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Showing posts from April, 2014

मरने के जुगाड़ में जीने की मजबूरी

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) बड़े भले आदमी थे. जाते-जाते भी किसी को परेशान नहीं किया. भगवान ऐसी मौत सबको दे. बेचारे सोय-सोये ही चले गये. वह भी छुट्टीवाले दिन, सुबह. किसी को परेशान नहीं होना पड़ा. मरनेवाले की अनायास ही प्रशंसा करना हमें सिखाया गया है. शायद यही कारण था कि सुबह-सुबह अपने शतायु पड़ोसी की मौत के बाद हर आने-जाने वाला इसी तरह अपना शोक जता रहा था. अचानक मुङो अपना ख्याल आ गया. पहली बात तो यह कि एक हिंदी पत्रकार शतायु कैसे हो सकता है. फिर अपने परिजन व पड़ोसियों को सहूलियत हो, ऐसी मौत कैसे आये. इसे लेकर उधेड़बुन में फंस गया. सोचता हूं, अभी ही कौन से मजे से जी रहा हूं. रोज मरने से अचानक मौत की कल्पना उतनी बुरी भी नहीं लगती. सोचता हूं कि छुट्टी के दिन मरने पर कैसा रहेगा. अंतिम यात्र में सभी शामिल हो सकेंगे. फिर, डर भी लगता है कि उनकी छुट्टी बरबाद होगी, मन ही मन गालियां बकेंगे. फिर सोचता हूं, हम पत्रकारों को छुट्टी मिलती भी कहां है. शाम को मरने पर फजीहत ही होगी. कोई पूछने भी नहीं आयेगा. शाम को तो पत्रकारों की शादी भी नहीं होती. आधी रात के बाद शादी का मुहूर्त निक

जनता के बीच खड़े अभिनय सम्राट

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) चुनाव की चार दिन की चांदनी खत्म होने दीजिए, फिर जनता को उसकी औकात का पता चल जायेगा. अभी वह खुद को जनार्दन माने बैठी है. और, यह गलतफहमी हो भी क्यों ना? बड़े-बड़े लोग उसे पूज जो रहे हैं. उसकी खुशामद में बिछे जा रहे हैं. कल तक जो काले शीशेवाले वातानुकूलित वाहनों से सरपट निकल लेते थे, अब वे धूल- कीचड़ भरी गलियों में ‘मैले-कुचैले’ बच्चों को भी गोद में उठाने से परहेज नहीं कर रहे. नेता मंच से खुद को सेवक और जनता को मालिक कह रहे हैं. पता नहीं कब से यह जुबान बोली जा रही है? इसका कोई पुख्ता दस्तावेज भले ही ना हो, लेकिन हमारे काका बताते हैं कि गांधी युग से ही नेताओं ने जनता जनार्दन की जुबान अपनायी हुई है. पहले इनमें थोड़ी बहुत शर्म बची थी, चुनाव के बाद भी जनता के बीच आते-जाते रहते थे. लेकिन, अब निहायत बेशर्म और हद दरजे के शर्म-निरपेक्ष हो गये हैं. चुनाव के समय जनता के बीच जाकर स्वयं को उनका सेवक कहते हैं, जबकि अंदर ही अंदर वे खुद को उनका भाग्यविधाता मानते हैं. कमर तक झुक कर जनता को प्रणाम करने वाले यूं अभिनय करते हैं, जैसे पैदाइशी विनम्र हों. चु

बयानवीर ‘माइक के लालों’ का बवाल

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) बयानवीर नेताजी ने स्वीकार किया है कि दस वर्षो तक सत्ता के शीर्ष पर रहा  व्यक्ति दुर्घटनावश उस पद पर पहुंच गया था. ऐसा पीएम के एक पूर्व सलाहकार की  ‘ऑथेन्टिक’ पुस्तक पर मुहर लगाते हुए कहा जा रहा है. दुर्घटनावश सरकारी अस्पताल  के टुटहे बेड तक पहुंचते सुना था, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी तक.. यह बात हाजमोला  खाकर भी हजम होने लायक नहीं लगती. लगता है इन चाटुकारों का मौनी बाबा से काम सध चुका है. अब उनको दूध की मक्खी  बनाने में इनको कोई हर्ज नहीं दिखता. उनकी शान में कसीदे पढ़नेवाले चमचानुमा नेता  भी अब उनके बारे में टिहुक बानी बोल रहे हैं. सब समय का फेर है. या यूं कहिए कि  चुनावी समर में सब जायज मान लिया गया है. ऐसा नहीं होता तो बलात्कारियों से हमदर्दी  दिखानेवाले को नेताजी नहीं कहा जाता. सीमा पर शहीद होनेवालों को जाति व धर्म के  आधार पर नहीं बांटा जाता. अपने ही देश के पूर्व प्रधानमंत्री की शहादत को उनकी  करतूत की सजा नहीं बताया जाता. शालीनता को ताक पर रख कर चुनावी सभा में  अपने समर्थकों की वाहवाही लूटने के लिए सरेआम अपश

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) आजकल चुनाव के अलावा कुछ सूझता नहीं. सूझता भी है तो किसी को भाता नहीं. हर तरफ चुनावी रंग सिर चढ़ कर बोल रहा है. चुनाव में किसी की चांदी है, तो किसी का सोना. किसी की पांचों अंगुलियां घी में हैं, तो किसी का सिर कड़ाही में. सभी चुनाव की बहती गंगा में हाथ धोने में जुट गये हैं. ठलुओं की निकल पड़ी है. सुबह से ही मुंह धो कर देश निर्माण में अपना योगदान करने निकल पड़ते हैं. अपना योगदान करने के लिए ये जनता को जागरूक करते हैं, लोगों को लुभाते हैं. नेताओं की नकल करते हैं. नेताजी के आगे-पीछे, दायें-बायें डोलते हैं. कई बार तो ये नेताओं से भी आगे निकल जाते हैं. नेताजी भी इनको चुनाव भर ङोलने के लिए मजबूर हैं. इनकी ऊल-जुलूल बातें भी ध्यानमग्न होकर सुनते हैं. कई बार तो नेताजी इनके बहकावे में आ भी जाते हैं और इनकी सिखाई-पढ़ाई बातों को मंच से चटपटे लहजे में बोल देते हैं. कई बार इस चक्कर में इनकी भद पिट जाती है. दो दिन पहले ही एक शेर सरीखे नेता ने झुमका गिराने की बात कही है. उनका कहना है कि अब झुमका नहीं गिरेगा, बल्कि सब कुछ गिर जायेगा. गिरने और गिराने में हमारे