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घर की बात घर में ही रहे तो बेहतर

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची विकास की हड़बड़ी में वास्को डि गामा बने नेताजी को हर जगह बस एक ही राग सूझ रहा है. जवाब में जनता भी टेप रिकॉर्डर की तरह तालियां बजा रही है. बीच-बीच में कोरस ध्वनि में हौसला बढ़ाती गूंज भी सुनायी देती है. ऐसे में नेताजी को खुशफहमी होना लाजिमी है.    लेकिन काका सरीखे लोगों को यह तनिक भी नहीं भा रहा. उनका मानना है कि अपने घर की बात घर की चहारदीवारी में ही रहे तो मान-मर्यादा बची रहती है.    हम अपनी गंदगी का ढिंढोरा बाहर पीटने लगेंगे, तो बाहरवाले बस मजा लेंगे. अपने सदाबहार भाषणों से रॉकस्टार को मात देते नेताजी जब कहते हैं कि गंदगी करनेवाले गंदगी करके चले गये, अब उसे साफ करने के लिए उन्होंने भारत में स्वच्छता अभियान चला रखा है, तो कहीं न कहीं वह अपने घर की छवि धूमिल करते ही नजर आते हैं.   लोकतांत्रिक देशों में कहां नहीं विरोधियों के खिलाफ जहर उगला जाता है? हर जगह विपक्षी नाक में दम किये रहते हैं, लेकिन उनके नेता बाहर जाकर देश का महिमामंडन ही करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी उनके नेता हैं, तो उनसे सीख भी लेनी चाहिए. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत