन्हें एक ऐसे शख्स के रूप में पेश कर रहा था, जिसका स्वभाव राष्ट्रपति पद के अनुकूल नहीं है। अब जब डोनाल्ड ट्रंप जीत गए

नापाक हरकत की सेंचुरी

कहा जा रहा है कि सर्जिकल के बाद पाक ने नापाक हरकत की सेंचुरी ठोक डाली। अर्थात सीमा पर सीज फायर की 100 घटनाएं घटीं। सीमाई गांव वीरान हो गये हैं। कई स्कूलों के भवन क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस बीच सैनिकों की शहादत जारी है। हालांकि हमारी ओर से फेस सेविंग करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा जमकर पीटा गया। सरकारी तंत्रों से लेकर भक्तों की फौज तानपूरा लेकर इसके प्रचार प्रसार में लग गयी। हालांकि भक्त विरोधी भी लट्ठ लेकर इसके विरोध में मुखर हो रहे हैं। कई कहने वाले कहते फिर रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ। जबकि आये दिन प्रचारित किया जा रहा है कि पड़ोसी आसमान में एफ-16 विमानों ने मुंह अंधेरे उड़ान भरकर सोते हुए बच्चों को कच्ची नींद से जगाकर रुला भी दिया, सेना के जवान सीमा की ओर कूच कर गए, हाईकमिश्‍नरों को बुलाकर फटकार भरी चिट्ठियों का आदान-प्रदान हो गया, दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी सामरिक समझ के हिसाब से गम, गुस्से और ख्ाुशी का इजहार कर लिया, वीर रस से ओत-प्रोत कवियों व संजीदा सेक्युलर शायरों ने पिंगल और व्याकरण के अनुरूप गीत और गजलें गढ़ लीं। यह तो वही बात हुई कि कौआ कान ले गया की कातर पुकार सुनते ही सब अप

खोंइछा गमकत जाइ

छठि घाट पर अपने गाँव के एक अधेड़ को भीख मांगते देखता, तो मेरे शिशु मन पर अनेक प्रतिक्रियाएं होतीं। हंसी आती और उन्हें चिढ़ाने की इच्छा होती। लेकिन न जाने किस प्रेरणा से उनका अनुकरण करने लगता। माँ मेरा आचरण देख खुशी से खिल उठती। दादी गद्गद् चित्त से शाबासी देती, झोली बनाकर प्रोत्साहित करती। व्रत करने करने वाली पांच महिलाओं से भीख मांगनी पड़ती, बात ही बात में मेरी झोली छठि माता के प्रसाद से भर जाती। मन ही मन खुश होता। माँ की खुशी देखकर और सुख मिलता। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मेरा जन्म हुआ था। कार्तिक सष्ठी को छठि माता का पर्व मनाया जाता है। व्रत करने वाली औरतें फल और पकवान से अपना दउरा सजाकर अपने घर के छोटे-बड़े सदस्यों के साथ सूर्यास्त के कुछ पहले ही गांव की छोटी नदी के निश्‍चित घाट ‘लंगूरी’ पर छठि के गीत गाती एकत्र हो जातीं। नदी की मिट्टी से वे स्वयं छठि मैया की रूप-रचना करतीं, उसे नानाविध संवारतीं, घी का दीप जलातीं और अस्त होते सूर्य को दूध और जल से पांच-पाच अर्घ्य निवेदित करतीं। गीत गाते कुछ देर घाट अगोरा जाता। चौबाईन गीत कढ़ाती, ‘कलऽपी कलऽपी बोलेली छठिय माता, मोरे घाटे दुब

