सोनिया गांधी ने गांधीगिरी से साधी सत्ता

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गांधीगिरी की नीति से सत्ता के गलियारे में पनपने वाली हर कूटनीति का डटकर मुकाबला किया। अब लालू-मुलायम उनकी शान में कसीदे पढ़ते हैं। लेफ्ट सोनिया पर लाल नहीं होता है तो सियासत में कांग्रेस को धुर विरोधी मानने वाली बसपा की प्रमुख मायावती कांग्रेस अध्यक्ष से संवाद करते हुए शालीन नजर आती हैं।


पंद्रहवीं लोकसभा के जनादेश का एक साल बीतने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की शख्सियत पहले से कई मायनों मे बदल गई है। सोनिया गांधी अब पार्टी की ही सर्वस्वीकार्य नेता नहीं है, बल्कि उन्हें लेकर विपक्ष की बीच में भी एक स्वकारोक्ति का लहजा है। सोनिया-सुषमा में बेहतर संवाद होता है। दोनों नेताओं के बीच महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने के लिए इशारों में हुई सदन में बातचीत बेहतर होते संबंधों की एक बानगी थी।

बीते एक साल में तमाम उतार-चढ़ाव भरे पलों में सोनिया गांधी ने साबित किया है कि उनके हाथ में फैसलों की चाभी तो है ही उसका बेहतर और निर्णायक इस्तेमाल उन्हें बखूबी आता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नई यूपीए दो सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में ममता और शरद पवार की पार्टी को भी अपना ही मानते हुए चुनिंदा विश्वस्त लोगों से रू-ब-रू होते हुए कहा था कि दिस इज रियल कांग्रेस। तब द्रमुक सरकार में शामिल नहीं हुई थी। साल भर में तृणमूल की ममता और राकांपा से कई मौकों पर तकरार की नौबत आने के बावजूद शायद यह कांग्रेस अध्यक्ष के अपनेपन का भरोसा ही था कि कोई भी दल विश्वास तोड़ने की हद तक नहीं डिगा।

सही मायने में यूपीए दो सरकार का पहिया कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आभामंडल के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आ रहा है। बीते एक साल में महिला आरक्षण विधेयक से लेकर खाद्य सुरक्षा कानून की दिशा में आगे बढ़ने का अहम कामकाज सरकार से ज्यादा कांग्रेस अध्यक्ष का एजंेडा नजर आया है। कांग्रेस अध्यक्ष इन दिनों राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की मुखिया के तौर पर सरकार को सलाह देने की नई भूमिका की तैयारियों मंे जुटी हैं तो उनके एजेंडे में वे सभी कार्यक्रम होंगे जो कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल हैं। कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने विश्वस्त रणनीतिकारों की टीम के साथ सियासत का हरेक दांव बखूबी जीतकर साबित किया कि वे भारतीय राजनीति की अहम शख्सियत होने के साथ ही सत्ता की सबसे ताकतवर किरदार हैं।

पार्टी नेता मानते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पारित करवाने का ऐतिहासिक मौका अगर सरकार की उपलब्धियों की कड़ी में जुड़ा तो उसका श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही जाता है। उन्होंने अपने दृढ़ फैसले से विरोधी दलों की रणनीति को भी चारों खाने चित कर दिया। पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष के कुशल नेतृत्व का उदाहरण सिर्फ इतना भर ही नहीं है। जिन राजनीतिक दलों ने महिला आरक्षण विधेयक पर सरकार को पटखनी देने की कसमें खाई थीं, वही कटौती प्रस्ताव के दौरान सरकार का तारणहार बनकर सामने आ गए।

कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने विश्वस्त मंडली को आगे करके हर मुकाम को सफल रणनीति के साथ न सिर्फ जीता बल्कि पार्टी की ताकत लगातार बढ़ती नजर आई। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी जब चुनाव जीती थी तो तमाम राजनीतिक समीक्षकों को लग रहा था कि अब कांग्रेस में युवा महासचिव राहुल गांधी की ज्यादा चलेगी। जीत का सेहरा भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ राहुल के सिर बंधा था। लेकिन एक साल की सियासी कहानी से साफ है कि राहुल की ताकत में संगठनात्मक स्तर पर लगातार इजाफा होने के बावजूद अहम फैसलों की चाबी कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ ही रही है। इस दौरान राहुल सत्ता की अलग धुरी बनने के बजाए पार्टी के लिए वैल्यू एडीसन का काम करते रहे हैं।

बाजीमात करने में माहिर :

16 मई 2009 को जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 206 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में देश की सत्ता संभालने का जनादेश हासिल हुआ तो पूरा कांग्रेसी कुनबा आत्मविश्वास से लबरेज था। कांग्रेस में हर तरफ एकला चलो की गूंज नजर आ रही थी। कांग्रेसी रणनीतिकारों का दावा था कि नतीजे इस बात के गवाह हैं कि अब देश में दो ध्रुवीय राजनीति का दौर भी खत्म होने वाला है। कांग्रेस के नेता दावा कर रहे थे कि एक ओर कांग्रेस है तो दूसरी तरफ देश के सभी राजनीतिक दलों को मिलाकर दूसरा कुनबा। लेकिन बीते एक साल में देश की सियासत के साथ कांग्रेस की पारी भी उतार चढ़ाव से भरी रही है।

बजट सत्र के बाद कांग्रेस को भले ही मुस्कराने का मौका मिला है लेकिन इस दौरान पार्टी को पूरी तरह आटे-दाल का भाव भी पता चला। आजादी के बाद पहली बार ऐसा मौका आया जब देश की सरकार को कटौती प्रस्ताव पर मतदान का सामना करना पड़ा। कांग्रेस इस जंग में विरोधी एकता को तोड़कर जीती तो जरूर लेकिन उसे राजद, सपा जैसे अपने पुराने साथियों के साथ यूपी की सियासत में अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी मायावती को भी थैंक्स बोलने पर मजबूर होना पड़ा।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के रूप में संगठन में सबसे ताकतवर एक केंद्र होने के बावजूद पार्टी को अपनों ने ही कई मौकों पर पानी पिलाया। शशि थरूर और जयराम रमेश जैसे चेहरे के रूप में दो ताजा उदाहरण सामने हैं। सहयोगी दलों में ए राजा का विवाद हो, ममता की तुनुकमिजाजी हो या फिर इन सबसे इतर राकांपा प्रमुख शरद पवार की चतुर राजनीतिक चाल सबने कांग्रेस को आए दिन मुश्किलों से दो-चार किया। हालांकि अलग-अलग राजनीतिक दलों की बैसाखी के सहारे कांग्रेस हर चुनौती से बाहर निकलने में कामयाब रही तो इस ब्यूह रचना में सबसे अहम किरदार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही साबित हुईं।

विरोधी चारो खाने चित्त

कांग्रेसी रणनीतिकार मानते हैं कि सरकार के लिए मुसीबत बन रहा विरोधी कुनबा फाइनल में हर बार बुरी तरह पिटा। सोनिया गांधी ने जाति आधारित जनगणना पर लालू और मुलायम को हां बोलकर इस मसले पर अलग-अलग राह पर खड़ी नजर आ रही पूरी सरकार को हामी की मुद्रा में ला दिया। अब सरकार रास्ते तलाश रही है कि किस तरह से जाति आधारित जनगणना के कांग्रेस अध्यक्ष के वादे को पूरा किया जाए।

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

राजीव गांधी: एक युगद्रष्टा

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..