क्षमा शोभती उस भुजंग को . .


प्रभुता पाई काहि मद नाही। यदि आप शक्तिशाली हैं और घमंडी भी हैं तो इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं। हमारे ही कवि दिनकर की यह पंक्ति भी मशहूर है कि क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन विनीत सरल हो। चीन में विनम्रता व क्षमा की कल्पना करना शायद अति-आशावादी कल्पना होगी। चीन को शायद यह गुमान हो गया है कि वह किसी भी राष्ट्र को अपनी बातें मानने के लिए विवश कर सकता है। कई देश चीन की बातें मान भी सकते हैं, क्योंकि आजकल सारी नीति व रणनीति बाजार को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन एक बहुत बड़ा बाजार है। लेकिन भारतीय बाजार का आकार भी किसी मायने में कम नहीं है।

तिब्बतियों के अध्यात्मिक गुरु दलाई लामा की सभा में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन के शामिल होने को लेकर चीन की चिंता नाजायज ही नहीं बल्कि भारतीय परम्परा के विपरीत भी है। चीन के वाणिज्य दूतावास ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि इस राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल एम के नारायणन, दलाई लामा के साथ मंच साझा न करें। नारायणन ने हालांकि इसकी परवाह न करते हुए दलाई लामा के साथ मंच साझा किया। वहीं, ममता बनर्जी की मां की तबीयत खराब होने की वजह से वह कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाईं। इस घटना को चीन की ओर से राजनीतिक तूल दिया जाता है तो हमें फिक्र करने की जरूरत नहीं है।

ना ही यह हमारी परम्परा है और ना ही हम किसी से डरते हैं। 'अतिथि देवोे भव’ को मानने वाले भारतवर्ष के किसी भी प्रान्त में महापुरुषों का स्वागत किया जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि हम किसी बलशाली के निर्देश या अनुरोध को मानकर अपनी परम्परा का त्याग करते हैं तो वह अनुचित होगा।

दलाई लामा ने इस अवसर पर टिप्पणी भी की कि कुछ चीनी अधिकारी उन्हें 'दैत्य’ समझते हैं और इसलिए, भारत जब भी उन्हें अपने विचार रखने का मंच मुहैया कराता है तो वे आपत्ति जताते हैं। भले ही अब वे तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख नहीं हैं।

नारायणन ने भी चीन के निर्देशों के बारे में माकूल टिप्पणी की। उन्होंने केवल इतना कहा, 'आप मुझसे क्या उम्मीद करते हैं?’ भारत में चीनी राजदूत यू ली ने कहा है कि इस मामले में चीन की तरफ से सरकारी नोट भारत को सौंपा गया था। नोट के माध्यम से चीन ने कहा था कि मुख्यमंत्री व राज्यपाल के कार्यक्रम में शामिल होने से गलत संदेश जाएगा। इससे ऐसा लगेगा कि दलाई लामा को सरकार का समर्थन मिला हुआ है। दलाई लामा ने मदर टरेसा पर आयोजित एक कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्यपाल को निमंत्रण भेजा था।

हालांकि सरकार ने साफ कर दिया है कि दलाई लामा के कार्यक्रम में शामिल होना या न होना ममता और नारायणन का निजी मामला है। यद्यपि दलाई लामा के मुद्दे पर भारत-चीन के बीच रिश्तों में आई कड़वाहट कोई नहीं है। सामरिक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ तो मान रहे हैं कि भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष भले ही न हो लेकिन राजनीतिक और कूटनीतिक तनाव जारी रहेगा।

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

राजीव गांधी: एक युगद्रष्टा

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..