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Showing posts from 2014

परले राम कुकुर के पाला

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आज सुबह-सुबह कउड़ (अलाव) तापते हुए काका का आलस थोड़ा कम हुआ तो पैर पसारते हुए बड़बड़ाये. परले राम कुकुर के पाला, खींचि-खांचि के कइलस खाला. बचपन में सुनी गयी कहावत का अर्थ, उस समय बिलकुल पता नहीं था. अब थोड़ा-थोड़ा समझ में आता है. लेकिन अचानक काका के मुंह से इस कहावत को सुनकर जिज्ञासा हो उठी. आखिर किस महानुभाव के बारे में काका विचार कर रहे हैं. कौन राम किस कुकुर के पास आ कर अपनी दुर्गति करा रहे हैं. बिना पूछे रहा नहीं गया. आसपास बैठे अन्य लोग भी जानना चाहते थे. बिना किसी मनउव्वल के काका भी प्रसंग पर आ गये. कभी जय श्री राम का नारा देकर राम की छवि पर अधिकार जमाने की कोशिश करनेवाले अब गीता के पीछे पड़ गये हैं. ऐसा कर ये अपना कौन सा भला करना चाहते हैं नहीं पता, लेकिन राम और गीता की दुर्गति जरूर कर बैठते हैं, इसमें कोई शक नहीं है. काका ने कहा कि देखना अब इसे लेकर सेक्युलरबाज अपने गाल बजायेंगे, वामपंथी अपने गहरे लाल रंग को बदरंग होते देखेंगे और दलितों के बेटे-बेटियां सवर्ण राजनीति के विरोध में विष वमन करते करते इधर उधर लोटते दिखेंगे. वास्वकिता तो यह है कि य

असली चमचे कभी पिटा नहीं करते

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची   पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया  में एक रोचक आलेख पढ़ा- ‘टाइम टू टैकल द ग्रेट इंडियन चमचा’. इसे पढ़ कर मुझे  लगा कि अखबारों को दिन में सपने देखने की आदत है. चमचा शब्द का प्रयोग हम प्राय: ईष्र्यावश करते हैं. जब कोई दूसरा हमसे बाजी मार ले जाता है, तब उसे चमचा करार देकर खुद को तसल्ली देते हैं.    चमचा का अर्थ सभी जानते हैं, फिर भी शब्दकोश की कृपा से प्राप्त अर्थ आपको बताये देता हूं- ‘यह कलछी की तरह का एक छोटा उपकरण है, जिसमें अंडाकार छोटी कटोरी में लंबी डंडी लगी होती है, और जिससे कोई चीज उठाकर खायी या पी जाती है.’ चमचों को लेकर हमारी जो समझ हैं, उसमें यह अर्थ कितना फिट बैठता है, यह मैं आप पर छोड़ता हूं. मैं तो कहता हूं कि यह दुनिया ही चमचों की है. हम अनायास चमचागीरी में आनंदमग्न हो उठते हैं. चमचे भी अपनी चमचागीरी करवाते हैं. किसी महान व्यक्ति ने कहा है, कि गुलाम लोग ही सबसे अधिक गुलामी कराना चाहते हैं.    यह बात चमचों पर सटीक लागू होती है. दूसरों की चमचागीरी करनेवालों को भी अपनी चमचई करनेवाले प्रिय होते हैं. चमचों के महत्व को हमारे फिल्मकारों