जापान से दोस्ती पर चिढ़ा चीन

 भारत-चीन के बीच विवादों को देखते हुए जापान भारत को अपने पाले में करना चाहता है। वह चाहता है कि भारत दक्षिण चीन सागर विवाद में भी हस्तक्षेप करे। इसके लिए उसने अपनी दशकों पुरानी परमाणु नीति भी बदल ली है और भारत के साथ असैन्य परमाणु सहयोग के लिए तैयार हो गया है। अखबार का कहना है कि पिछले कुछ सालों से शिंजो एबी प्रशासन चीन को घेरने के लिए ज्यादा सक्रिय होकर क्षेत्रीय ताकतों को गोलबंद करने में लगा है। पिछले कुछ सालों से जापान की कूटनीति पर ध्यान देने से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। इसने लिखा है कि भारत को जापान से परमाणु और सैन्य तकनीक की जरूरत है। इसके अलावा उसे निर्माण उद्योग और हाई स्पीड रेल जैसे ढांचागत क्षेत्र में भी ज्यादा निवेश की जरूरत है। हालांकि, अखबार का कहना है कि भारत शायद ही जापान की इच्छाओं के अनुरूप अपनी पुरानी नीति को बदलेगा। भारत और जापान ने ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता करके अपने रिश्ते को नई गर्माहट दी है। इस करार पर शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी पीएम शिंजो आबे ने हस्ताक्षर किए। दोनों मुल्कों के बीच परमाणु करार पर बातचीत कई वर्षों से जा

क्यों पिछड़ रहा बंगाल

सिंग्ाुर में जनांदोलन की जीत पर हम भले ही मूसल से ढोल बजा रहे हैं, लेकिन औद्योगिक निवेश के मामले में पश्‍चिम बंगाल फिसड्डी ही साबित हो रहा है। इसके पीछे कारण क्या है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। भारत का औद्योगिक भूगोल को जानने की जरूरत है। देश के कुछ इलाके, कुछ राज्य तो ऐसे हैं, जहां एक के बाद एक नए उद्योग लगते हैं, लोगों को रोजगार मिलता है और उनकी तरक्की के आंकड़े हमें चौंकाते हैं। इसके विपरीत वे राज्य हैं, जहां औद्योगिक निवेश बहुत कम होता है और साल-दर-साल हम उन्हें पिछड़े राज्यों में गिनते हैं। विश्‍व बैंक ने कारोबार में आसानी के लिहाज से देश के राज्यों की जो रैंकिंग प्रकाशित की है, वह इस भूगोल का सही आकलन पेश करती है। इससे हम उन कारणों को भी आसानी से समझ सकते हैं, जिनकी वजह से कोई राज्य समृद्ध हो जाता है और कोई पीछे रह जाता है। इस रैंकिंग का पैमाना बहुत सीधा है। विश्‍व बैंक हर कुछ समय के बाद यह सुझाता है कि राज्यों को अपने यहां कौन-कौन से आर्थिक सुधार करने चाहिए। बाद में राज्यों द्वारा किए गए सुधारों के आधार पर उनकी रैंकिंग तैयार की जाती है। यह मामला सिर्फ सुधार का नहीं है। निवेशक

प्राणियों का दुश्मन है मानव

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) पृथ्वी पर अपने आप को सबसे उम्दा जीव माननेवाला मानव अपनी करतूतों से अब दूसरे प्राणियों के लिए घातक होता जा रहा है। मानव की लोभ लिप्सा के शिकार अन्य जीवों को होना पड़ रहा है। हम न केवल उनका भक्षण कर रहे हैं बल्कि उनके रहन सहन को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। यहां तक कि हम अपने रहने के लिए उनके इलाके पर दखल करते जा रहे हैं। मानवों की आबादी तो बढ़ती जा रही है लेकिन अन्य जीवों पर संकट बढ़ता जा रहा है।  डब्लूडब्लूएफ की ताजा रिपोर्ट ने हमें एक बार फिर याद दिलाया है कि इस धरती पर जीवन कितना कठिन होता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक वन्य जीवों का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा विलुप्त हो जाएगा। डब्लूडब्लूएफ यानी वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की 2016 की रिपोर्ट विस्तार से बताती है कि प्रजातियों के लुप्त होने का यह सिलसिला कोई नया नहीं है। 1970 से 2012 के बीच मछलियों, पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचरों और सरीसृप जंतुओं का 58 फीसदी हिस्सा समाप्त हो गया। इसी अवधि में स्थलीय जंतुओं की आबादी में 38 फीसदी, मीठे पानी में रहने वाले जीवों की आबादी में 81 फीसदी और समुद्र

