रुपया गिर रहा है जनाब, संभालिए

Lokenath Tiwary (लोकनाथ तिवारी)
किसी देश की मुद्रा उसकी अर्थव्यवस्था की सेहत को स्पष्ट करती है. मुद्रा को संचालित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उस देश की सरकार की होती है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव गहराने से बीते कुछ सप्ताह से रुपये में गिरावट बनी हुई है. छह सितंबर को पहली बार रुपया, डॉलर के मुकाबले 72 के नीचे लुढ़का था. डॉलर के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन को रोकने के लिए कारगर कदम जरूर उठाए जाने चाहिए. इसमें रिजर्व बैंक की भूमिका महत्वपूर्ण है. जानकारों के अनुसार हमें निर्यात को प्रोत्साहित करना होगा और आयात नियंत्रित करने होंगे, ताकि व्यापार घाटा को कम किया जा सके. डॉलर-रुपये की सट्टेबाजी पर भी अंकुश लगाना होगा. 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने इस प्रकार के कुछ कदम उठाए भी गए थे, जिसका सकारात्मक असर हुआ था. डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को संभालने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार भी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के तरीके को अपना सकती है.

डॉलर डिपॉजिट स्कीम (एनआरआई बॉन्ड)

केन्द्रीय रिजर्व बैंक अब अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) की मदद लेने की तैयारी कर रही है. अब केन्द्र सरकार और केन्द्रीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को लगाम लगाने के लिए विदेश में रह रहे भारतीय नागरिकों का सहारा लेने की तैयारी कर रहे हैं. सरकार को उम्मीद है कि इससे वह अपने चालू खाता घाटे को कम कर सकेगी. गौरतलब है कि केन्द्रीय बैंक ने इससे पहले 2013 के दौरान अप्रवासी भारतीयों की मदद ली थी और रुपये में डॉलर के मुकाबले दर्ज हो रही लगातार गिरावट को संभालने में सफलता पाई थी. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार औऱ केन्द्रीय बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से लगभग 34 बिलियन डॉलर के मूल्य का करेंसी स्वैप किया था और रुपये की गिरावट को रोकने में सफलता पाई थी. इस स्कीम के जरिए आरबीआई विदेश में बैठे भारतीय नागरिकों से सस्ते दर पर डॉलर खरीदती है. बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए का मानना है कि रुपये को संभालने के लिए भारत एक बार फिर 2013 की तरह डॉलर डिपॉजिट स्कीम (एनआरआई बॉन्ड) का सहारा लेते हुए 30 से 35 बिलियन डॉलर बटोर सकती है. इस कदम से जहां रुपये की गिरावट पर लगाम लगेगा वहीं केन्द्र सरकार को अपना चालू खाता घाटा भी कम करने में मदद मिलेगी.

विदेशी मुद्रा भंडार घटा

हाल के कुछ महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)  ने डॉलर बेचकर सोना खरीदा लेकिन यह तरीका कारगर साबित नहीं हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर बेचने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटा है. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक जहां अप्रैल के मध्य तक भारत में 427 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था वहीं अब यह 400 बिलियन डॉलर के आस-पास हो गया है. भारतीय रिजर्व बैंक से मिले आंकड़ों के अनुसार, 31 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 1.19 अरब डॉलर से घटकर 400.10 अरब डॉलर रह गया. इससे पहले विदेशी मुद्रा भंडार 24 अगस्त को समाप्त सप्ताह में लगातार चार सप्ताह की गिरावट से उबरकर 44.54 करोड़ डॉलर बढ़कर 401.29 अरब डॉलर पर पहुंचा था. केंद्रीय बैंक ने बताया कि 31 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 60.51 करोड़ डॉलर घटकर 375.98 अरब डॉलर रह गई. इस दौरान स्वर्ण भंडार भी 60.09 करोड़ डॉलर घटकर 20.16 अरब डॉलर पर आ गया. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास आरक्षित निधि 91 लाख डॉलर बढ़कर 2.47 अरब डॉलर पर और विशेष आहरण अधिकार 55 लाख डॉलर की तेजी के साथ 1.47 अरब डॉलर पर पहुंच गया.

सोने का भंडार बढ़ा

आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय बैंक में सोने का भंडार 8.46 मेट्रिक टन बढ़ा है. आरबीआई ने यह खरीदारी वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान की थी. इस खरीदारी से मौजूदा समय में रिजर्व बैंक के खजाने में 566.23 मेट्रिक टन सोने का भंडार है. रिजर्व बैंक ने यह खरीदारी अपने विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए किया है. केन्द्रीय बैंक की यह कवायद भी रुपये के गिरते स्तर को सहारा देने के लिए थी लेकिन इसका कोई खास असर रुपये की गिरती दर पर देखने को नहीं मिला.