Taken from Prabhat Khabar news paper

This interview is taken by Shri Harivansh ji  भाईश्री महान स्वतंत्रता सेनानी और गांधी जी के प्रिय पंडित रामनन्दन मिश्र के पुत्र हैं. इनका नाम है उदय राघव. माता-पिता प्यार से अन्ना कह कर पुकारते थे. अन्ना के नाम से ही मित्र बुलाते हैं. अन्ना जी ने डॉक्टरी (एमबीबीएस) की पढ़ाई की. फिर अपने वृद्घ पिता की सेवा और आध्यात्मिक साधना में निमग्न हुए. अब अध्ययन और साधना उनके जीवन के हिस्से हैं. अत्यंत मामूली ढंग से रहना. बहुत सादगी में जीना. पर दुनिया की ताजा और नवीन खबरों के साथ-साथ अध्यात्म का इतना गहरा अध्ययन जीवित लोगों में कम देखने को मिलेगा. उनके साथ बातचीत का पहला हिस्सा कल आपने पढ़ा, जिसमें उन्होंने बताया कि आज जो भी विकृतियां नजर आ रही हैं, उनका कारण है अतिशय भोग. इससे छुटकारा पाये बिना कोई मूल्य टिक नहीं सकता.  अगर ईश्वर हैं, तो जीवन में कैसे दिखते हैं? गांधी को, विवेकानंद को, रामकृष्ण परमहंस को, रमण महर्षि को या अन्य जो हमारे बड़े ऋषि-महर्षि हुए, उनको कहां दिखायी देते थे और कैसे प्रेरित करते थे? ये सारे महापुरुष, जिनका तुमने नाम लिया या जिनका नहीं लिया, वे अपने-अपने ढंग से उस म

Its taken from Prabhat Khabar दस आदमी के पास बहुत और नब्बे के पास अभाव

आज टेक्नोलॉजी ने समाज को तेजी से बदला है. इसी नयी संस्कृति की देन है, बिना शादी के लिव-इन रिलेशनशिप का जन्म. 13 नवंबर 2014 के दिल्ली के एक बड़े अखबार में पढ़ा कि अदालती आंकड़ों के अनुसार तीन साल में महज दिल्ली में लिव इन रिलेशनशिप में 12 गुणा से अधिक हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई. यह हिंसा, मार-पीट, जानलेवा हमलों से लेकर हत्या तक है.   लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद बलात्कार के आरोपों की बाढ़ आ गयी है. सिर्फ दिल्ली में, वर्ष 2013 में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों ने बलात्कार के 2049 मामले दर्ज कराये. बेंगलुरू में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं (तीन वर्ष की बच्ची से भी बलात्कार) का कोई निदान कानून-व्यवस्था या राजनीति नहीं निकाल पा रहे. इसलिए 11 नवंबर 2014 को टाइम्स ऑफ इंडिया की बड़ी खबर थी कि प्री-यूनिवर्सिटी के पहले की बेंगलुरू की शिक्षण संस्थाओं ने सुरक्षा के लिए यह तय किया है कि हर लड़की संस्थान को यह सूचना देगी कि वह कब, कहां, किससे बातें कर रही है. वह कब घर से निकलती है, कब घर पहुंचती है और कब कैंपस छोड़ती है?     दरअसल, समाज गिर चुका है. किसी गड्ढे के सबसे नीचे की सतह क

Quotes by Late PM Indira Gandhi

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‘There exists no politician in India daring enough to attempt to explain to the masses that cows can be eaten’. quotes by Late PM Indira Gandhi

Indira Gandhi the true gandhian.

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Late PM Indira Gandhi used to say that if one of my sons is weak then I need to take more care of that son. And if for taking care of that son who is weak, if someone is angry with me, I am not bothered. This was her thinking about the minorities.

हम पर भरोसा कर बनते हो बुद्धिजीवी ?

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची वंस अपॉन ए टाइम (किसी नेता को बुरा न लगे, इसलिए यूं ही लिख दिया, इसे आप करेंट घटना ही समङों) बहुत बड़े अनुभवी व्यक्ति ने यह कहते हुए सामनेवाले की बोलती बंद कर दी.. मियां बनते हो बड़का महान बुद्धिमान और मेरी बातों में आ गये. मैं अब तक फेंके जा रहा हूं और आप हैं कि मन मिजाज लगाकर हमारी बातों को तरजीह दिये जा रहे हैं. ऐसे बुद्धिहीन से तो बात करने में भी मजा नहीं आता. आप तो निरे मैंगो पीपुल निकले. न जानना न बूझना बस विश्वास कर लेना. ऐसा कैसे चलेगा. दुनियादारी सीखनी होगी. ऐसे ही एक नेताजी के घर में चोर आ गया. जैसे ही उन्होंने चोर को देखा, चोर भागने लगा. बस नेताजी भी उसके पीछे-पीछे भागने लगे. अब भला चोर की क्या औकात जो वह नेताजी से कंपीटिशन कर पाये. पलक झपकते ही नेताजी चोर से आगे निकलते हुए जोर से चिल्लाए, एक तो चोरी, उपर से मेरे साथ रेस. बड़े साहसी चोर हो भई. शरम करो, अपनी औकात पर गौर करो और सामनेवाले की काबलियत को ध्यान में रखो. फिर कंपीटिशन करने मैदान में उतरो. चोरी चकारी, बेइमानी, झूठ बोलने जैसे काम में महारत हासिल करनी है तो पहले हमारे घर छह महीने पान

