डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये
डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये
लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
गाय, दलित, हिंदू, अल्पसंख्यक, बीफ, योग और पता नहीं क्या-क्या। इनके बीच क्या समानता है, यह तो फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉयोलॉजी और मॉलीक्यूलर साइंस के ज्ञाता ही विस्तार से बता पायेंगे, लेकिन हम जैसे मंद ब्ाुद्धि इनके बीच एक ही समीकरण को कॉमन मान सकते हैं। वह है वोट। वोट के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। अपने 56 इंच वाले महापुरुष भी अगर भाव विभोर होकर इस पर बयान दे बैठें तो इसमें आश्चर्य कैसा? कांग्रेस, बसपा, सपा सहित सभी पार्टियां इन मुद्दों पर पहले ही स्वत्वाधिकार जमाये बैठी है। हालांकि ढके छुपे शब्दों में वे भी स्वीकार कर रहे हैं कि दो साल बाद ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाय, मानवता और आपसी भाईचारे पर खुलकर जो बोला, वह समय की मांग थी और प्रशंसनीय भी है। इससे निश्चय ही एक अच्छा संदेश गया है। यदि वह शुरू में ही इस पर बोलते, तो कुछ और बात होती। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण से जल, जंगल व जमीन के साथ सिर्फ गाय ही नहीं, पूरा पशुधन तेजी से लुप्त हो रहा है। बेचारी गाय ही नहीं, अब तो इंसान की भी कहां कदर रह गई है? वास्तव में, आज लोग गाय के नाम पर धंधा ही कर रहे हैं। इस पर गौर करने की जरूरत है। यही नहीं, जाति-पंथ और धर्म आदि के नाम पर जो लोग समाज में भयंकर जहर घोल रहे हैं, उनके साथ भी बहुत कड़ाई से पेश आने की जरूरत है। ऐसे जालिम नेता या कार्यकर्ता कभी किसी समाज व पार्टी के सगे नहीं हो सकते।
गाय ही नहीं नरेंद्र मोदी ने दलितों पर हो रहे हमले जैसे विवादित मुद्दे का भी जिक्र किया है। पीएम ने डायलाग मारा, अगर किसी को हमला करना है तो मुझ पर करे। गोली चलानी है तो मुझ पर चलाएं, पर दलित भाइयों पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। समाज की एकता देश की शक्ति होती है। ऐसी घटनाओं से माथा शर्म से झुक जाता है। मुझे याद है बीज्ाू पटनायक जब उड़ीसा के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने राज्य में भ्ाुखमरी की समस्या पर भगवान जगन्नाथ के सामने कहा था, कालिया (जगन्नाथ) तुम्हारे राज्य में ये क्यों हो रहा है? उस समय अमिताभ बच्चन की फिल्म कालिया हिट हुई थी। लोगों ने फिल्मी डायलॉग मारने के लिए स्वर्गीय बीज्ाू पटनायक की जमकर खिंचाई की थी। अपने मोदी जी के डायलॉग को हम जैसे भक्त फिल्मी नहीं करार दे सकते। यह तो उनके अंदर से निकली बात है। वे तो नकली गोरक्षकों को चेतावनी भी देते हैं। उनका मानना है कि ये हिंदुस्तान की एकता को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। गोरक्षा के नाम पर कुछ लोग दुकानें खोलकर बैठ जाते हैं, तो उनको इतना गुस्सा आता है कि दुखी होकर डायलॉग झाड़ने लगते हैं। गोवध अलग है। गोसेवक अलग हैं। पुराने जमाने में बादशाह और राजाओं की लड़ाई होती थी। बादशाह आगे गाय रखते थे। राजा समझते थे कि गाय मारी जाएगी तो पाप लगेगा। वो लड़ाई हार जाते थे। इसी चालाकी से बादशाह जीत जाते थे। वर्तमान गो भक्तों में