महात्मा के अंतिम शब्द हे राम

हे राम ... हे राम ... हे राम

महात्मा के विचारों को आज भी प्रासंगिक माना जाता है
साठ साल पहले 30 जनवरी, 1948 के ही दिन दिल्ली के बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे महात्मा गाँधी के पैर छूने के लिए झुका.... और जब उठा तो उसने एक के बाद एक तीन गोलियाँ महात्मा के सीने में दाग़ दीं थीं.
अब तक माना जाता है कि गोली लगने के बाद बापू 'हे राम!' कहते हुए गिरे थे और यह शब्द उनके पास चल रही उनकी पोती आभा ने सुने थे.

लेकिन एक नई पुस्तक 'महात्मा गांधी: ब्रह्मचर्य के प्रयोग' में बापू के अंतिम शब्द ‘हे राम’ पर सवाल उठाया गया है.

पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर की पुस्तक में दावा किया है कि 30 जनवरी, 1948 को गोली लगने के बाद महात्मा गांधी के मुख से निकलने वाले अंतिम शब्द ‘हे राम’ नहीं थे.

पुस्तक के अनुसार 30 जनवरी, 1948 को जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारी थी तो बापू के सबसे क़रीब उनकी पौत्र वधु मनु गांधी थीं.

उन्होंने बापू के होठों से अंतिम शब्द ‘हे रा...’ सुनाई दिया था इसलिए मान लिया गया कि उनके अंतिम शब्द ‘हे राम’ थे.

नई पुस्तक में कहा गया है कि मनु के दिमाग में ये शब्द इसलिए आए क्योंकि उनके अवचेतन मन में नोआखली में महात्मा गांधी की कही हुई यह बात गूंज रही थी कि '' यदि मैं रोग से मरूँ तो मान लेना कि मै इस पृथ्वी पर दंभी और रावण जैसा राक्षस था. मैं राम नाम रटते हुए जाऊं तो ही मुझे सच्चा ब्रह्मचारी, सच्चा महात्मा मानना.''

किताब के अनुसार महात्मा गांधी के निजी सचिव प्यारेलाल का भी मानना था कि गांधीजी ने मूर्छित होते समय जो शब्द निकले थे वे 'हे राम' नहीं थे.

उनका कहना था कि महात्मा गांधी के अंतिम शब्द 'राम राम' थे. ये कोई आह्वान नहीं था बल्कि सामान्य नाम स्मरण था.

जानी-मानी गांधीवादी निर्मला देशपांडे ने इस बात से असहमति जताई है.

निर्मला गांधी का कहना था कि उस शाम बापू जब बिड़ला मंदिर में प्रार्थना के लिए जा रहे थे तब उनके दोनों ओर आभा और मनु थीं. आभा बापू की पौत्री और मनु उनकी पौत्रवधु थीं.

निर्मला गांधी का कहना है कि जब बापू को गोली लगी थी तब उनके हाथ आभा और मनु के कंधों पर थे.

गोली लगने के बाद वे आभा की ओर गिरे थे. आभा ने स्पष्ट सुना था कि बापू के मुंह से आख़िरी बार ‘हे राम’ ही निकला था.

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