अब भ्रामक विज्ञापन किये तो खैर नहीं

एक हफ्ते में गोरापन और 15 दिन में मोटापा कम करने जैसे तमाम विज्ञापन आपने टीवी पर देखे होंगे। हजारों- लाखों लोगों ने ऐसे प्रोडक्ट्स को खरीदा होगा जिससे वह एक हफ्ते में गोरे हो जाएं या फिर 15 दिन में अपना मोटापा कम कर लें। कई बार इनसे लोगों को फायदा होता है लेकिन बहुत बार वह धोखे का शिकार हो जाते हैं। टेलीविजन सहित तमाम संचार माध्यमों का मूल काम समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों को उजागर करना होता है, जिस से भोली-भाली जनता इन सब के चक्कर में ना पड़ें और जनता की मेहनत की कमाई को इन लूटेरों द्वारा लूटे जाने से बचाया जा सके। झूठे वादे और भ्रम ़फैलाने वाले विज्ञापन के कार्यक्रमों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सरकार ने कई नियम बनाए  है पर इसके बावजूद इनका सही समय पर प्रयोग ना किये जाने के कारण इसका असर नाकाफी हो जाता है। ढेरों भ्रामक विज्ञापन इन दिनों प्रचार माध्यम खासकर टीवी पर  प्रसारित हो रहे हैं। उनमें से कही बाबा का दरबार लग रहा है तो कोई फिल्मी सितारा संधी-सुधा तेल बेच रहा है या फिर शनिदेव का प्रकोप या यंत्र तंत्र के विज्ञापन। ये लोगों को जिंदगी को रातों रात बदलने का दावा कर, अपना माल

कश्मीर पर गपबाजी से क्या हासिल होगा ?

पीओके को लेकर गरमागरम बयानबाजी के बीच हमारे कश्मीर में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहा। कश्मीर पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान को जवाब देने पर ज्यादा जोर रहा। राज्य के लिए किसी ठोस राजनीतिक पहल की शुरुआत का कोई संकेत नहीं मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक में कश्मीर की तमाम समस्याओं के लिए सीमा पार से हो रही आतंकी घुसपैठ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) भी हमारा है। अब पाकिस्तान को पीओके और बलूचिस्तान में अत्याचार पर जवाब देना होगा। पिछले एक महीने से, जब से कश्मीर में हिंसा का यह दौर शुरू हुआ है, तब से पाकिस्तान हमारे खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है। वह कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन का हल्ला मचा रहा है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पीओके में भी हालात बेहद खराब हैं। हाल में वहां हुए चुनाव में जबर्दस्त धांधली हुई है और लोगों का पाक सरकार के खिलाफ आक्रोश उफान पर है। धांधली के विरोध में स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए। उनका आरोप था कि चुनाव में मुस्लिम लीग को जिताने के लिए आईएसआई ने धांधली करवाई। विरोध करने वालों को सेना और पुलिस ने जम कर पीटा। वहां

डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये

डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) गाय, दलित, हिंदू, अल्पसंख्यक, बीफ, योग और पता नहीं क्या-क्या। इनके बीच क्या समानता है, यह तो फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉयोलॉजी और मॉलीक्यूलर साइंस के ज्ञाता ही विस्तार से बता पायेंगे, लेकिन हम जैसे मंद ब्ाुद्धि इनके बीच एक ही समीकरण को कॉमन मान सकते हैं। वह है वोट। वोट के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। अपने 56 इंच वाले महापुरुष भी अगर भाव विभोर होकर इस पर बयान दे बैठें तो इसमें आश्‍चर्य कैसा? कांग्रेस, बसपा, सपा सहित सभी पार्टियां इन मुद्दों पर पहले ही स्वत्वाधिकार जमाये बैठी है। हालांकि ढके छुपे शब्दों में वे भी स्वीकार कर रहे हैं कि दो साल बाद ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाय, मानवता और आपसी भाईचारे पर खुलकर जो बोला, वह समय की मांग थी और प्रशंसनीय भी है। इससे निश्‍चय ही एक अच्छा संदेश गया है। यदि वह शुरू में ही इस पर बोलते, तो कुछ और बात होती। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण से जल, जंगल व जमीन के साथ सिर्फ गाय ही नहीं, पूरा पशुधन तेजी से लुप्त हो रहा है। बेचारी गाय ही नहीं, अब तो इंसान की भी कहां कदर रह गई है? व