से अधिकांश पूरी रात एंटी सोशल एक्टिविटी करते हैं। लेकिन दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं। अब ऐसे लोगों का डोजियर तैयार हो रहा है। मोदी महाराज का मानना है कि 70-80 पर्सेंट गोभक्त ऐसे निकलेंगे जो ऐसे गोरखधंधे करते हैं, जिन्हें समाज स्वीकार नहीं करता। लेकिन अपनी बुराइयों को छुपाने के लिए वे चोला पहनकर निकलते हैं। सचमुच के अगर वे गोसेवक हैं तो कम से कम प्लास्टिक बंद करवा दें तो बहुत बड़ी गोसेवा होगी। स्वयंसेवा औरों को प्रताड़ित करने, दबाने के लिए नहीं होती। इसके लिए समर्पण, सेवा, बलिदान का भाव चाहिए। बता दें कि यूपी के दादरी में 11 महीने पहले अखलाक नाम के शख्स की इसलिए पीट-पीटकर हत्या कर दी गई क्योंकि उसके पास गोमांस रखे जाने का शक था। लेकिन यह बयान अब आया है जब उत्तर प्रदेश में च्ाुनाव की दस्तक सुनायी देने लगी है। यह बयान उस समय भी नहीं आया जब गुजरात के उना में दलितों की इसलिए पिटाई हुई, क्योंकि उन पर गोवध का शक था। पिछले सात महीनों में गाय के नाम पर दलितों और मुसलमानों पर बर्बरता के 14 बड़े मामले सामने आए हैं। ज्यादातर केस बीजेपी शासित राज्यों के हैं। हरियाणा में 3, मप्र में 3, पंजाब में 3, गुजरात में 2, राजस्थान में 2 और झारखंड में 1 मामले आए। ऐसा नहीं है कि गाय पर मोदी के बयान से सभी ख्ाुश हैं। कई भक्तों ने ख्ाुलेआम तो कई ढके छुपे नाराजगी प्रकट कर च्ाुके हैं। कई ने तो अंजाम भ्ाुगतने तक की धमकी दे डाली है। कुछ भक्तों का मोह भंग हो रहा है तो कइयों का मोह भंग हो च्ाुका है। कुल मिलाकर स्थिति-परिस्थिति दर्शनीय व विचारणीय हो रही है। हमारे स्टार की कथनी सुनकर दिल बाग बाग हुआ जा रहा है, आशा है करनी भी सुखदायक होगी।
लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
गाय, दलित, हिंदू, अल्पसंख्यक, बीफ, योग और पता नहीं क्या-क्या। इनके बीच क्या समानता है, यह तो फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉयोलॉजी और मॉलीक्यूलर साइंस के ज्ञाता ही विस्तार से बता पायेंगे, लेकिन हम जैसे मंद ब्ाुद्धि इनके बीच एक ही समीकरण को कॉमन मान सकते हैं। वह है वोट। वोट के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। अपने 56 इंच वाले महापुरुष भी अगर भाव विभोर होकर इस पर बयान दे बैठें तो इसमें आश्चर्य कैसा? कांग्रेस, बसपा, सपा सहित सभी पार्टियां इन मुद्दों पर पहले ही स्वत्वाधिकार जमाये बैठी है। हालांकि ढके छुपे शब्दों में वे भी स्वीकार कर रहे हैं कि दो साल बाद ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाय, मानवता और आपसी भाईचारे पर खुलकर जो बोला, वह समय की मांग थी और प्रशंसनीय भी है। इससे निश्चय ही एक अच्छा संदेश गया है। यदि वह शुरू में ही इस पर बोलते, तो कुछ और बात होती। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण से जल, जंगल व जमीन के साथ सिर्फ गाय ही नहीं, पूरा पशुधन तेजी से लुप्त हो रहा है। बेचारी गाय ही नहीं, अब तो इंसान की भी कहां कदर रह गई है? वास्तव में, आज लोग गाय के नाम पर धंधा ही कर रहे हैं। इस पर गौर करने की जरूरत है। यही नहीं, जाति-पंथ और धर्म आदि के नाम पर जो लोग समाज में भयंकर जहर घोल रहे हैं, उनके साथ भी बहुत कड़ाई से पेश आने की जरूरत है। ऐसे जालिम नेता या कार्यकर्ता कभी किसी समाज व पार्टी के सगे नहीं हो सकते।
