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हमारे महात्मा ऐसे भी थे

गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में जिस तरह चैंकाने वाले सच को स्वीकारा है वह उनके जैसे महात्मा के लिये ही संभव था । गांधी ने स्वीकारा कि वे पत्नी पर निगरानी रखते थे । नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं के कारण वे मानते थे कि व्यक्ति को एकपत्नी-व्रत का पालन करना चाहिये , ..... फिर तो पत्नी को भी एकपति-व्रत का पालन करना चाहिये । यदि ऐसा है तो , मैंने सोचा कि मुझे पत्नी पर निगरानी रखना चाहिये । गांधीजी ने निडरता की बात कहीं हैं किन्तु वे डरपोक बहुत थे । वे कहते हैं - ‘‘ मैं चोर , भूत और सांप से डरता था । रात कभी अकेले जाने की हिम्मत नहीं होती थी । दिया यानी प्रकाश के बिना सोना लगभग असंभव था । सत्य, अहिंसा और शकाहार के समर्थक बापू ने कई बार मांसाहार किया था । ‘‘ ..... मित्रों द्वारा डाक बंगले में इंतजाम होता था । .... वहां मेज-कुर्सी वगैरह के प्रलोभन भी था । .... धीरे धीरे डबल रोटी से नफरत कम हुई ,बकरे के प्रति दया भाव छूटा और मांस वाले पदार्थो में स्वाद आने लगा । ...... एक साल में पांच-छः बार मांस खाने को मिला । ... जिस दिन मांस खा कर आता ... माताजी भोजन के लिये बुलातीं तो उन्ह

बॉस

एक दिन एक व्यक्ति तोता खरीदने निकला। एक पेट शॉप पर पहुंच कर उसने तोता दिखाने को बोला। दुकानदार ने व्यक्ति को तीन तोते दिखाए। और बताया तीनों की कीमत व खासियत बताई। पहला तोता: इसकी खासियत है कि यह कम्प्यूटर चला लेता है और इसकी कीमत 500 रुपए है। दूसरा तोता: इसकी कीमत 1000 रुपए है और खासियत यह है कि कम्प्यूटर के साथ ही यह नाचता है,गाता है और दूसरे सारे बड़े काम कर लेता है। तीसरा तोता: यह दोनों से थोड़ा ज्यादा महंगा है। इसकी कीमत 2000 है। दुकानदार ने जब तीसरे तोते की कोई खासियत नहीं बताई तो व्यक्ति ने कहा यह तोता इतना महंगा क्यों है जबकी इसकी तो कोई खासियत भी नहीं है। इस पर दुकानदार बोला साहब पता नहीं यह तोता कुछ नहीं करता फिर भी यह दोनों तोते इसे बॉस कहते हैं। बस इसी लिए इसकी कीमत ज्यादा है।

सावधान अन्ना हजारे

अन्ना हजारे के साथ जनता के होने के कई मायने हो सकते हैं लेकिन राजनेताओं के होने का केवल एक ही मतलब है, वह है कांग्रेस को धकियाकर सत्ता पर काबिज होना। भ्रष्टाचार की खिलाफत तो एक जरिया मात्र है। अन्ना व जनता को सतर्क रहकर इस आंदोलन को बरकरार रखना होगा। जनता को खुद के प्रति ईमानदार रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी होगी। घूस बेना व देना बंद करना होगा, भले ही इसके लिए तकलीफ उठानी पड़े।