नाम की महिमा निराली

Lokenath Tiwary लोकनाथ तिवारी बचपन में एक कहावत सुनी थी अंधे का नाम नयन सुख यानि ग्ाुण के विपरीत नाम होना। बचपन में ऐसे नामों को हंसी का पात्र माना जाता था। हमारे यहां तो नाम बिग़ाडने की भी परंपरा थी। अगर किसी अनपढ़ गंवार पगलेट का नाम सुखराम होता था तो उस गांव जवार के लोग अपने बच्चों का नाम सुखराम रखने से बचते थे। हमारे यहां नाम रखने का दौर भी चलता था। सुनील गावसकर के जमाने में सुनील और राजेश खन्ना के जमाने में राजेश नाम के दर्जनों बच्चे एक ही गांव में पाये जाने लगे। अब कहियेगा कि आज नाम को लेकर चर्चा की क्या सूझी। हमारी मुख्यमंत्री राज्य का नाम परिवर्तन करनेवाली हैं। पश्‍चिम बंगाल का नाम बदलकर बंगला या बंगो किया जा सकता है। वहीं पश्‍चिम बंगाल को अंग्रेजी में बंगाल के नाम से जाना जायेगा। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि नाम बदलने से हमारा राज्य आगे आ जायेगा। हाल के सालों में देश के कई शहरों का नाम बदला गया था। हरियाणा में गुड़गांव का नाम बदलकर गुरूग्राम कर दिया गया था। इससे पहले कई राज्यों का भी नाम बदला गया। इनमें हैदराबाद शामिल है जिसका नाम बदलकर आंध्र प्रदेश कर दिया गया था। वहीं मद्र

कर्जखोरों की महिमा के आगे नतमस्तक जनता

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हमारे दादा जी कहा करते थे कर्ज लेकर घी पीने से बेहतर है खाली पेट ग्ाुजर बसर करना। दादा जी की बचपन में दी गयी यह सीख आज भी गांठ बांध कर बैठा हूं, या यूं कहिए कि ग्ाुजर बसर ही कर रहा हूं। वर्तमान में कर्ज लेकर चांदी काटनेवाले लोगों की महिमा देखकर लगता है कि दादा जी की सीख पर अमल कर मैं अपना और अपने परिजनों का भ्ाूत, वर्तमान और भविष्य बिगाड़ रहा हूं। वर्तमान हालत देखकर दादा जी की कही बात के विपरीत कर्जखोर शान से मालामाल जीवन जी रहे हैं। पूछियेगा कि आज सुबह-सुबह दादा जी की सीख का रोना क्यों रो रहा हूं तो इसके पीछे की बात भी सुन ही लीजिए। हाल ही में ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयी एसोसिएशन (एआईबीईए) ने बैंकों से कर्ज लेकर साफ हजम कर जाने वाले 5610 कथित उद्यमियों की जो लिस्ट जारी की है। लोगबाग विजय माल्या को तो पानी पी पीकर कोसते हैं, जोे करीब नौ हजार करोड़ रुपया लेकर विदेश में जा बैठे, लेकिन इस लिस्ट पर नजर डालेंगे तो समझ में आ जायेगा कि उनके जैसे बहुतेरे लोग आज भी हमारे देश में बिंदास घूम रहे हैं। इस लिस्ट से पता चलता है कि भारत में कर्जखोरी बड़े लोगों का शगल बन गया

खुशनसीब हो जो ऐसे रहनुमा मिले

लोकनाथ तिवारी, Lokenath Tiwary अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुझे नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं। अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है। आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे। मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली। अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले कई जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है। ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे। बाकी लोग क्या जाने पीर पराई। उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समझेंगे। यहां तो सूर्योदय देखना साल में एकाध दिन ही नसीब हो पाता है। आधी रात के बाद घर पहुंचते हैं और रमजान के सहरी के समय पर डिनर लेते हैं। उल्लुओं की तरह सोते हैं। जब तक बिस्तर से निकलते हैं तब तक लोगबाग अपने-अपने काम में मगन रहते हैं। बीबी के नसीब से मिली नौकरी की बड़ाई का क्या करूं। खोलकर बता दूं कि पत्रकारिता कर किसी तरह गुजर हो रहा है। खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी। बात