‘मन की बात’ ==काले धन की कहानी सुन काका कोहनाये

लोकनाथ तिवारी,प्रभात खबर, रांची जब से काका ने प्रधानमंत्री जी के ‘मन की बात’ सुनी है. तब से उनका  छुहारे सा पिचका मुंह और सुसक गया है. बेचारे कब से आस लगाये थे कि विदेशी बैंको में रखा अपने देश का लाखों करोड़ रुपये का काला धन वापस आयेगा. हर आदमी को 15-15 लाख मिलेंगे. गरीबों की गरीबी सिरे से मिट जायेगी और वे भी लखपतियों की तरह रहने लगेंगे. लेकिन यह क्या? प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के दौरान जनता को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘कोई नहीं जानता कि विदेश में कितना काला धन छुपाया गया है. न आपको पता है, न सरकार को, न पहले की सरकार को पता था. सभी अपने-अपने आंकड़े पेश कर रहे हैं.’’ अब तक मोदी की हर बात पर भरोसा करते आये काका को मोदी की इस बात पर भरोसा करने का तनिक भी जी नहीं कर रहा है. उन्होंने बड़बड़ाते हुए कहा कि अनुलोम-विलोम और जड़ी-बूटी वाले बाबा रामदेव ने तो आंखों से पूरा काम लेते हुए जनता को विश्वास दिलाया था कि विदेश में हमारे देश का इतना काला धन है कि सभी गरीबों की गरीबी मिट जायेगी. अब ऐसा क्या हो गया कि काले धन के आंकड़े का पता नहीं चल पा रहा है? चुनाव के समय तो ऐसा लग रहा था, जैसे ऑ
लोडशेडिंग से जूझते बंगाल में बिजली की बिक्री लोकनाथ तिवारी अक्टूबर 2009, जब पश्चिम बंगाल का अधिकांश भाग लोडशेडिंग की चपेट में अंधकार में रहने को बाध्य था तब राज्य की बिजली कम्पनियां बाहर के राज्यों को बिजली की बिक्री करने में व्यस्त थीं।  यह चौंकाने वाला तथ्य है कि पावर एक्सचेंज के माध्यम से बिजली की बिक्री करने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल का स्थान मई 2009 में दूसरे स्थान पर था। इसने मई 2009 में 55.18 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री की जो पावर एक्सचेंजों के माध्यम से देश की सभी बिजली कम्पनियोंं द्वारा बिक्री की गई बिजली का 16.15 फीसदी है। सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी ऍथारिटी द्वारा जारी की गई शॉर्ट टर्म ट्रांजैक्शन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी की मासिक रिपोर्ट के अनुसार मई 2009 में पश्चिम बंगाल से 105.73 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री की गई जो देश में सातवां सर्वाधिक बिजली की बिक्री है। इस राज्य ने द्विपाक्षिक तौर पर 100.33 मिलियन यूनिट बिजली की खरीद भी की लेकिन पावर एक्सचेंजों के माध्यम से एक भी यूनिट बिजली की खरीद नहीं की। पश्चिम बंगाल में मई 2009 में 38 मिलियन यूनिट बिजली की कमी होने के ब