क्यों गिर रहा है रुपया?

अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर और इसके चलते वैश्विक स्तर पर लोगों का डॉलर पर बढ़ता भरोसा रुपये की इस गिरावट के लिए सबसे बड़े कारण बताए जा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर इस ट्रेड वॉर के चलते लगातार डॉलर में दुनिया का भरोसा बढ़ रहा है और डॉलर की जमकर खरीदारी का जा रही है. वहीं दुनियाभर में उभरते बाजारों की मुद्राओं को नुकसान उठाना पड़ा रहा है. जानकारों का यह भी कहना है कि तुर्की की मुद्रा लीरा में जारी गिरावट जहां समूचे यूरोप की मुद्राओं के लिए संकट बनी है, वहीं यूरोप की मुद्राओं में गिरावट से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने संकट छाया हुआ है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में जारी तेजी भी इन अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं के लिए गंभीर चुनौती पेश कर रही है.

गिरते रुपये का आम आदमी पर असर 

रुपये की वैश्विक बाजार में कीमत का सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है. बेहद सरल शब्दों में इस असर को कहा जाए तो बाजार में सब कुछ महंगा होने लगता है. रुपये की कीमत में गिरावट आम आदमी के लिए विदेश में छुट्टियां मनाने, विदेशी कार खरीदने, स्मार्टफोन खरीदने और विदेश में पढ़ाई करने को महंगा कर देता है. इसके चलते देश में महंगाई दस्तक देने लगती है. रोजमर्रा की जरूरत के उत्पाद महंगे होने लगते हैं. आप कह सकते हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार कमजोर होने आम आदमी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान को महंगा कर देता है. वहीं रुपये के कमजोर होने के असर से आम आदमी के लिए होम लोन भी महंगा हो जाता है. लिहाजा, साफ है कि जब डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट का दौर जारी है तो यह वक्त नए होम लोन लेने का नहीं है. इसके अलावा कमजोर रुपये के चलते देश का आयात महंगा हो जाता है. ऐसे वक्त में जब कच्चे तेल की कीमतें पहले से ही शीर्ष स्तर पर चल रही हैं, कमजोर रुपया सरकारी खजाने पर अधिक बोझ डालता है और सरकार का चालू खाता घाटा बढ़ जाता है. डॉलर के मुकाबले रुपए के 72 के स्तर पार पहुंचने का असर क्रूड ऑयल (कच्चा तेल) के इंपोर्ट पर हो सकता है. भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा क्रूड आयात करता है. ऐसे में डॉलर की कीमतें बढ़ने से इनके इंपोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी. इंपोर्ट महंगा होगा तो ऑयल मार्केटिंग कंपनियां पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ा सकती हैं.

आरबीआई के पास विकल्प नहीं?

आम धारणा है कि रुपये की छपाई के साथ-साथ वैश्विक मुद्रा बाजार में रुपये को ट्रेड कराने में रिजर्व बैंक की अहम भूमिका है. डॉलर के मुकाबले रुपये की मौजूदा गिरावट को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि रिजर्व बैंक के पास रुपये की चाल को संभालने के लिए अब कोई विकल्प नहीं बचा है. मौजूदा स्थिति इसलिए भी पेंचीदा है क्योंकि अब रिजर्व बैंक रुपये को बचाने के लिए कुछ कदम उठाता भी है तो वह कामयाब नहीं होगा क्योंकि रुपया पूरी तरह से वैश्विक स्थिति का मोहताज है, जिनपर हमारा यानी आरबीआई या सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है.

भारतीय रुपये को ऐसी स्थिति से बचाने के लिए केन्द्र सरकार को देश में एक्सपोर्ट को बढ़ाने के साथ-साथ एफडीआई और एफपीआई में इजाफा कराना होगा. यह काम मौजूदा स्थिति में नहीं बल्कि एक लंबी अवधि के दौरान किया जाता है. यदि देश में आर्थिक सुस्ती का माहौल नहीं होता को रुपया डॉलर के मुकाबले इस स्थिति में नहीं फंसा होता. लिहाजा, मौजूदा स्थिति से रुपये को निकालने के लिए एक्सपोर्ट में बड़ा इजाफे के साथ-साथ देश में बड़ा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की जरूरत है. यदि इन तीनों फ्रंट पर सरकार ने बीते कुछ वर्षों के दौरान बेहतर काम किया होता तो रुपए मौजूदा स्थिति में नहीं पहुंचा होता.

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