खुद पर हंसना आसान नहीं

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) खुद पर हंसना आसान नहीं होता। जो ऐसा करते हैं वे जिंदादिल होते हैं। सिख भी उन्हीं में से एक हैं। स्वयं पर बनाये गये चुटकुलों पर अट्टाहास कर वे यह साबित करते हैं कि वे दूसरों की तुलना में कितने उदार हृदयी और ख्ाुले दिलवाले हैं। भले ही सिखों के एक वर्ग को उन पर बनाये गये च्ाुटकुले रास न आते हों लेकिन आज तक हमारे सरदार मित्रों ने इस तरह की भावना नहीं दर्शायी है। उन पर चुटकुले सुनाकर तो कई बार सुनानेवाले ही हंसी के पात्र बन जाते हैं। अब अदालत में सिखों पर बने चुटकुले पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर शोर से उठायी जा रही है। सिखों पर बनाए जाने वाले चुटकुलों को किस तरह से रोका जाए, इसके तरी़के बताने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सिख समूहों को छह सप्ताह का समय दिया है।  गौरतलब है कि सिख चुटकुलों पर पाबंदी की मांग करते हुए दिल्ली की 54 वर्षीय सिख वकील, हरविंदर चौधरी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। अदालत में दायर अपील में चौधरी ने कहा था कि इंटरनेट पर पांच हज़ार वेबसाइट हैं जो सिखों पर चुटकुले बनाकर बेचती हैं। इन चुटकुलों में सिखों को बुद्धू, पागल, मूर

कैसे सुधरे रिश्‍वत देने की आदत

कैसे सुधरे रिश्‍वत देने की आदत लोकनाथ तिवारी रिश्‍वत देना अब हमारी आदत बन गयी है। बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र से लेकर मृत्यु प्रमाणपत्र तक के लिए हम इतनी आसानी से रिश्‍वत ऑफर कर बैठते हैं, जितनी आसानी से हमारे नेता झ्ाूठ झ्ाूठ बोलते हैं। रिश्‍वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक नियम हो गया है। अब लोग रिश्‍वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो इस बात का विरोध करता है, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी या पागल मान लेते हैं। बाबा आदम के जमाने में शायद रिश्‍वत लेने वालों को समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। अब ऐसा नहीं है। अब तो बाकायदा उनका ग्ाुणगान किया जाता है। उनकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं। पहले शपथ दिलायी जाती थी कि ईमानदारी से कर्तव्य का पालन करेंगे। अब भी शपथ लेते हैं पर पहले ही घ्ाूस देकर सर्विस हासिल करनेवालों से शपथ पर कायम रह पाना उचित भी नहीं कहा जा सकता। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या रिश्‍वतखोरी की हो गयी है। अब तो लोग इसे समस्या मानना ही बंद कर दिये हैं। इसे रोजमर्रा के  जीवन का एक हिस्सा मान लिये हैं। शासन प्रणाली के हर छोट

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बुधवार को 20 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण करने के चलते भारत मानव इतिहास में ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया है। इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पीएसएलवी सी 34 के ज़रिए 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जिनमें 3 स्वदेशी जबकि 17 विदेशी उपग्रह हैं। इनमें कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों द्वारा तैयार स्वयं’ नाम की एक सैटेलाइट भी शामिल है। इससे पहले सिर्फ रूस और अमेरिका ही ये कारनामा कर सके हैं। 20 उपग्रह एक साथ भेजकर भारत अब रूस और अमेरिका की श्रेणी में पहुंच गया है। साल 2013 में अमेरिका ने 29 जबकि साल 2014 में रूस ने इसी तरह 33 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए थे। भारत द्वारा भेजे गए उपग्रहों में कनाडा, अमेरिका, इंडोनेशिया और जर्मनी के उपग्रह भी शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि इसरो ने इस तरह का प्रक्षेपण पहली बार किया है। इससे पहले इसरो ने सिंगल मिशन के तहत 2008 में एक बार में 10 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे। इसरो ने अपना पहला रॉकेट साल 1963 में लॉन्च किया था। शुरुआत के ठीक 9 साल के अन्दर वर्ष 1975 में इसरो ने पहला उपग्रह सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा मे