लो जी ‘भरत’ के भी अच्छे दिन आ गये

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची सैकड़ों कीमती सैंडल पहननेवाली तमिलनाडु की अम्मा को जमानत नहीं मिल रही. आप सोच रहे होंगे कि ये सैंडल घर में अनाथ पड़े होंगे. ऐसा नहीं है. अब ये किसी के पैर की शोभा नहीं बढ़ाते बल्कि तख्त पर विराजमान हैं. जिस तरह राम जी के वनवास गमन के बाद भरत ने उनके खड़ाऊं को सिंहासन पर रख अयोध्या पर राज किया उसी तरह से अम्मा के सैंडल को तख्त पर रख कर एक बंदा भरत सरीखा फर्ज अदा करने में व्यस्त है. अम्मा के जेल जाने से तो उनके फैन्स बिलख-बिलख कर रो रहे हैं. सबसे अधिक बिलखने पर पन्नीरसेल्वम को ताज मिला. अम्मा के जेल में रहने से ये विलाप जायज भी है. इस कुनबे के मंत्री भी फफक कर रो पड़े. मीडिया के सामने इनको रोते देख गोलू, चिंटी व किशन तो पूछ बैठे कि पापा इनको किसने मारा है. किसी तरह घुड़क कर उनको शांत कराया.  अम्मा की जमानत की अरजी जब-जब खारिज होती है, पन्नीरसेल्वम रो पड़ते हैं. पता नहीं क्यों, उनको रोते देख मुङो अपने भ्राताश्री की धर्म पत्नी की याद आ गयी. भौजाई बात-बेबात बिलख पड़ती हैं, और पूरा घर उनके सामने हथियार डाल देता है. अब यह मत पूछिए कि अपनी पत्नी की याद क्यों

पाक के ना-पाक इरादों पर लगे विराम

ंमुख में राम बगल में छुरी, की तरह पाकिस्तानियों का व्यवहार बार-बार उजागर होता रहा है और हम पड़ोस की दुहाई देकर बस सब्र का इम्तहान देते रहते हैं. अब तो इस इम्तहान की इंतेहा हो रही है. मिसाल देखिये कि ईद पर मिठाइयों के आदान-प्रदान को पाक ने ना कह कर अपने नापाक इरादे जाहिर कर दिये है. पंजाब के वागा बोर्डर पर भारत व पाकिस्तान के सैनिक ईद के दौरान एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाई का आदान-प्रदान करते हैं. इस बार यह परंपरा नहीं निभाई गयी. ऐसा कर पाक ने एक तरह से ठीक ही किया है. अपनी असली जाति दिखा दी है. सीमा पार से निरीह नागरिकों पर रात को गोले बरसानेवाली सेना दिन के उजाले में मिठाइयों का आदान-प्रदान करती तो भारतीय निरीह जनता को यह तमाशा ही लगता. अब तो दीपावली और स्वतंत्रता दिवस के दिन भी ऐसा नहीं किया जाये तो ही बेहतर है. इसके पीछे वाजिब वजह भी है. ईद-उल-जुहा से एक रात पहले पाकिस्तान ने हदें पार करते हुए रिहायशी इलाकों में जबरदस्त फायरिंग की, जिसमें पांच भारतीय नागरिकों की मौत हो गई और 35 जख्मी हो गए. जम्मू के अरिनया और आरएस पुरा सेक्टर में पाकिस्तानी रेंजरों ने रविवार रात भर शेलिंग और फ

आप तो बड़े जहीन हैं मियां !

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची   ब्रrांड में सबसे बुद्धिमान प्राणी कौन है? एक सुर में इसका जवाब कोई भी दे सकता है. आप भी. हम भी. लेकिन इसका जवाब सदैव पक्षपात पूर्ण ही माना जायेगा. अपने मुंह मियां मिट्ठ बनने वाले प्राणियों में शिरोमणि माने जानेवाले मनुष्य को इसका जवाब देने में जरा भी संकोच नहीं होता. सभी एक सुर में इसका जवाब देंगे. मनुष्य. यह सही है कि इसका जवाब जानने के लिए हमने अन्य प्राणियों की प्रतिक्रिया तो ली नहीं. उनका जवाब सुन व समझ लेते तो शायद मानव जाति की खुशफहमी ही दूर हो जाती. आप सोच रहे होंगे कि अनायास ही इस तरह के दार्शनिक विचार हमारी खोपड़ी में तो आ नहीं सकते. आप सही हैं. जबसे हमारे प्रधानमंत्री साहब ने मुसलमानों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट दिया है, तब से हमारे फुरकान भाई फूले नहीं समा रहे. उनकी छाती पता नहीं कितने गज की हो गयी है. वह तन गये हैं. समाज सेवा के लिए गांव और समाज के साथ-साथ पता नहीं कितनी बार उनको जिले में  मंच पर सम्मानित किया जा चुका है. लेकिन जब से प्रधानमंत्री की मुसलमानों के बारे में टिप्पणी सार्वजनिक हुई है तब से वह खुद को ज्यादा सम्मानित महसूस करने