सोनिया गांधी ने गांधीगिरी से साधी सत्ता

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गांधीगिरी की नीति से सत्ता के गलियारे में पनपने वाली हर कूटनीति का डटकर मुकाबला किया। अब लालू-मुलायम उनकी शान में कसीदे पढ़ते हैं। लेफ्ट सोनिया पर लाल नहीं होता है तो सियासत में कांग्रेस को धुर विरोधी मानने वाली बसपा की प्रमुख मायावती कांग्रेस अध्यक्ष से संवाद करते हुए शालीन नजर आती हैं। पंद्रहवीं लोकसभा के जनादेश का एक साल बीतने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की शख्सियत पहले से कई मायनों मे बदल गई है। सोनिया गांधी अब पार्टी की ही सर्वस्वीकार्य नेता नहीं है, बल्कि उन्हें लेकर विपक्ष की बीच में भी एक स्वकारोक्ति का लहजा है। सोनिया-सुषमा में बेहतर संवाद होता है। दोनों नेताओं के बीच महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने के लिए इशारों में हुई सदन में बातचीत बेहतर होते संबंधों की एक बानगी थी। बीते एक साल में तमाम उतार-चढ़ाव भरे पलों में सोनिया गांधी ने साबित किया है कि उनके हाथ में फैसलों की चाभी तो है ही उसका बेहतर और निर्णायक इस्तेमाल उन्हें बखूबी आता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नई यूपीए दो सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में ममता और शरद पवार की पार्टी को भ

इंदिरा गाँधी का एक रूप यह भी (जन्मदिन पर विशेष)

जेपी की “मॉरल अथारिटी” और इंदिरा गाँधी को “स्टेट पॉवर” की देश को ज़रूरत: चंद्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री) जो रुख इंदिरा गाँधी ने अपनाया था, वैसे में उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था. ऐसा भी नहीं था कि सारी परिस्थितियाँ अचानक प्रगट हो गईं. अगर इंदिरा जी को प्रधानमंत्री बने रहना था तो आपातकाल के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था. इंद्रकुमार गुजराल हमारे पुराने मित्रों में से हैं. गुजराल इंदिरा गाँधी के सलाहकारों में से एक थे. एक दिन गुजराल हमारे पास आए. उन्होंने कहा कि आपका और इंदिरा जी का समझौता हो जाना चाहिए. हमने कहा कि समझौते की कोई बात ही नहीं है. हम लोग दो रास्तों पर चल रहे हैं. इंदिरा गाँधी के लिए ऐसा करना मज़बूरी ही थी. हमने गुजराल से कहा कि थोड़े दिन बाद यह ख़बर पढ़ोगे कि मैं ट्रक से दबकर मर गया या जेल चला गया. गुजराल कहने लगे कि आप ऐसा क्यों सोचते हैं? इंदिरा गाँधी को जवाहरलाल नेहरू ने ट्रेनिंग दी है. मैंने उनसे कहा कि मैं जवाहरलाल नेहरू को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता. उनसे मेरा कोई परिचय भी नहीं था. मैंने तो अपनी विवशता जाहिर कर दी. मैंने गुजराल से कह दिया क

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-3

जब लालाराम ठाकुर डाकू जेल से छूट कर आता है, तो विक्रम मल्लाह उसे पूरा सम्मान देता है। रायफल देता है। लेकिन लालाराम के मुँह से पहला वाक़्य जो निकलता है और जिस लहज़े में निकलता है, उससे जात-पात की बू आती है। उसकी बात मल्लाह डाकुओं को अच्छी नहीं लगती है, लेकिन सह लेते हैं। लालाराम को एक मल्लाह के हाथ नीचे डाकू बने रहना स्वीकार न था। वह ज़ल्दी ही मल्लाह को धोखे से मारकर कायरता का परिचय देता है। फूलन के साथी सभी ठाकुर डाकू सामूहिक बलात्कार कर अपनी वीरता का झण्डा ऊँचा करते हैं ! लेकिन इससे भी ठाकुर के पत्थर कलेजे को ठंडक नहीं पहुँचती है, तब लालाराम बेहमई गाँव में फूलन को पूरे गाँव की मौजूदगी में नग्न कर देता है और उसे पानी भरने को कहता है। उसके बाल पकड़कर एक एक को दिखाता है कि ये मल्लाह ख़ुद को देवी कहकर बुलाती है। मुझे इसने मादरचोद कहा था। गाँव के सारे ठाकुर फूलन को नग्न देखते हैं। कोई विरोध नहीं करता एक औरत को इस हद तक ज़लील करने की। उस वक़्त हवा को भी जैसे लकवा मार जाता है। फूलन इस सबके बाद जी जाती है, जितना फूलन ने सहा किसी खाते-पीते घर की औरत को यह सहना पड़ता। या किसी भी दबंग को यह सहना