हाथी की सवारी कर, महावत ना बन

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हाथी की सवारी करना आसान है यह तो मैं बखूबी जानता हूं। आखिर बचपन में ही उसकी सवारी जो किया है। भैया की बारात में महावत (पिलवान) की मदद से बड़ी आसानी से हौज पर बैठ कर आनंद उठाया था। अब हाथी की सवारी करते करते कोई महावत बनने का मुगालता पाल बैठे तो उसकी हालत भी स्वामी प्रसाद मौर्या जैसी होनी लाजिमी है। इतिहास गवाह है कि सुश्री मायावती ने बहुजन समाज पार्टी में कभी भी अपना वारिस पैदा नही होने दिया। पार्टी छोड़ने से पहले बसपा के नंबर दो नेता स्वामी प्रसाद मौर्या हों या नसीमुद्दीन सिद्दीकी और फिर चाहे वो सतीश चन्द्र मिश्र के रूप में पार्टी के सवर्ण चेहरा ही क्यों ना हों। ये सभी बसपा में किसी कम्पनी के सीईओ की भूमिका से ज्यादा नही दिखे। ऐसे सीईओ जो अपने वेतन के मुताबिक काम करते हैं और निर्णय का काम बॉस यानि सुप्रीमो मायावती के हवाले होता है। भारतीय राजनीति की ये विडम्बना ही है जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सबसे बड़े राज्य में एक राष्ट्रीय दल की आंतरिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था इतनी कमजोर हो। खैर, ये तो भारत में इंदिरा गांधी के कांग्रेस और फिर दक्षिणी द्रविड़

जोगी जी धीरज नाहि धरे

शरद पवार व ममता बनर्जी को अपवाद माना जाये तो अब तक अपनी मदर पार्टी को छोड़कर अलग होनेवालों को सफलता कम ही मिली है। हां ज्योति से ज्वाला बनने का क्षणिक सुख उनको अवश्य मिलता है। अब छत्तीसगढ़ के छत्रप का क्या हाल होगा यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी आज से ठीक तीस वर्ष पूर्व इसी जून माह में मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। कांग्रेस में अपनी राजनीतिक यात्रा के तीन दशक पूरे करने के अवसर पर श्री जोगी ने पार्टी हाईकमान को संदेश भेजा है कि वे पृथक क्षेत्रीय दल बनाने की राह पर हैं। वे जितने जल्दी अपनी इस धमकी पर अमल करें, उतना ही बेहतर। उनके लिए भी व मातृसंस्था के लिए भी। उनके लिए इसलिए कि ढाई साल बाद होने वाले चुनावों में यदि किसी दल को बहुमत न मिला तो किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका उन्हें मिल जाएगा। कौन कहे कि वे किंग ही न बन जाएं! कांग्रेस के लिए जोगी का अलग हो जाना इस लिहाज से मुआफिक होगा कि पार्टी को रोज-रोज की अन्तर्कलह तथा भीतरघात से छुटकारा मिल जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने पर पार्टी में भारी विरोध के बावजूद हाईकमान की सदिच्छा स