बिनु हरि कृपा मिलहु नहीं पंथा

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची बिनु हरि कृपा किसी का भला नहीं हो सकता. गोस्वामी तुलसीदास जी का यह फार्मुला आधुनिक नेताओं के लिए लाइफलाइन साबित हो रही है. जीतेजी गुमनामी का नरक भोगने से तो बेहतर है कि  हरि भजन में मगन होकर मलाई काटें. किसी को दुखी किये बिना सुखी होने का फार्मुला बड़ा सहज है. गोस्वामी तुलसीदास जी का अनुसरण करिये. हरि गुन गाइये. जमीनें कब्जानी हैं, आलीशान घर बनाने हैं, बडी गाड़ियां खरीदनी हैं, कुछ स्विस बैंक में भी जमा करना है, राजनीति की वैतरणी पार करनी है तो अब एकमात्र हरि हैं, जिनको भजने से बेड़ा पार हो सकता है. अब तो जिसे देखिये वही हरि शरण का मोहताज दिखने लगा है. यह अनायास ही नहीं है. कई लौह पुरुषों का हश्र देख कर तो ऐसा करना लाजिमी (मजबूरी) भी है. कभी भारी-भरकम, तेज-तर्रार और पता नहीं क्या-क्या, किन-किन विशेषणों से अतिशोभित लौह पुरुषों को निर्वासित कोपभवन का (गैर) महिमामंडित सदस्य बनना पड़ा है. इनकी हालत देखकर सबका पौरुष धरा का धरा रह गया है. धर्म प्रधान हमारे इस देश में जो हरि के गुन गाता है, उसका कल्याण खुदा भी नहीं रोक पाते. हरि कृपा से उस पर तीनो लोक के वैभ

कभी आर कभी पार इस बार आर-पार!

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आजकल जिसे देखो आर-पार के मूड में दिख रहा है. इतिहास की वीरगाथाओं व अतीत के युद्ध परिणामों की दुहाई देते हम नहीं थकते. पाक को 1971 और कारगिल का हस्र याद दिलाते हुए हमारी छाती चौड़ी हो जाती है. हमारे अति देशभक्त नेता तो हर समय आर-पार की लड़ाई के मूड में दिखते हैं. आखिर इसी के सहारे ये जनता को रोटी-दाल, आलू-प्याज, भूख-बेरोजगारी और अपनी नाकारियों से विमुख करने में कामयाब होते रहते हैं. हमारे देश ही नहीं बल्कि पाक मीडिया में भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं. आज सुबह ही पी-टीवी में भी सुना. सीमा पार से गोलीबारी में चार अपराध हलाक हो गये. वहां के अस्थिर राजनीतिक हालात से जनता का ध्यान हटाने का इससे बेहतर तरीका भला क्या हो सकता है. अपने देश में तो स्थिर और मजबूत सरकार है. इसकी मजबूती की अलग परिभाषा तय करनेवाली शिवसेना के मुखपत्र में तो यहां तक कहा गया है कि अब भारत को  पाक में घुसकर हमला करने की जरूरत है. केंद्र में अब कांग्रेस की तरह कमजोर सरकार नहीं, बल्कि मजबूत सरकार है. उसे तुरंत पाक को सबक सिखाने के लिए हमला करना चाहिए. इसी तरह के मनोभाव से लैस जनता को युद्

