Posts

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुङो नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं. अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है. आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे.  मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली. अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है. ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे. बाकी लोग क्या जाने पीर पराई.  उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समङोंगे. खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी. बात हो रही है नसीब की. अपने मोदी जी ने तो दिल्ली की चुनावी रैली में अपने नसीब की दुहाई देकर सभी की बोलती ही बंद कर दी. मोदी कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम उनके नसीब से कम हुए हैं.  अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण आम आदमी का पैसा बचता है, तो बदनसीब को लाने

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार

अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आप गंगासागर जायें और वहां रास्ता न भटकें, ऐसा हो ही नहीं सकता. एक ही तरह के रास्ते व एक ही तरह के होगला (एक तरह का पत्ता) के आवास दूर-दूर तक दिखते हैं. ऐसे में अच्छे-अच्छे अपने झुंड से बिछड़कर कलपने लगते हैं. ऐसे लोगों की मददगार संस्था भी है. बजरंग परिषद. इनके शिविर के सामने की यह घटना देखिए.  ए बाबू हमरे बड़का के बाबूजी भुलाइ गइल हवे, दुइ घंटा से खोजत बानी. मुंह फुकवना के कवनो पता नइखे चलत. इतना कह कर प्रौढ़ महिला बिलखने लगी. बार-बार बड़का के बाबू को खोजने की गुहार लगाती महिला ने बताया कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आयी थी. सुबकते हुए पति के डील-डौल व हुलिया का बारीकी से बखान करती महिला से जब पति का नाम पूछा गया तो वह इधर-उधर ताकने लगी. अपने मलिकार (पति) का नाम जुबान पर लाना उसके लिए कठिन था. मर जायेगी,  पति को गालियां बकेगी लेकिन उनका नाम नहीं पुकारेगी. चिढ़ कर जब वॉलंटीयर ने कहा कि नाम नहीं बताने पर माइक में घोषणा नहीं करायी जायेगी, तब महिला ने अपने पौराणिक ज्ञान का परिचय देते हुए बताया, जवन लक्ष्मण के बाण

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन

मलाईवाद की लहर में हुआ माइंड परिवर्तन देश की राजधानी में चुनावी डुगडुगी बजते ही आदर्श समाजसेवी नेताओं में नीतिवाद (मलाई) की लहरें हिलोर मारने लगी हैं. अपने अंदर परिवर्तन की भावना को रोक पाने में असमर्थ मलाईवादी महापुरुषों की नये (सत्ताधारी) नेतृत्व के प्रति अगाध भक्ति जग गयी है. कल तक पानी पी-पीकर जिसे कोसते थकते नहीं थे, आज उनमें विकास पुरुष दिखने लगे हैं. इसके पीछे अंतरात्मा की आवाज और पता नहीं क्या-क्या और किस-किस की दुहाई देने लगे हैं. ऐसे लोग स्थान काल पात्र से परे होते हैं. ऐसे लोगों की पौध भारत के हर प्रदेश में लहलहाती नजर आती है. बिना खाद-पानी के भी इस तरह के लोग सदा फलते-फूलते रहते हैं. लगभग हर बार किसी न किसी चुनाव के मौके पर ही दल के साथ इनका दिल परिवर्तन हुआ. इसमें राजनीतिक विचारधारा कभी आड़े नहीं आयी. तभी तो इन सदाबहार मलाईवादियों को न तो भाजपा में जाने से परहेज है और न कांग्रेस में और न ही समाजवादी में. एक अदद चुनावी टिकट के लिए मलाईवाद का यह खेल कोई नया नहीं है. यह खेल वर्षो से चल रहा है.  चुनाव में सबको  एडजस्ट  करना मुश्किल होता है, लिहाजा टिकट कटने या नहीं मिलने का

परले राम कुकुर के पाला

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची आज सुबह-सुबह कउड़ (अलाव) तापते हुए काका का आलस थोड़ा कम हुआ तो पैर पसारते हुए बड़बड़ाये. परले राम कुकुर के पाला, खींचि-खांचि के कइलस खाला. बचपन में सुनी गयी कहावत का अर्थ, उस समय बिलकुल पता नहीं था. अब थोड़ा-थोड़ा समझ में आता है. लेकिन अचानक काका के मुंह से इस कहावत को सुनकर जिज्ञासा हो उठी. आखिर किस महानुभाव के बारे में काका विचार कर रहे हैं. कौन राम किस कुकुर के पास आ कर अपनी दुर्गति करा रहे हैं. बिना पूछे रहा नहीं गया. आसपास बैठे अन्य लोग भी जानना चाहते थे. बिना किसी मनउव्वल के काका भी प्रसंग पर आ गये. कभी जय श्री राम का नारा देकर राम की छवि पर अधिकार जमाने की कोशिश करनेवाले अब गीता के पीछे पड़ गये हैं. ऐसा कर ये अपना कौन सा भला करना चाहते हैं नहीं पता, लेकिन राम और गीता की दुर्गति जरूर कर बैठते हैं, इसमें कोई शक नहीं है. काका ने कहा कि देखना अब इसे लेकर सेक्युलरबाज अपने गाल बजायेंगे, वामपंथी अपने गहरे लाल रंग को बदरंग होते देखेंगे और दलितों के बेटे-बेटियां सवर्ण राजनीति के विरोध में विष वमन करते करते इधर उधर लोटते दिखेंगे. वास्वकिता तो यह है कि य

