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Showing posts from January, 2015
लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुङो नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं. अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है. आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे.  मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली. अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है. ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे. बाकी लोग क्या जाने पीर पराई.  उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समङोंगे. खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी. बात हो रही है नसीब की. अपने मोदी जी ने तो दिल्ली की चुनावी रैली में अपने नसीब की दुहाई देकर सभी की बोलती ही बंद कर दी. मोदी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम उनके नसीब से कम हुए हैं.  अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण आम आदमी का पैसा बचता है, तो बदनसीब को लाने

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आप गंगासागर जायें और वहां रास्ता न भटकें, ऐसा हो ही नहीं सकता. एक ही तरह के रास्ते व एक ही तरह के होगला (एक तरह का पत्ता) के आवास दूर-दूर तक दिखते हैं. ऐसे में अच्छे-अच्छे अपने झुंड से बिछड़कर कलपने लगते हैं. ऐसे लोगों की मददगार संस्था भी है. बजरंग परिषद. इनके शिविर के सामने की यह घटना देखिए.  ए बाबू हमरे बड़का के बाबूजी भुलाइ गइल हवे, दुइ घंटा से खोजत बानी. मुंह फुकवना के कवनो पता नइखे चलत. इतना कह कर प्रौढ़ महिला बिलखने लगी. बार-बार बड़का के बाबू को खोजने की गुहार लगाती महिला ने बताया कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आयी थी. सुबकते हुए पति के डील-डौल व हुलिया का बारीकी से बखान करती महिला से जब पति का नाम पूछा गया तो वह इधर-उधर ताकने लगी. अपने मलिकार (पति) का नाम जुबान पर लाना उसके लिए कठिन था. मर जायेगी,  पति को गालियां बकेगी लेकिन उनका नाम नहीं पुकारेगी. चिढ़ कर जब वॉलंटीयर ने कहा कि नाम नहीं बताने पर माइक में घोषणा नहीं करायी जायेगी, तब महिला ने अपने पौराणिक ज्ञान का परिचय देते हुए बताया, जवन लक्ष्मण के बाण

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन देश की राजधानी में चुनावी डुगडुगी बजते ही आदर्श समाजसेवी नेताओं में नीतिवाद (मलाई) की लहरें हिलोर मारने लगी हैं. अपने अंदर परिवर्तन की भावना को रोक पाने में असमर्थ मलाईवादी महापुरुषों की नये (सत्ताधारी) नेतृत्व के प्रति अगाध भक्ति जग गयी है. कल तक पानी पी-पीकर जिसे कोसते थकते नहीं थे, आज उनमें विकास पुरुष दिखने लगे हैं. इसके पीछे अंतरात्मा की आवाज और पता नहीं क्या-क्या और किस-किस की दुहाई देने लगे हैं. ऐसे लोग स्थान काल पात्र से परे होते हैं. ऐसे लोगों की पौध भारत के हर प्रदेश में लहलहाती नजर आती है. बिना खाद-पानी के भी इस तरह के लोग सदा फलते-फूलते रहते हैं. लगभग हर बार किसी न किसी चुनाव के मौके पर ही दल के साथ इनका दिल परिवर्तन हुआ. इसमें राजनीतिक विचारधारा कभी आड़े नहीं आयी. तभी तो इन सदाबहार मलाईवादियों को न तो भाजपा में जाने से परहेज है और न कांग्रेस में और न ही समाजवादी में. एक अदद चुनावी टिकट के लिए मलाईवाद का यह खेल कोई नया नहीं है. यह खेल वर्षो से चल रहा है.  चुनाव में सबको  एडजस्ट  करना मुश्किल होता है, लिहाजा टिकट कटने या नहीं मिलने का