'वज्रपात'

इंदिरा गाँधी

( 1 नवंबर 1984 को लिखे गए नईदुनिया के सम्पादकीय 'वज्रपात' से)

जन्म : 19 नवम्बर, 1917….
मृत्यु : 31 अक्टूबर, 1984….

'भारत रत्न' (1972), राष्ट्र की पहली महिला प्रधानमंत्री और नागपुर कांग्रेस अधिवेशन (1959) में अध्यक्ष चुनी गईं इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म आनंद भवन, इलाहाबाद में हुआ। कांग्रेस के सौ वर्ष के इतिहास के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष पद को सुशोभित करने वाली इंदिराजी चौथी महिला थीं। उनके पूर्व ऐनी बेसेंट (1917), सरोजिनी नायडू (1925) और नेली सेनगुप्त (1933) इस पद को सुशोभित कर चुकी थीं। वे 1978 व 83 में कांग्रेस अध्यक्ष रहीं।

पिता जवाहरलालजी के सान्निध्य में इंदिरा गांधी को व्यावहारिक राजनीतिक दीक्षा स्वाभाविक रूप से प्राप्त हुई। शांति निकेतन और ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई कर 1931 से वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुईं। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बारह वर्षीय इंदिराजी ने वानर सेना का गठन किया। 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में पति फिरोज गांधी के साथ 13 माह तक वे नैनी जेल में रहीं। आजादी के बाद के साम्प्रदायिक दंगों में गांधीजी के निर्देशन में शांति स्थापना का साहसिक काम किया।

उन्होंने 1964 से 66 तक केन्द्रीय प्रसारण मंत्रालय का काम देखा। 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा गांधी गणतन्त्र की चौथी प्रधानमंत्री बनीं। वे मार्च 1977 तक इस पद पर रहीं। जनता पार्टी के शासन को छोड़कर जनवरी, 1980 से उनकी शहादत तक (31 अक्टूबर, 84) वे प्रधानमंत्री रहीं।
विश्व में भारत की उत्तम छबि की स्थापना में उन्होंने भरसक योग दिया और तटस्थ राष्ट्रों का नेतृत्व व मार्गदर्शन किया। स्वयं के दिए गए नारे 'गरीबी हटाओ' को उन्होंने ईमानदारी से कार्यान्वित करने की कोशिश की। सम्पूर्ण राष्ट्र उनकी पुण्यतिथि (31 अक्टूबर) 'एकता और अखंडता दिवस' के रूप में मानता है।

'भारत की छबि को हमेशा उज्ज्वल करना और गरीबों और निचले तबके को ऊपर उठाने के मकसद से सही दिशा में आगे ले जाना हमारा मूल उद्देश्य होना चाहिए।' -नई दिल्ली कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण से।

'इंदिरा गांधी के चले जाने से देश का राजनीतिक परिदृश्य बदले बिना नहीं रहेगा। सबसे बड़ी ठेस स्वयं इंदिरा कांग्रेस को लगेगी। पिछले दो दशकों में जो चुनाव कांग्रेस ने जीते, वे सिर्फ इंदिरा के जादू के बल पर। सत्तर में जब ये जादू कुछ समय के लिए लुप्त हो गया तो राज्यों और केन्द्र में कांग्रेस ने भारी मार खाई।

सवाल यह है कि इतने दिनों तक इंदिरा गांधी के कंधों पर बैठकर विजय यात्रा करने की आदी कांग्रेस क्या अब अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी? -इंदिराजी की हत्या के बाद 1 नवंबर 1984 को लिखे गए नईदुनिया के सम्पादकीय 'वज्रपात' से।

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