हम उल्लू नहीं बनेंगे लेकिन कब तक
लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची lokenathtiwary@gmail.com बचपन में लगता था कि केवल हमारे गांव में ही ऐसा होता है. उमर बढ़ी और कूप मंडूक से ग्लोबल मानुष की कैटेगरी में आ खड़े हुए तो पता चला कि इस छोटे से फामरूले पर राजनीति की दुकानदारी फल-फूल रही है. गांव की चौपाल से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनाव तक यह फामरूला फारमुला कारगर रहता आया है. बस किस नाम पर किसके खिलाफ गोलबंदी होनी है यह स्थान, काल पात्र के आधार पर तय होता रहा है. बिहार उपचुनाव में लालू-नीतीश की गलबहिया देख हमारे टीन एजर बबुआ व उसके नव युवा वोटर बने दोस्त की आंखें आश्चर्य से फटी रह गयी. जब नतीजा आया तो इनका आक्रोश देखने लायक था. भुनभुनाते हुए जब इनकी टोली काका के सामने से गुजरी तो काका ने जबरन आशीर्वाद देते हुए उनके मुंह फुलाने का कारण पूछा. पहले से ही भरे पड़े नेट-चैट युगीन बच्चे काका के सामने फ ट पड़े. कहा,जबतक अनैतिक गंठबंधन की राजनीति रहेगी, तबतक देश का भला नहीं हो सकता. भाजपा को हराने के लिए बिहार में गोलबंदी की गयी. यह गलत है. काका ने बच्चों को पुचकारते हुए कहा, यह गोलबंदी कोई नयी बात नहीं. घर से लेकर जवार और देश