कभी आर कभी पार इस बार आर-पार!

लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
आजकल जिसे देखो आर-पार के मूड में दिख रहा है. इतिहास की वीरगाथाओं व अतीत के युद्ध परिणामों की दुहाई देते हम नहीं थकते. पाक को 1971 और कारगिल का हस्र याद दिलाते हुए हमारी छाती चौड़ी हो जाती है. हमारे अति देशभक्त नेता तो हर समय आर-पार की लड़ाई के मूड में दिखते हैं. आखिर इसी के सहारे ये जनता को रोटी-दाल, आलू-प्याज, भूख-बेरोजगारी और अपनी नाकारियों से विमुख करने में कामयाब होते रहते हैं. हमारे देश ही नहीं बल्कि पाक मीडिया में भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं. आज सुबह ही पी-टीवी में भी सुना. सीमा पार से गोलीबारी में चार अपराध हलाक हो गये. वहां के अस्थिर राजनीतिक हालात से जनता का ध्यान हटाने का इससे बेहतर तरीका भला क्या हो सकता है. अपने देश में तो स्थिर और मजबूत सरकार है. इसकी मजबूती की अलग परिभाषा तय करनेवाली शिवसेना के मुखपत्र में तो यहां तक कहा गया है कि अब भारत को  पाक में घुसकर हमला करने की जरूरत है. केंद्र में अब कांग्रेस की तरह कमजोर सरकार नहीं, बल्कि मजबूत सरकार है. उसे तुरंत पाक को सबक सिखाने के लिए हमला करना चाहिए. इसी तरह के मनोभाव से लैस जनता को युद्ध के परिणामों का अंदाजा तक नहीं है.
दिसंबर 2013 में इंटरनेशनल फिजिशंस फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आईपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत पाकिस्तान में एक और युद्ध हुआ और उसमें परमाणु हथियारों का प्रयोग किया गया तो शायद पृथ्वी पर मानव सभ्यता का ही अंत हो जाएगा. परमाणु युद्ध वैश्विक पर्यावरण और कृषि उत्पादन पर इतना बुरा प्रभाव डालेगा कि दुनिया की एक-चौथाई जनसंख्या यानी दो अरब से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है. ऐसा भी हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी पूरी की पूरी मानवजाति खत्म हो जाये. यदि परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया गया तो भी पहले से ही आर्थिक रूप से दिवालिया पाक भुखमरी के कगार पर आ खड़ा होगा. भारतीय स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. एक रिपोर्ट के अनुसार युद्ध के हालात में भारतीय सेना का गोला-बारूद कम पड़ सकता है. आयुद्ध भंडार गोला-बारूद की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं और लड़ाई हुई तो 20 दिन के अंदर ही भारत के पास कोई गोला-बारूद नहीं बचेगा. व्यापक युद्ध के हालात में भारत के पास 20 दिनों का ही गोला-बारूद बचा है. युद्ध की स्थिति में हमें असलहे आयात करने पड़ेंगे. कारिगल की लड़ाई के दौरान भारत को इमर्जेंसी में इजराइल से गोला-बारूद खरीदना पड़ा था. युद्ध में विजय भले ही एक पक्ष का हो विनाश दोनों पक्षों का होता है. विनाश का खामियाजा भी आमजनों को ही उठाना पड़ता है. भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्या का सामना न कभी नेता या एलिट क्लास ने किया है न आनेवाले दिनों में करेंगे. युद्ध की आग में झोंकनेवाले बयानों पर अंकुश लगाना ही समय की मांग है. वरना इसकी तपिश में झुलसने के लिए भी हम आमजनों को तैयार रहना चाहिए. पड़ोसियों से बेहतर संबंध की पहल करनेवाले देश के रहनुमाओं को भी सोचना चाहिए कि युद्ध में विजय हासिल कर या उनको सबक सिखा कर हमें बहुत कुछ हासिल नहीं होनेवाला. हमें अपना घर संवारना चाहिए. मजबूत सरकार अपनी जनता की रक्षा बखूबी कर सकती है, हमें पूर्ण विश्वास है. 

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

राजीव गांधी: एक युगद्रष्टा

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..