लोडशेडिंग से जूझते बंगाल में बिजली की बिक्री
लोकनाथ तिवारी
अक्टूबर 2009, जब पश्चिम बंगाल का अधिकांश भाग लोडशेडिंग की चपेट में अंधकार में रहने को बाध्य था तब राज्य की बिजली कम्पनियां बाहर के राज्यों को बिजली की बिक्री करने में व्यस्त थीं।
अक्टूबर 2009, जब पश्चिम बंगाल का अधिकांश भाग लोडशेडिंग की चपेट में अंधकार में रहने को बाध्य था तब राज्य की बिजली कम्पनियां बाहर के राज्यों को बिजली की बिक्री करने में व्यस्त थीं।
यह चौंकाने वाला तथ्य है कि पावर एक्सचेंज के माध्यम से बिजली की बिक्री करने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल का स्थान मई 2009 में दूसरे स्थान पर था। इसने मई 2009 में 55.18 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री की जो पावर एक्सचेंजों के माध्यम से देश की सभी बिजली कम्पनियोंं द्वारा बिक्री की गई बिजली का 16.15 फीसदी है।
सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी ऍथारिटी द्वारा जारी की गई शॉर्ट टर्म ट्रांजैक्शन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी की मासिक रिपोर्ट के अनुसार मई 2009 में पश्चिम बंगाल से 105.73 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री की गई जो देश में सातवां सर्वाधिक बिजली की बिक्री है।
इस राज्य ने द्विपाक्षिक तौर पर 100.33 मिलियन यूनिट बिजली की खरीद भी की लेकिन पावर एक्सचेंजों के माध्यम से एक भी यूनिट बिजली की खरीद नहीं की।
पश्चिम बंगाल में मई 2009 में 38 मिलियन यूनिट बिजली की कमी होने के बावजूद बिक्री की गई थी, जिसके फलस्वरूप बिजली की कमी में वृद्धि होकर अगस्त 2009 में 133 मिलियन यूनिट हो गई। सीईए के प्रावधानिक आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से अगस्त के दौरान पश्चिम बंगाल में कुल 496 मिलियन यूनिट बिजली की कमी थी।
मई 2009 में बिजली का बिक्री मूल्य ट्रेडरों के लिए 8.18 रुपए प्रति यूनिट, पावर एक्सचेंजों से बिक्री करने पर 15 रुपए प्रति यूनिट जबकि यूआई मेकेनिज्म से बिक्री करने पर 7.35 रुपए प्रति यूनिट थी।
इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के एक प्रतिनिधि ने बताया कि गत छह माह से बार-बार बिजली में कटौती के कारण उद्योगों के साथ-साथ आम नागरिकों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। एसोसिएशन की ओर से राज्य के बिजली मंत्री, सीईएससी और डब्ल्यूबीएसईडीसी को पत्र लिखकर समस्या के समाधान का अनुरोध किया गया है।
इस समस्या के लिए विरोधी पार्टियों ने सरकार की गलत नीति तथा बिजली प्रबंधन में खामियों को जिम्मेदार ठहराया है।
पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि पूर्वी क्षेत्र के अन्य राज्य भी लाभ कमाने के लिए देश के अन्य राज्यों को बिजली की बिक्री करते हैं। गत वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक इन राज्यों ने लगभग 11,000 मिलियन यूनिट बिजली अन्य राज्यों को बिक्री की, जबकि इन पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में लोडशेडिंग की समस्या आम बात है। इन राज्यों ने बिजली की बिक्री से दस माह में 5,500 करोड़ रुपए से अधिक का लाभ कमाया।
पश्चिम बंगाल, झारखंड तथा उड़ीसा सहित पूर्वी क्षेत्र के राज्यों ने अप्रैल से जनवरी के दौरान कुल बिजली की बिक्री का 60 फीसदी बिक्री किया। शीर्ष समय पर ग्रिड को बिजली की बिक्री करने पर उनको 10 रुपए प्रति यूनिट की दर से कीमत मिली, जिसके कारण इन राज्यों ने अपने घर में लोडशेडिंग होने के बावजूद बिजली बिक्री कर लाभ कमाने का अवसर हाथ से जाने नहीं दिया।
बिजली का शॉर्ट टर्म ट्रांस्फर तीन तरीकों से होता है। द्विपाक्षिक रूट (डिस्ट्रिब्यूशन कम्पनी और पावर ट्रेडर), दो पावर एक्सचेंजों (आईईएक्स और पीएक्सआईएल) के माध्यम से और यूआई रूट (उपलब्धता पर आधारित शुल्क के तहत इंसेटिव मेकेनिज्म, जिससे अन्तरराज्यीय स्तर पर बिजली का स्थानान्तरण होता है ) के माध्यम से बिजली की बिक्री की जाती है।
अप्रैल से जनवरी तक अन्तरराज्यीय बिजली की बिक्री कुल 19,181 मिलियन यूनिट हुई जिसमें पूर्वी क्षेत्र के राज्यों ने 10,839 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री की, जो कुल मात्रा का 57 फीसदी है।
अप्रैल से दिसम्बर तक ट्रेडरों के माध्यम से बिक्री की गई बिजली की कीमत 7.90 रुपए प्रति यूनिट थी। पावर एक्सचेंज से बिक्री कीमत 6.50 रुपए प्रति यूनिट तथा यूआई मेकेनिज्म से नॉर्थ ईस्ट वेस्ट ग्रिड इंटीग्रेटेड के लिए बिक्री कीमत 5 रुपए प्रति यूनिट थी। यदि इस दर से इनके लाभ को देखा जाए तो कम से कम इन्होंने 5,500 करोड़ रुपए का राजस्व कमाया।
बिजली की बिक्री करने वाली शीर्ष पांच कम्पनियांें में पश्चिम बंगाल की कम्पनी दामोदर वैली कॉर्पोरेशन (केन्द्र, पश्चिम बंगाल तथा झारखंड सरकार का संयुक्त उपक्रम) तथा उड़ीसा की डिस्कॉम शामिल हैं।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उस अवधि के दौरान पूर्वी क्षेत्र से बिजली खरीदने वालों में उत्तरी भारत के राज्यों की भागीदारी 61 फीसदी से अधिक अर्थात 6,678 मिलियन यूनिट थी। सबसे अधिक खरीद राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश ने किया।
सीईए के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल में कुल 859 मिलियन यूनिट बिजली की कमी थी, जबकि उड़ीसा में 265 मिलियन यूनिट और झारखंड में 220 मिलियन यूजनट बिजली की कमी थी, इसके बावजूद इन राज्यों ने भारी मात्रा में बिजली की बिक्री की।
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