खुद पर हंसना आसान नहीं


लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
खुद पर हंसना आसान नहीं होता। जो ऐसा करते हैं वे जिंदादिल होते हैं। सिख भी उन्हीं में से एक हैं। स्वयं पर बनाये गये चुटकुलों पर अट्टाहास कर वे यह साबित करते हैं कि वे दूसरों की तुलना में कितने उदार हृदयी और ख्ाुले दिलवाले हैं। भले ही सिखों के एक वर्ग को उन पर बनाये गये च्ाुटकुले रास न आते हों लेकिन आज तक हमारे सरदार मित्रों ने इस तरह की भावना नहीं दर्शायी है। उन पर चुटकुले सुनाकर तो कई बार सुनानेवाले ही हंसी के पात्र बन जाते हैं। अब अदालत में सिखों पर बने चुटकुले पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर शोर से उठायी जा रही है। सिखों पर बनाए जाने वाले चुटकुलों को किस तरह से रोका जाए, इसके तरी़के बताने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सिख समूहों को छह सप्ताह का समय दिया है।
 गौरतलब है कि सिख चुटकुलों पर पाबंदी की मांग करते हुए दिल्ली की 54 वर्षीय सिख वकील, हरविंदर चौधरी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। अदालत में दायर अपील में चौधरी ने कहा था कि इंटरनेट पर पांच हज़ार वेबसाइट हैं जो सिखों पर चुटकुले बनाकर बेचती हैं। इन चुटकुलों में सिखों को बुद्धू, पागल, मूर्ख, बेवकूफ़, अनाड़ी, अंग्रेज़ी भाषा की अधूरी जानकारी रखने वाला और मंद बुद्धि और मूर्खता की मूर्ति के रूप में दिखाया जाता है।
उनका कहना था कि ये चुटकुले जीने के बुनियादी अधिकार और सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, इसलिए जिन वेबसाइटों पर ये प्रकाशित होते हैं, उनपर प्रतिबंध लगना चाहिए। इस अपील से हैरान जज इस पर सुनवाई के लिए तैयार तो हो गए थे लेकिन उन्हें इस बात पर ताज्जुब हुआ कि आखिर वो क्यों इस तरह का प्रतिबंध चाहती हैं। जजों ने कहा, हम ऐसे बहुत से लोगों को जानते हैं जो इन चुटकुलों को बहुत मज़ाक में लेते हैं। यह किसी के लिए अपमान नहीं हो सकता, बल्कि ये केवल मज़े के लिए कहे जाते हैं। आप चाहती हैं कि इस तरह के सभी चुटकुलों को रोका जाए लेकिन सिख खुद इसका विरोध कर सकते हैं।
चौधरी ने पिछले साल कहा था कि वो इसे और लंबे समय तक यूं ही चलते नहीं रहने देंगी। किसी भी चीज की हद होती है। हम सिखों की पूरी ज़िंदगी हंसी का पात्र बना दिया गया है। ये चुटकुले एक अभिशाप की तरह हैं और इनसे छुटकारा मिलना ही चाहिए। चौधरी का दावा है कि उन्होंने ब्रिटेन में क़ानून की पढ़ाई की है और इस दौरान वो वहां कैब ड्राइवर से लेकर, समोसा बनाने वाली और केएफ़सी के एक रेस्त्रां में भी काम किया। उनके अनुसार इस दौरान सिख समुदाय को लेकर बने चुटकुलों से उन्हें नस्लवाद, नफ़रत और यौन उत्पीड़न को सहना पड़ा। वो ये भी कहती हैं कि उनके परिवार को दिल्ली में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में निशाना बनाया, जहां 2000 से अधिक लोग मारे गए थे। सिखों का मज़ाक बनाए जाने पर अपने साथी वकीलों से मैंने झगड़ा तक किया है। इस तरह का मज़ाक बनाने वालों को मैंने थप्पड़ तक जड़ा है। मैं एक नई नई शादी किए हुए सिख जोड़े के बारे में जानती हूँ जिसे इस बात से बहुत धक्का लगा कि उनकी शादी के मौके पर किसी ने सिखों पर बनाए चुटकुलों की क़िताब उपहार में दे दी। चौधरी जजों को यह बात समझाने की कोशिश कर रही हैं कि चुटकुलों पर प्रतिबंध लगाने वाली उनकी मांग में