हम उल्लू नहीं बनेंगे लेकिन कब तक

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची lokenathtiwary@gmail.com बचपन में लगता था कि केवल हमारे गांव में ही ऐसा होता है. उमर बढ़ी और कूप मंडूक से ग्लोबल मानुष की कैटेगरी में आ खड़े हुए तो पता चला कि इस छोटे से फामरूले पर राजनीति की दुकानदारी फल-फूल रही है. गांव की चौपाल से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनाव तक यह फामरूला फारमुला कारगर रहता आया है. बस किस नाम पर किसके खिलाफ गोलबंदी होनी है यह स्थान, काल पात्र के आधार पर तय होता रहा है. बिहार उपचुनाव में लालू-नीतीश की गलबहिया देख हमारे टीन एजर बबुआ व उसके नव युवा वोटर बने दोस्त की आंखें आश्चर्य से फटी रह गयी. जब नतीजा आया तो इनका आक्रोश देखने लायक था. भुनभुनाते हुए जब इनकी टोली काका के सामने से गुजरी तो काका ने जबरन आशीर्वाद देते हुए उनके मुंह फुलाने का कारण पूछा. पहले से ही भरे पड़े नेट-चैट युगीन बच्चे काका के सामने फ ट पड़े. कहा,जबतक अनैतिक गंठबंधन की राजनीति रहेगी, तबतक देश का भला नहीं हो सकता. भाजपा को हराने के लिए बिहार में गोलबंदी की गयी. यह गलत है. काका ने बच्चों को पुचकारते हुए कहा, यह गोलबंदी कोई नयी बात नहीं. घर से लेकर जवार और देश

बीवियोंवाला नुस्खा सफलता की गारंटी

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची जासूसी के जरिये सफल होने का गुर पत्नियों को बखूबी आता है. करनी ना धरनी घर-परिवार की सत्ता पर काबिज होनेवाली पत्नियां अपने शौहर को ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को अपनी अंगुलियों पर नचाती है. अजी नचाती क्या? गवाती, हंसाती और खूब रुलाती भी हैं. आखिर मियां की नब्ज पर उनकी पकड़ जो कसी होती है. पति व सास, ससुर का सीक्रेट हथिया कर पूरे परिवार की नकेल अपने हाथों में लेने का हुनर कोई इन पत्नियों से सीख सकता है. लगता है हमारी नयी सरकार ने भी इसे सीख ही नहीं लिया बल्कि उस पर अमल भी करने लगी है. अखबार में पढ़ा कि भाजपा के शीर्ष नेताओं की जासूसी करायी जा रही है. भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के घर जासूसी उपकरण मिलने के बाद अभी बात ठीक से दबी भी नहीं थी कि और कई शीर्ष नेताओं  की जासूसी का मामला सामने आ गया है. इससे तो यहीं लगता है कि सफलता के गुर का कनेक्शन कहीं न कहीं बीवियों के नुस्खे से जुड़ा है. कहा भी गया है कि जासूसी वहीं कराते हैं, जो आपके अपने, खास व नजदीकी हों. कहीं नयी सरकार भी तो अपनों की नब्ज टटोलने में नहीं न जुटी है.  

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची दिन महीने साल गुजरते जायेंगे, अब अच्छे दिन नहीं, अच्छे साल आयेंगे.. पिछले कुछ दिनों से हमारे एक सहकर्मी इसी तरह भुनभुना (गुनगुना) रहे हैं. आखिर छह महीनों से टीवी, मीडिया में अच्छे दिन की लोरियां सुनने का साइड इफेक्ट तो होना ही था. गाने का मतलब पूछने पर पहले तो बिदक उठे. फिर शांत हुए तो कहा कि अब अच्छे दिन की बात भूल जाइए. 2019 में ‘अच्छे साल आयेंगे’ का नारा बुलंद होगा, उसके बारे में सोचिए. बढ़ती महंगाई पर बेवजह चिंचियाइए नहीं, कुछ दिनों बाद इसकी आदत पड़ जायेगी. रेल किराया बढ़ा कर अच्छे दिन की सरकार इसी आदत को पुख्ता करना चाहती है. अब देखिए, रेल बजट में किराया नहीं बढ़ा तो कैसा फील गुड हो रहा है. हमारे अच्छे दिनवाले नेताजी तो इस रेल बजट पर दार्शनिक हो उठे. कहा कि पिछले कुछ दशकों से भारतीय रेल में एक बिखराव महसूस होता था. टुकड़ों में सोचा जाता था. पहली बार रेल बजट में समग्रता दिखी है. और तो और, हमारे काका भी बजट के बाद से बेचैन हैं. उनको कुछ सूझ नहीं रहा है कि चाय चौपाल में रेल बजट की कौन सी बात का बखान करें. काका की छोड़िए, हमारे बॉस को भी नहीं सूझ

