रावण जिंदा हैं !


आज भी हमारे समाज में कई रावण जिंदा हैं। इन रावणों की करतूत ऐसी हैं कि त्रेता के रावण की भी नींद उड़ जाए। दशहरा और नवरात्रि के अवसर पर एनबीटी ने कई मुद्दों को आपके सामने रखने की पहल की है। पवित्रा (बदला हुआ नाम) ने अपने पिता द्वारा किए जा रहे दुराचार की शिकायत सीएम जनता दरबार में करके हिम्मत की अनोखी मिसाल पेश की। उनकी कहानी खुद उन्हीं की जुबानी


बहुत भयावह था। घिनौना था वो समय। उम्मीद नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है। 


 मगर जो हुआ मुझे उसके खिलाफ खड़ा होना ही था। जब अपनों से भरोसा उठता है तो कुछ
कदम उठाने ही पड़ते हैं। वही किया मैंने... मैं अपनी नानी के यहां रहती थी और वहीं पढ़ती 

थी। 2004 में अपना घर हुआ, तो गृह प्रवेश के समय मुझे बुलाया गया। मैं आई। कुछ दिनों 

बाद मैं जाना चाहती थी। दरअसल मैं तो यहां कभी रहना ही नहीं चाहती थी। मुझे अपना 

ननिहाल ही पसंद था। वहीं अब तक रहती आई थी तो वही जगह मुझे भाती थी। वहां लोग 

मुझे प्यार भी बहुत करते थे, मगर मुझे जाने नहीं दिया गया। मेरे पिता ने कहा, अब अपना 

घर हो गया है तो यहीं रहो। मेरे पास जवाब नहीं था, मुझे रुकना पड़ा। मैं यहीं रहने लगी।

पिता की तरफ से कुछ असमान्य सा लगता मुझे लेकिन मैं नजरअंदाज करती रही। एक दिन 

पिता ने मुझसे कहा कि उनके ऊपर किसी का साया है और वह मेरे साथ संभोग करना चाहते 

हैं, ताकि उन्हें कुछ राहत मिले। ये मर्जी उनकी नहीं, जिसका साया उनके ऊपर है, उसकी है। 

मुझे बेहद खराब लगा। यकीन ही नहीं था कि कोई पिता ऐसा कह सकता है अपनी बेटी के 

बारे में। मैं अवाक थी। मैंने ये बात अपनी मां से बताई। उनका जवाब तो इससे ज्यादा 

चौंकाने  वाला था। वह बड़े ही सहज भाव से बोलीं, जैसा वह बोल रहे हैं वैसा करो। उनको 

राहत मिल जाएगी। मैं तैयार नहीं थी। जब रात में मेरे साथ पिता ने जबरदस्ती करने की 

कोशिश की तो मैंने काफी विरोध किया। उन्होंने मुझे बहुत मारा और फिर वहां से चले गए। 

कुछ देर बाद वो लौटे तो वह बोले कि उन्होंने नहीं मारा है मुझे। ये सब उसका किया हुआ है, 

जिसका साया उनके ऊपर है। कुछ दिन बाद फिर यही सब हुआ। मैं खत्म हो गई। मैं ये बात 

अपनी नानी से बताना चाहती थी, मगर मुझे किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी। मैं 

बाहर भी ये बात कह सकती थी, लेकिन घर की बातों को बाहर ले जाने की हिम्मत नहीं हुई।

मैं पिता को मना करती, विरोध करती... मगर रुका कुछ भी नहीं। ज्यादा विरोध करने पर मुझे  
पीटा जाता था। मेरी मां भी मेरी कोई मदद नहीं कर रही थीं। मैं टूट चुकी थी। जब 2010 में 

मेरी नानी का देहांत हो गया तो मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गईं। इस बीच मेरा बड़ा भाई भी 

इसी घिनौने कुकृत्य में जुट गया। इन सबमें मां मौन स्वीकृति देती रहीं। मैं मान चुकी थी कि

 मेरा अपना कोई नहीं रहा अब, जिससे अपनी सारी दिक्कतें मैं कह सकूं और जो मुझे इस 

दलदल से निकाल सके। इधर विरोध के बावजूद पिता की हवस का वो खेल जारी था। इस 

बीच भाई ने मुझे ब्यूटीशन और कंप्यूटर कोर्स में दाखिला दिला दिया। वह उन परिस्थितियों 

में  राहत जैसा था, लेकिन मैं भीतर ही भीतर घुट रही थी।

एक दिन मुझे ब्यूटी पार्लर में ही सीएम के जनता दर्शन कार्यक्रम के बारे में पता चला। मैंने 

निर्णय ले लिया था कि अगर ये सिलसिला नहीं थमता तो मुझे वहां जाना होगा। जिस दिन 


मैंने सीएम दरबार में जाने का निर्णय लिया, उसी दिन रात में 3:30 बजे मेरे साथ फिर वही 


सब हुआ। सब्र का बांध टूट गया था। मैं सुबह गई और अपनी बात सबके सामने कही। मैं 


किसी को बदनाम नहीं करना चाहती थी, लेकिन करना पड़ा। चारा नहीं था कोई इसके सिवा। 


अपनों की हवस का शिकार होने के बाद मुझे गैरों पर ही भरोसा करना था। शिकायत के बाद 


रिपोर्ट दर्ज हुई और माता-पिता और बड़ा भाई जेल में हैं। मैं यहां एनजीओ में। यहां कम से 


कम सुरक्षित तो हूं। छोटे भाई की चिंता होती है। बीते दिनों उससे मुलाकात हुई। वह रो रहा 


था। उसने कहा, वह कहीं भी रह लेगा, मैं अपना ख्याल रखूं। मुझे यहां ब्यूटी पार्लर खुलवा 


दिया गया है और कंप्यूटर कोर्स जो आधा रह गया था, उसमें फिर से ज्वाइन कराया गया है। 


मुझे खुशी है कि देर से ही सही, मैं अपने हक के लिए लड़ सकी।  (sabhar)

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