राष्ट्रीय राजनीति मेंं दीदी की धमक

राष्ट्रीय राजनीति मेंं दीदी की धमक राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का आना अब बस समय की बात है। राष्ट्रीय स्तर पर उनके जैसे नेतृत्व की जरूरत सभी को महसूस होने लगी है। ममता बनर्जी भी शायद इसके लिए अंदर से तैयार हैं। अंदर की बात है कि अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भी उन्होंने एक नाम सोच लिया है। इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने भाई के बेटे और सांसद अभिषेक बनर्जी को काफी प्रचारित किया। जीत के बाद भी मैच विनर और मैन ऑफ द मैच के रूप में बड़े बड़े पोस्टर और बैकर राज्य व्यापी दिखने लगे हैं। च्ाुनाव में भारी सफलता का श्रेय भी अभिषेक बनर्जी को दिए जाने के ममता के रवैये ने यह साबित किया है कि अभिषेक ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हो सकता है इससे पार्टी के दूसरे नेताओं में भविष्य में नाराजगी  भर जाए लेकिन बहरहाल सब ठीक है। दीदी उत्साहित भाव से चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार दिख रहीं है।  भाजपा और कांग्रेस विरोधी फ्रंट के नेता के रूप में ममता बनर्जी के नाम पर चर्चा श्ाुरू भी हो च्ाुकी है। ममता की ताजपोशी के मौके पर लालू प्रसाद यादव न

किडनी का काला कारोबार

पश्‍चिम बंगाल के राजारहाट से किडनी रैकेट के कथित सरगना टी राजकुमार राव की गिरफ्तारी और प्रतिष्ठित अस्पताल से उसके गहरे रिश्ते ने चिकित्सा के पेशे को कलंकित कर दिया है। भगवान की संज्ञा पाने वाले डॉक्टरों के भी इसमें गहरी लिप्तता पायी गयी है। दिल्ली पुलिस ने इसे एक अतंरराज्यीय किडनी रैकेट होने का दावा किरा है। कहा जा रहा है कि राव नेपाल, श्रीलंका और इंडोनेशिरा में भी ऐसे ही रैकेटों से जुड़ा है। वह जालंधर, कोरंबटूर और हैदराबाद में ऐसा ही रैकेट चलाने को लेकर पुलिस की नजर में था। इस मामे में अब तक दस लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। चार से पांच लाख रुपये मेंं  किडनी खरीद कर चालीस लाख में बेचनेवाले इस गिरोह के तार कई रसूखवाले लोगों से ज्ाुड़े हैं। दिल्ली के अपोलो अस्पताल से किडनी रैकेट का पकड़ा जाना और भी शर्मनाक है। इसने हमारे स्वास्थ्य तंत्र के साथ समाज की बेचारगी को भी जाहिर किया है। पुलिस ने इस काले कारोबार में शामिल अस्पताल के दो कर्मचारियों सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। कहा जा रहा है कि ये लोग देश के कई राज्यों से गरीबों को दिल्ली लाकर उनकी किडनी का सौदा करते थे। डील 30 लाख रुपये की

‘मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है’

अमेरिका-भारत के रिश्ते भले ही परवान चढ़ रहे हों, लेकिन अमेरिकी सीनेट में भारत को विशेष दर्जा देने वाला संशोधित विधेयक पास नहीं हो सका। भारत को विशेष दर्जा देनेवाला अमेरिकी विधेयक नामंज्ाूर हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के एक दिन बाद शीर्ष रिपब्लिकन सीनेटर जॉन मैक्वेन ने इस संशोधन विधेयक का प्रस्ताव पेश किया था। इसका मतलब है कि भारत अब अमेरिका की नजरों में खास नहीं रहा। मोदी जी ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान पर सब्सिडी ने देने पर यूएस कांग्रेस की प्रशंसा की थी। लेकिन उनके लौटते ही यूएस कांग्रेस ने पाकिस्तान को 80 करोड़ की मदद का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं, उससे भारत को नजरअंदाज करके पाकिस्तान को अपना रणनीतिक साझेदार बताया। ऐसे में मोदी की विदेश नीति की पोल खुल गयी। मोदी ने समय के साथ ही पैसा बर्बाद किया, लेकिन अमेरिका से कोई फायदा न उठा सके। ऐसे में सरकार का नारा ‘मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है’ के स्थान पर अभी ‘मेरा देश बदलेगा, आगे बढ़ेगा’ कहना अधिक उचित रहेगा क्योंकि दो वर्षों में धरातल पर विशेष बदलाव नहीं हुआ है। प्रधानमंत्

महंगाई की मार से ज्ाूझती जनता?