मरने के जुगाड़ में जीने की मजबूरी

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) बड़े भले आदमी थे. जाते-जाते भी किसी को परेशान नहीं किया. भगवान ऐसी मौत सबको दे. बेचारे सोय-सोये ही चले गये. वह भी छुट्टीवाले दिन, सुबह. किसी को परेशान नहीं होना पड़ा. मरनेवाले की अनायास ही प्रशंसा करना हमें सिखाया गया है. शायद यही कारण था कि सुबह-सुबह अपने शतायु पड़ोसी की मौत के बाद हर आने-जाने वाला इसी तरह अपना शोक जता रहा था. अचानक मुङो अपना ख्याल आ गया. पहली बात तो यह कि एक हिंदी पत्रकार शतायु कैसे हो सकता है. फिर अपने परिजन व पड़ोसियों को सहूलियत हो, ऐसी मौत कैसे आये. इसे लेकर उधेड़बुन में फंस गया. सोचता हूं, अभी ही कौन से मजे से जी रहा हूं. रोज मरने से अचानक मौत की कल्पना उतनी बुरी भी नहीं लगती. सोचता हूं कि छुट्टी के दिन मरने पर कैसा रहेगा. अंतिम यात्र में सभी शामिल हो सकेंगे. फिर, डर भी लगता है कि उनकी छुट्टी बरबाद होगी, मन ही मन गालियां बकेंगे. फिर सोचता हूं, हम पत्रकारों को छुट्टी मिलती भी कहां है. शाम को मरने पर फजीहत ही होगी. कोई पूछने भी नहीं आयेगा. शाम को तो पत्रकारों की शादी भी नहीं होती. आधी रात के बाद शादी का मुहूर्त निक

जनता के बीच खड़े अभिनय सम्राट

।। लोकनाथ तिवारी।।  (प्रभात खबर, रांची) चुनाव की चार दिन की चांदनी खत्म होने दीजिए, फिर जनता को उसकी औकात का पता चल जायेगा. अभी वह खुद को जनार्दन माने बैठी है. और, यह गलतफहमी हो भी क्यों ना? बड़े-बड़े लोग उसे पूज जो रहे हैं. उसकी खुशामद में बिछे जा रहे हैं. कल तक जो काले शीशेवाले वातानुकूलित वाहनों से सरपट निकल लेते थे, अब वे धूल- कीचड़ भरी गलियों में ‘मैले-कुचैले’ बच्चों को भी गोद में उठाने से परहेज नहीं कर रहे. नेता मंच से खुद को सेवक और जनता को मालिक कह रहे हैं. पता नहीं कब से यह जुबान बोली जा रही है? इसका कोई पुख्ता दस्तावेज भले ही ना हो, लेकिन हमारे काका बताते हैं कि गांधी युग से ही नेताओं ने जनता जनार्दन की जुबान अपनायी हुई है. पहले इनमें थोड़ी बहुत शर्म बची थी, चुनाव के बाद भी जनता के बीच आते-जाते रहते थे. लेकिन, अब निहायत बेशर्म और हद दरजे के शर्म-निरपेक्ष हो गये हैं. चुनाव के समय जनता के बीच जाकर स्वयं को उनका सेवक कहते हैं, जबकि अंदर ही अंदर वे खुद को उनका भाग्यविधाता मानते हैं. कमर तक झुक कर जनता को प्रणाम करने वाले यूं अभिनय करते हैं, जैसे पैदाइशी विनम्र हों. चु