मुंशी प्रेमचंद भी मेरे आदर्श
मैंने दो लोगों को अपना आदर्श माना है, एक गांधी जी और दूसरे प्रेमचंद। तो मुंशी प्रेमचंद के बारे में ................. प्रेमचंद की भाषा सरल और सजीव और व्यावहारिक है। उसे साधारण पढ़े-लिखे लोग भी समझ लेते हैं। उसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेज़ी, उर्दू, फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग है। प्रेमचंद की भाषा भावों और विचारों के अनुकूल है। गंभीर भावों को व्यक्त करने में गंभीर भाषा और सरल भावों को व्यक्त करने में सरल भाषा को अपनाया गया है। इस कारण भाषा में स्वाभाविक उतार-चढ़ाव आ गया है। प्रेमचंद जी की भाषा पात्रों के अनुकूल है। उनके हिंदू पात्र हिंदी और मुस्लिम पात्र उर्दू बोलते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण पात्रों की भाषा ग्रामीण है। और शिक्षितों की भाषा शुद्ध और परिष्कृत भाषा है। प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू दोनों की शैलियों को मिला दिया है। उनकी शैली में जो चुलबुलापन और निखार है वह उर्दू के कारण ही है। प्रेमचंद की शैली की दूसरी विशेषता सरलता और सजीवता है। प्रेमचंद का हिंदी और उर्दू दोनों पर अधिकार था, अतः वे भावों को व्यक्त करने के लिए बड़े सरल और सजीव शब्द ढूँढ़ लेते थे। उनकी शैली में अलंकारिकता का भी ...