तबाही की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान, फिर कैसे शांति से रह सकता है हिंदुस्तान

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
हमारे जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान अगर किसी के लिए होता है तो वे हैं हमारे पड़ोसी, जिनको चाहकर भी हम बदल नहीं सकते. हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शायद पड़ोसियों से परेशान होकर या उनके प्रति अपना अगाध प्रेम प्रदर्शित करने के लिए ही कहा होगा कि आप मित्र तो बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते.
हमारा देश भी पड़ोसियों के मामले में भाग्यहीन ही है. सबसे करीबी पड़ोसी पाकिस्तान तो तबाही की ओर बढ़ता हुआ देश घोषित किया गया है. फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स 2017 में पाकिस्तान 18वें पायदान पर है. वह भी इस साल स्थिति में सुधार होने के बाद. फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स में ऐसे देशों को शामिल किया जाता है, जिन्हें खुद की सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए. यदि आतंकवादी पाक पर पकड़ बना लेते हैं तो यह सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं, बल्कि विश्व के लिए भी खतरनाक होगा. पाकिस्तान के शासकों को देश को इस खतरे से बचाने के लिए व्यापक नीति बना कर अमल में लाने की दिशा में प्रयास शुरू कर देना चाहिए. पाकिस्तान के बारे में तो कहा गया है कि 'पाकिस्तान को वॉशिगटन के नीति नियामक धड़ों में लंबे समय से दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता है. अब पाकिस्तान न केवल पश्चिम के लिए बहुत खतरनाक है, बल्कि यह अपने लोगों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा हो गया है.’
पाकिस्तान फिलहाल गृह युद्ध जैसी मानसिकता, सैनिक सत्ता के प्रभुत्व, आम जनजीवन में बढ़ता भ्रष्टाचार और भ्रष्ट तथा अयोग्य नेताओं के कारण बदहाल है. बढ़ रही आबादी, बेरोजगारी, बिगड़ती कानून व्यवस्था, घटते जल संसाधन और आर्थिक बदहाली पाकिस्तान के पतन का कारण हैं. हास्यास्पद यह है कि 2017 में पाकिस्तान को इस दिशा में सर्वाधिक सुधार करने वाला देश बताया गया है. यानी सुधार के प्रयास के बावजूद पाकिस्तान की स्थिति बेहद खराब है.
भारत लगातार अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए आगाह करता रहता है और आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देना बंद करने के लिए कहता रहा है. अब पाकिस्तान को यही चेतावनी विश्व जगत से भी मिली है. दक्षिण एशिया में स्थित यह देश दुनिया के नाकाम देशो में से एक भी माना जाता है जो अपनी अंदर की आर्थिक हालत सुधारने के बजाये अपने पडोसी देशो में आतंक फ़ैलाने और आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा रहता है. अब पाकिस्तान कई सालो से खुद के फैलाये हुए आतंक को रोकने में लगा हुआ है लेकिन हर बार विफल रहता है. पकिस्तान के नाकाम हालातों के जिम्मेदार यहाँ के भ्रष्ट नेता और यहाँ के सुरक्षा अधिकारी हैं. जब से यह भारत से अलग हुआ तब से पाकिस्तान की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ती ही जा रही है. यहा कब क्या हो जाये कोई नहीं जानता. सिया सुन्नी विवाद और आतंकी वारदातों से यह जर्जर हो चुका है. 
अमेरिका भी पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने और आतंकवाद को अपनी जमीन से खत्म करने के लिए कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी देता रहा है. हाल ही में अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव भी पेश किया गया था. हाल ही में भारत दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने पाकिस्तानी नेतृत्व से सख्त लहजे में कहा कि वो आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करे, वरना अमेरिका खुद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करेगा. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना बना हुआ है. इतना ही नहीं पाकिस्तान के हर कदम का समर्थन करने वाले चीन ने भी हाल ही में बीजिंग में संपन्न हुए ब्रिक्स सम्मेलन के संयुक्त घोषणा-पत्र में पाकिस्तान के कई आतंकवादी संगठनों के नाम शामिल किए थे.
अन्य पड़ोसी भी नाकाम
हमारे अन्य पड़ोसी भी हमारे लिए मुसीबतें घड़ी करने वाले ही हैं. पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान और श्रीलंका को भी दुनिया के 'सबसे नाकाम देशों’ की सूची में स्थान मिलता रहता है. शामिल किया है. बांग्लादेश के बारे में एक रिपोर्ट कहती है कि हर पांच में से दो बांग्लादेशी घोर गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. किसी भी सुधार के तहत यहां के पर्यावरण से भी लड़ना होगा. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि समुद्र का स्तर अगर एक मीटर भी बढ़ गया तो इस देश का 17 फीसदी हिस्सा डूब जाएगा.
भारत की नीति तो हमेशा से ही पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की रही है. हम नए दोस्त तो बना सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते. बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के होते हुए हम कितने भी विकसित क्यों न हो जाएं समृद्ध नहीं हो सकते. हम अपने ज्यादातर पड़ोसियों से बहुत आश्वस्त और सहज नहीं हैं. कहीं हम सैन्य-तानाशाहों को प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देने के लिए बाध्य हैं तो कहीं द्विपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए सही आधार और जरूरी विचार नहीं खोज पा रहे.
एशिया में हम जनतंत्र के स्तम्भ हैं पर म्यांमार में सैन्य-शासन का समर्थन करने को बाध्य हैं. पर वहां भी चीन का पलड़ा भारी है. पाकिस्तान से बेहतर रिश्तों का समीकरण विगत साठ वष्रों से जटिल बना हुआ है. श्रीलंका में अंतर्देशीय तनाव के चलते हमने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जैसे नेता को खो दिया. भूटान को छोड़कर हमार रिश्तों में कहीं भी सहजता नहीं है. ऐसे में भारत को पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की नई इबारत गढ़नी होगी. आखिर हम अपने पड़ोसियों को तो बदल नहीं सकते लेकिन स्वयं को तो बदल ही सकते हैं.


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