आध्यात्मिक इंदिरा गांधी

बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि जनता पार्टी के शासनकाल में श्रीमती इंदिरा गांधी पूरी तरह आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो गई थीं। उन दिनों सुबह-सवेरे के नित्यकर्मों से विमुक्त होने के बाद वे लगभग एक घंटे तक करती थीं और तत्पश्चात मा आनंदमयी के उपदेशों का मनन। सुबह दस बजे से लेकर बारह बजे के मध्य वे आगंतुक दर्शनार्थियों से मिलती थीं। 

इन अतिथियों में विभिन्न प्रदेशों के कांग्रेसी नेताओं के अतिरिक्त कतिपय साधु-संत भी होते थे। अपनी उन भेंट-मुलाकातों के मध्य आमतौर पर श्रीमती गांधी के हाथों में ऊन के गोले और सलाइयां रहती थीं। अपने स्वजनों के लिए स्वेटर आदि बुनना उन दिनों उनकी हॉबी बन गई थी। 

एक बजे के लगभग भोजन करने के बाद वे घंटेभर विश्राम करती थीं। विश्राम के बाद अक्सर वे पाकिस्तान के मशहूर गायक मेहंदी हसन की गजलों के टेप सुनती थीं। रात में बिस्तर पर जाने के पहले उन्हें आध्यात्मिक साहित्य का पठन-पाठन अच्छा लगता था। 
Indira Gandhi,

इस साहित्य में मा आनंदमयी के अतिरिक्त स्वामी रामतीर्थ और ओशो की पुस्तकें प्रमुख थीं। ओशो के कई टेप भी उन्होंने मंगवा रखे थे, जिनका वे नियमित रूप से श्रवण करती थीं। 

श्रीमद् भगवत गीता में भी इस दरम्यान उनकी पर्याप्त रुचि हो गई थी। समय-समय पर वे उसका भी पारायण करती थीं। उन्हीं दिनों कुछ समय के लिए वे हरिद्वार भी गई थीं, जहां स्वामी अखंडानंद के भगवत पाठ का उन्होंने श्रवण किया था। ऋषिकेश के निकट मुनि-की-रेती पर अवस्थित स्वर्गत स्वामी शिवानंद के आश्रम में भी उन्होंने कुछ घंटे व्यतीत किए थे। 

अपने जीवन के अंतिम चरण में इंदिराजी पूरी तरह शाकाहारी हो गई थीं। उनमें यह परिवर्तन उनकी वैष्णोदेवी यात्रा के बाद आया था। वैष्णोदेवी के सम्मुख करबद्ध होकर वे लगभग आधे घंटे तक पूरी तरह ध्यान मग्न होकर बैठी रही थीं। अपनी उस यात्रा के दौरान कश्मीर के जिस स्थान पर भी वे गईं, वहां के लगभग सभी देव मंदिरों के दर्शन उन्होंने किए। 

प्रधानमंत्री के रूप में भी श्रीमती गांधी जब कभी दक्षिण भारत जाती थीं तो वहां के सुप्रसिद्ध देवालयों में वे अनिवार्य रूप से अर्चन-पूजन करती थीं। जीवन के अंतिम सोपान में श्रीमती गांधी की श्रद्धा बहुत बढ़ गई थी और वे नियमित रूप से भजन-पूजन करती थीं।

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