खुशनसीब हो जो ऐसे रहनुमा मिले
लोकनाथ तिवारी, Lokenath Tiwary अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुझे नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं। अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है। आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे। मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली। अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले कई जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है। ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे। बाकी लोग क्या जाने पीर पराई। उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समझेंगे। यहां तो सूर्योदय देखना साल में एकाध दिन ही नसीब हो पाता है। आधी रात के बाद घर पहुंचते हैं और रमजान के सहरी के समय पर डिनर लेते हैं। उल्लुओं की तरह सोते हैं। जब तक बिस्तर से निकलते हैं तब तक लोगबाग अपने-अपने काम में मगन रहते हैं। बीबी के नसीब से मिली नौकरी की बड़ाई का क्या करूं। खोलकर बता दूं कि पत्रकारिता कर किसी तरह गुजर हो रहा है। खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी। बात ...