कसमें-वादे-प्यार वफा.. सब बेमानी
।। लोकनाथ तिवारी।।
(प्रभात खबर, रांची)
रांचीः जिसने वादा निभाया, उसने सब गंवाया. कलयुगी नेताओं की जमात की कथनी-करनी देख कर तो यही कहा जा सकता है. वैसे भी वादा करना ही आसान होता है, निभाने की बारी आती है तो कसमें-वादे-प्यार वफा सब बातें बेमानी लगती हैं. हमारे लोकप्रिय नेताओं को ही ले लें, इनके कर्णप्रिय वादे सौ करोड़ी फिल्मों के दो-अर्थी संवाद से भी अधिक लोकलुभावन होते हैं, लेकिन जब पूरा करने की बारी आती है तो ये ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. अब इसमें इन आदत से लाचार नेताओं का भी कोई दोष नहीं है.
जनार्दन कही जानेवाली जनता की याददाश्त ही कमजोर है, जो हर बार ऐसे अनेकों वादे सुनती है , वादा-खिलाफी की गुहार भी लगाती है , फिर कभी वादों के चक्कर में न पड़ने की कसमें खाती है, लेकिन फिर से उन्हीं नेताओं के भूल-भुलैया वाले वादों के डोर में बंधने से खुद को रोक नहीं पाती. हमारे देश में यह सिलसिला यूं ही चलता रहता है. नेता वादा करते नहीं अघाते. जनता उन पर बार-बार अल्पकालिक विश्वास भी कर लेती है. चुनाव के बाद जैसे नेता अपना वादा भूल जाते हैं, उसी तरह जनता भी यह पूछना भूल जाती है कि क्या हुआ तेरा वादा? ये तो भला हो विपक्षी पार्टियों का जो गड़े मुर्दे उखाड़ने में कब्रिस्तान के लोगों को भी मात करती नजर आती हैं.
काका कहते हैं कि अगर किसी मक्कार को अपने बाप दादाओं की करतूत का पता करना है तो चुनाव में खड़ा हो जाये. विपक्षी नेता उसके सात खानदान की करतूत और पता-ठिकाना बमय दस्तावेज अखबार में छपवा देंगे. इस मामले में विपक्षी नेताओं की प्रशंसा करनी होगी. जनता की आवाज को अस्सी डेसिबल से भी अधिक जोरदार तरीके से बुलंद करने वाले इन विपक्षी नेताओं को भी जब सत्ता मिल जाती है तो ये भी उन्हीं के रंग में रंग जाते हैं.
वादा तोड़ने में नेताओं से मिलती-जुलती लेकिन उनसे कई दर्जे कम एक और प्रोफेशनल प्रजाति है. वैसे तो यह निरीह प्रजाति हर घर में पायी जाती है (कुछ खुशकिस्मत कुंआरों को छोड़ कर). इनको पति कहा जाता है. अपनी पत्नियों से नियमित वादा कर उसे तोड़ने का बहाना कोई इनसे सीखे. कुछ मामलों में ये नेताओं को भी मात देते नजर आते हैं. हमारे एक मित्र प्राय: कहते हैं, यार! मेरी बीवी ने आज फिर मुझसे एक साड़ी लाने को कहा. मैं तो रोज-रोज उसकी साड़ियों की डिमांड से तंग आ गया हूं. भाभी इतनी साड़ियों का करती क्या हैं?
पता नहीं यार, मेरे मित्र ने मासूमियत से कहा- आजतक तो मैंने एक भी साड़ी दी नहीं. फिर भी नित नये बहाने कर अपनी पत्नी को यूं मना लेते हैं, जैसे नेता पांच साल बाद तक दर्शन नहीं देने के बावजूद जनता को बरगलाने में कामयाब हो जाते हैं. चुनावी रणनीति के माहिर अपने काका भी मानते हैं कि जनता से किया वादा जिसने निभाया, वह चुनावी मैदान में कभी सफल नहीं हो सकता
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