बहुत दम है। एक सिख सांसद ने उनकी मांग का समर्थन भी किया। चौधरी ने स्कूलों के प्रिंसिपल को चिठ्ठी लिख कर उनसे अपील की कि वो इस तरह के चुटकुलों के प्रति बच्चों को संवेदनशील बनाने और इन्हें फैलाए जाने से रोकने के लिए उनकी काउंसिलिंग की व्यवस्था करें। पंजाब में एक कॉलेज के प्रिंसिपल ने इस मुहिम में शामिल होते हुए कोर्ट में अपील भी दायर की। एक सिख टिप्पणीकार ने लिखा कि उन्होंने प्रतिबंध लगाए जाने की मांग का इसलिए समर्थन किया क्योंकि भारत को उस बच्चे की तरह दिखना बंद कर देना चाहिए जो खाने की मेज पर आंखें फाड़े मूर्खता भरी बातों पर हंसता है, उसे अब बड़ा हो जाना चाहिए। इसके बावजूद कि हम सभी को अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रिय है, इसे रोके जाने की ज़रूरत है। यह पहली बार नहीं है कि सिख चुटकुलों पर ऐतराज जताया गया है। साल 2007 में पुलिस ने सिख समुदाय को अपमानित करने वाले एक चुटकुला फैलाने के लिए देश के अग्रणी उद्योगपति अनिल अंबानी पर मामला दर्ज किया था। उत्तर प्रदेश के एक सिख नेता ने अंबानी की मोबाइल कंपनी पर चुटकुले वाले संदेश भेजने का आरोप लगाया था और इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे। जिस कंपनी ने ये चुटकुले फैलाए थे, उसने माफी भी मांगी थी। इसी साल मुंबई में एक पुस्तक विक्रेता को सिख चुटकुलों वाली क़िताब बेचने और ‘धार्मिक भावना भड़काने’ पर गिरफ़्तार किया गया था। अधिकांश लोग मानते हैं कि एक खास नस्ल को निशाना बनाकर बनाए गए ये चुटकुले सीधे मज़ाक का विषय है। इतालवी, पोलिश और अंग्रेज़ों के बारे में भी ढेरों चुटकुले हैं और भारत में तमिलों, बंगालियों को एक खास तरह से चित्रित करते चुटकुलों की तो भरमार है। कोई भी ये ठीक से नहीं जानता कि भारत में सिख चुटकुलों का चलन कब शुरू हुआ, लेकिन सिख चुटकुलों वाली क़िताबें बहुत दिन से मौजूद रही हैं, इनमें अधिकांश सिखों द्वारा ही लिखी गई हैं और कुछ तो मशहूर सिख लेखक खुशवंत सिंह की लिखी हैं।
इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन के आने के बाद तो देश में चुटकुले बनाने और उन्हें फ़ोन पर बेचने वालों की मेहरबानी से यह एक उद्योग का रूप ले लिया है। इन चुटकुलों में अधिकांश में दो काल्पनिक क़िरदार होते हैं - संता और बंता। इसके साथ होती है उनकी मज़ाकिया गपशप, जो कभी कभार बेमज़ा भी होती है।
आज़ादी के बाद सबसे भयानक दंगों का शिकार होने और गहरे मानसिक घाव झेलने के बावजूद भारत के सिख सबसे सफल समुदायों में शुमार हैं।
मेहनती और उद्यमी होने के साथ साथ सेना में, सफल उद्योगपतियों, किसानों और खिलाड़ियों में भी उनकी अच्छी खासी तादाद है। वो काम करने के लिए दूर दूर तक यात्रा करते हैं और पूरी दुनिया में उनकी मौजूदगी है। समाज विज्ञानी शिव विश्‍वनाथन का भी ऐसा ही मानना है लेकिन वो मानते हैं कि सिख समुदाय को लेकर बने अंधिकांश चरित्र चित्रण ‘दोस्ताना और मजाकिया’ हैं।  ये चुटकुले इसलिए लोकप्रिय हुए क्योंकि यह समुदाय ड्राइवरों, प्रवासियों, घुमंतू और किसी भी काम के लिए तैयार रहने वाले लोगों का था।  खास चरित्र चित्रण की किसी पहचान से बराबरी नहीं की जानी चाहिए। लेकिन आजकल समस्या ये है कि पहचान एक पूजी जाने वाली चीज हो गई है। लोग ज़्यादा संवेदनशील हो गए है। इसलिए प्रतिबंध की मांग बढ़ रही है।

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