असली चमचे कभी पिटा नहीं करते

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची   पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया  में एक रोचक आलेख पढ़ा- ‘टाइम टू टैकल द ग्रेट इंडियन चमचा’. इसे पढ़ कर मुझे  लगा कि अखबारों को दिन में सपने देखने की आदत है. चमचा शब्द का प्रयोग हम प्राय: ईष्र्यावश करते हैं. जब कोई दूसरा हमसे बाजी मार ले जाता है, तब उसे चमचा करार देकर खुद को तसल्ली देते हैं.    चमचा का अर्थ सभी जानते हैं, फिर भी शब्दकोश की कृपा से प्राप्त अर्थ आपको बताये देता हूं- ‘यह कलछी की तरह का एक छोटा उपकरण है, जिसमें अंडाकार छोटी कटोरी में लंबी डंडी लगी होती है, और जिससे कोई चीज उठाकर खायी या पी जाती है.’ चमचों को लेकर हमारी जो समझ हैं, उसमें यह अर्थ कितना फिट बैठता है, यह मैं आप पर छोड़ता हूं. मैं तो कहता हूं कि यह दुनिया ही चमचों की है. हम अनायास चमचागीरी में आनंदमग्न हो उठते हैं. चमचे भी अपनी चमचागीरी करवाते हैं. किसी महान व्यक्ति ने कहा है, कि गुलाम लोग ही सबसे अधिक गुलामी कराना चाहते हैं.    यह बात चमचों पर सटीक लागू होती है. दूसरों की चमचागीरी करनेवालों को भी अपनी चमचई करनेवाले प्रिय होते हैं. चमचों के महत्व को हमारे फिल्मकारों

Taken from Prabhat Khabar news paper

This interview is taken by Shri Harivansh ji  भाईश्री महान स्वतंत्रता सेनानी और गांधी जी के प्रिय पंडित रामनन्दन मिश्र के पुत्र हैं. इनका नाम है उदय राघव. माता-पिता प्यार से अन्ना कह कर पुकारते थे. अन्ना के नाम से ही मित्र बुलाते हैं. अन्ना जी ने डॉक्टरी (एमबीबीएस) की पढ़ाई की. फिर अपने वृद्घ पिता की सेवा और आध्यात्मिक साधना में निमग्न हुए. अब अध्ययन और साधना उनके जीवन के हिस्से हैं. अत्यंत मामूली ढंग से रहना. बहुत सादगी में जीना. पर दुनिया की ताजा और नवीन खबरों के साथ-साथ अध्यात्म का इतना गहरा अध्ययन जीवित लोगों में कम देखने को मिलेगा. उनके साथ बातचीत का पहला हिस्सा कल आपने पढ़ा, जिसमें उन्होंने बताया कि आज जो भी विकृतियां नजर आ रही हैं, उनका कारण है अतिशय भोग. इससे छुटकारा पाये बिना कोई मूल्य टिक नहीं सकता.  अगर ईश्वर हैं, तो जीवन में कैसे दिखते हैं? गांधी को, विवेकानंद को, रामकृष्ण परमहंस को, रमण महर्षि को या अन्य जो हमारे बड़े ऋषि-महर्षि हुए, उनको कहां दिखायी देते थे और कैसे प्रेरित करते थे? ये सारे महापुरुष, जिनका तुमने नाम लिया या जिनका नहीं लिया, वे अपने-अपने ढंग से उस म

Its taken from Prabhat Khabar दस आदमी के पास बहुत और नब्बे के पास अभाव

आज टेक्नोलॉजी ने समाज को तेजी से बदला है. इसी नयी संस्कृति की देन है, बिना शादी के लिव-इन रिलेशनशिप का जन्म. 13 नवंबर 2014 के दिल्ली के एक बड़े अखबार में पढ़ा कि अदालती आंकड़ों के अनुसार तीन साल में महज दिल्ली में लिव इन रिलेशनशिप में 12 गुणा से अधिक हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई. यह हिंसा, मार-पीट, जानलेवा हमलों से लेकर हत्या तक है.   लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद बलात्कार के आरोपों की बाढ़ आ गयी है. सिर्फ दिल्ली में, वर्ष 2013 में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों ने बलात्कार के 2049 मामले दर्ज कराये. बेंगलुरू में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं (तीन वर्ष की बच्ची से भी बलात्कार) का कोई निदान कानून-व्यवस्था या राजनीति नहीं निकाल पा रहे. इसलिए 11 नवंबर 2014 को टाइम्स ऑफ इंडिया की बड़ी खबर थी कि प्री-यूनिवर्सिटी के पहले की बेंगलुरू की शिक्षण संस्थाओं ने सुरक्षा के लिए यह तय किया है कि हर लड़की संस्थान को यह सूचना देगी कि वह कब, कहां, किससे बातें कर रही है. वह कब घर से निकलती है, कब घर पहुंचती है और कब कैंपस छोड़ती है?     दरअसल, समाज गिर चुका है. किसी गड्ढे के सबसे नीचे की सतह क