महंगाई की मार से ज्ाूझती जनता? मॉनसून देर से आगे बढ़ रहा है और अब तक 22 फीसदी कम बारिश हुई जिसका असर खाने-पीने की चीजों पर पड़ रहा है। सब्जियों की महंगाई आसमान को छूने लगी है। महंगाई ने इस वक्त लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। खासतौर पर सब्जियों के दाम में जिस तरह की आग लगी है उसने लोगों के घर का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। आपको ये जानकर शायद आश्‍चर्य होगा कि आलू, टमाटर जैसी रोजमर्रा की सब्जियों ने भी महंगाई की हदें तोड़ दी हैं। जहां टमाटर पिछले 2 साल में 400 फीसदी से ज्यादा महंगा हो चुका है, वहीं आलू 1 साल में करीब 60 फीसदी तक चढ़ चुका है। दालों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले 2 सालों में दालें 100 फीसदी तक महंगी हो चुकी है। अब सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि आलू, टमाटर और दाल एक साथ महंगे हुए हैं जिससे लोगों का बजट पूरी तरह से बिगड़ चुका है। गनीमत है कि दाल और टमाटर की कीमतों पर हल्ला मचते ही केंद्र सरकार ने मान लिया कि महंगाई बढ़ रही है। कई बार ऐसा भी होता है कि सरकारें कीमतों में बढ़ोतरी की बात को ही गोल कर जाती हैं। हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान इस सरकार का रवैया भी ऐसा ही था। बहरहाल, बुधवा

जीत चाहे जिसकी हुई, पर हारी कांग्रेस

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए भारी मायूसी लेकर आए हैं। जहां एक तरफ असम और केरल में हारकर कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है, वहीं पश्‍चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी पार्टी के हाथ मायूसी ही लगी है। असम में बीजेपी ने पहली बार कमल खिलाकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया है। बुजुर्गवार नेता तरुण गोगोई लाख कोशिशों के बावजूद चौथी बार अपनी सरकार बनाने में नाकाम रहे। हालांकि अब कांग्रेस के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि राख से भी खड़े होकर दिखाएंगे। खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है कि हम जनता का भरोसा जीतने के लिए फिर से कोशिश करेंगे। हम आपको राज्यवार बताते हैं कि किस तरह कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवाई और विधानसभा चुनावों का यह रण हार बैठी। विधानसभा चुनावों में इस बार सबसे अधिक चर्चा असम को लेकर हुई। असम में कांग्रेस की सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल पूरा किया था। तरुण गोगोई चौथे कार्यकाल के लिए जनता की अदालत में पहुंचे थे। उधर, बीजेपी ने भी असम का किला फतह करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा था। विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों ने जीत के दावे कि

इस च्ाुनाव में ममता की जीत के मायन

इस बार ममता बनर्जी को अपने दम पर बहुमत मिली है। छह चरणों में हुए मैराथन च्ाुनाव के दौरान प्रचार से लेकर सारी रणनीतियों को बनाने का दारोमदार जिसके कंधे पर था वह ममता बनर्जी ही थीं। स्टार प्रचारक कहें या कुशल रणनीतिकार, हर भ्ाूमिका में उनकी प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी। केंद्र की भाजपा सरकार भी उनको टार्गेट कर रही थी। च्ाुनाव के दौरान एक के बाद एक स्टिंग वीडियो जारी किये गये, जिसमें तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं को सरेआम पैसे लेते हुए दिखाया गया। फ्लाईओवर हादसे के बाद भी विपक्ष ने इसके लिए तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराया। पिछली बार अर्थात 2011 में हुए पश्‍चिम बंगाल राज्य विधान सभा च्ाुनाव में ममता बनर्जी ने 34 साल से लगातार सत्ता में रही वाममोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका था। उस समय केंद्र में सत्ता धारी यूपीए सरकार का तृणमूल को भरपूर समर्थन मिला था। इस बार परिस्थितियां बिलकुल विपरीत थीं। सारदा घोटाला और नारदा स्टिंग ऑपरेशन में घिरी तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी लांछन से उद्विग्न हो गयी थीं। आखिरकार दक्षिण कोलकाता की एक रैली को संबोधित करते हुए उन्हें कहना पड़ा था कि  दो थप्पड़ मार लो, लेकि