खुशनसीब हो जो ऐसे रहनुमा मिले

लोकनाथ तिवारी, Lokenath Tiwary
अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुझे नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं। अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है। आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे। मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली।
अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले कई जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है। ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे। बाकी लोग क्या जाने पीर पराई। उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समझेंगे। यहां तो सूर्योदय देखना साल में एकाध दिन ही नसीब हो पाता है। आधी रात के बाद घर पहुंचते हैं और रमजान के सहरी के समय पर डिनर लेते हैं। उल्लुओं की तरह सोते हैं। जब तक बिस्तर से निकलते हैं तब तक लोगबाग अपने-अपने काम में मगन रहते हैं। बीबी के नसीब से मिली नौकरी की बड़ाई का क्या करूं। खोलकर बता दूं कि पत्रकारिता कर किसी तरह गुजर हो रहा है। खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी। बात हो रही है नसीब की।
अपने 56 इंच सीनावाले मोदी जी प्राय: कहते है कि उनके नसीब से देशवासियों के अच्छे दिन आ गये हैं। कई रैलियों में उन्होंने अपने नसीब की दुहाई देकर सभी की बोलती बंद कर दी थी। मोदी जी का मानना है कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम उनके नसीब से कम हुए हैं। अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण आम आदमी का पैसा बचता है, तो बदनसीब को लाने की जरूरत क्या है। उनका कहना है कि उनके नसीब से विरोधियों को दर्द हो रहा है। खैर जो भी हो, दिल्ली के छह लाख घरों में स्वच्छ पीने का पानी नहीं नसीब होता, इसके लिए किसका नसीब दोषी है। उन्हें भी नहीं पता। कहा जाता है कि नसीब परजीवियों को भाता है।
राजा-रजवाड़ों के जमाने में कहा जाता था कि राजा के नसीब से प्रजा खुश होती है। राजा को खुश देख कर ही प्रजा खुश हो जाती थी, भले ही उसको दो जून के निवाले नसीब नहीं होते थे। लोकतंत्र में तो इस तरह की बात कर हम जनता को गुमराह करने के अलावा कुछ नहीं करेंगे। ऐसा होने लगा तब तो किसानों द्वारा की जानेवाली आत्म हत्या, बिगड़ती कानून व्यवस्था के कारण हलाक होनेवाले लोगों की बेचारगी को भी हम किसी के नसीब व बदनसीबी से जोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ सकते हैें।
गरीबी के कारण तन नहीं ढक सकने वाली बालाओं को उनकी बदनसीबी करार दे सकते हैं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दे पानेवाला मजदूर बाप, अपने परिवार को भरपेट भोजन नहीं मुहैया करनेवाला खेतिहर और बंद चटकल का बेरोजगार श्रमिक की बदनसीबी किसी सत्ताधारी पार्टी के नेता के नसीब से क्यों नहीं सुधर जाती।
नसीब के नाम पर राहत इन्दौरी साहब का ये शेर भी क्या खूब है। कश्ती तेरा नसीब चमत्कार कर दिया इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया। अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब हैं लोगों ने पूछ-पूछ के बीमार कर दिया। दो गज सही मगर ये मेरी मिलिकयत तो है। ए मौत तूने मुझेे जमींदार कर दिया। मैं तो कहूंगा कि खुशनसीब वो नहीं जिसका नसीब अच्छा है। खुशनसीब तो वो है जो अपने नसीब से खुश है।

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