गाय ही नहीं नरेंद्र मोदी ने दलितों पर हो रहे हमले जैसे विवादित मुद्दे का भी जिक्र किया है। पीएम ने डायलाग मारा, अगर किसी को हमला करना है तो मुझ पर करे। गोली चलानी है तो मुझ पर चलाएं, पर दलित भाइयों पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। समाज की एकता देश की शक्ति होती है। ऐसी घटनाओं से माथा शर्म से झुक जाता है। मुझे याद है बीज्ाू पटनायक जब उड़ीसा के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने राज्य में भ्ाुखमरी की समस्या पर भगवान जगन्नाथ के सामने कहा था, कालिया (जगन्नाथ) तुम्हारे राज्य में ये क्यों हो रहा है? उस समय अमिताभ बच्चन की फिल्म कालिया हिट हुई थी। लोगों ने फिल्मी डायलॉग मारने के लिए स्वर्गीय बीज्ाू पटनायक की जमकर खिंचाई की थी। अपने मोदी जी के डायलॉग को हम जैसे भक्त फिल्मी नहीं करार दे सकते। यह तो उनके अंदर से निकली बात है। वे तो नकली गोरक्षकों को चेतावनी भी देते हैं। उनका मानना है कि ये हिंदुस्तान की एकता को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। गोरक्षा के नाम पर कुछ लोग दुकानें खोलकर बैठ जाते हैं, तो उनको इतना गुस्सा आता है कि दुखी होकर डायलॉग झाड़ने लगते हैं। गोवध अलग है। गोसेवक अलग हैं। पुराने जमाने में बादशाह और राजाओं की लड़ाई होती थी। बादशाह आगे गाय रखते थे। राजा समझते थे कि गाय मारी जाएगी तो पाप लगेगा। वो लड़ाई हार जाते थे। इसी चालाकी से बादशाह जीत जाते थे। वर्तमान गो भक्तों में से अधिकांश पूरी रात एंटी सोशल एक्टिविटी करते हैं। लेकिन दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं। अब ऐसे लोगों का डोजियर तैयार हो रहा है। मोदी महाराज का मानना है कि 70-80 पर्सेंट गोभक्त ऐसे निकलेंगे जो ऐसे गोरखधंधे करते हैं, जिन्हें समाज स्वीकार नहीं करता। लेकिन अपनी बुराइयों को छुपाने के लिए वे चोला पहनकर निकलते हैं। सचमुच के अगर वे गोसेवक हैं तो कम से कम प्लास्टिक बंद करवा दें तो बहुत बड़ी गोसेवा होगी। स्वयंसेवा औरों को प्रताड़ित करने, दबाने के लिए नहीं होती। इसके लिए समर्पण, सेवा, बलिदान का भाव चाहिए। बता दें कि यूपी के दादरी में 11 महीने पहले अखलाक नाम के शख्स की इसलिए पीट-पीटकर हत्या कर दी गई क्योंकि उसके पास गोमांस रखे जाने का शक था। लेकिन यह बयान अब आया है जब उत्तर प्रदेश में च्ाुनाव की दस्तक सुनायी देने लगी है। यह बयान उस समय भी नहीं आया जब गुजरात के उना में दलितों की इसलिए पिटाई हुई, क्योंकि उन पर गोवध का शक था। पिछले सात महीनों में गाय के नाम पर दलितों और मुसलमानों पर बर्बरता के 14 बड़े मामले सामने आए हैं। ज्यादातर केस बीजेपी शासित राज्यों के हैं। हरियाणा में 3, मप्र में 3, पंजाब में 3, गुजरात में 2, राजस्थान में 2 और झारखंड में 1 मामले आए। ऐसा नहीं है कि गाय पर मोदी के बयान से सभी ख्ाुश हैं। कई भक्तों ने ख्ाुलेआम तो कई ढके छुपे नाराजगी प्रकट कर च्ाुके हैं। कई ने तो अंजाम भ्ाुगतने तक की धमकी दे डाली है। कुछ भक्तों का मोह भंग हो रहा है तो कइयों का मोह भंग हो च्ाुका है। कुल मिलाकर स्थिति-परिस्थिति दर्शनीय व विचारणीय हो रही है। हमारे स्टार की कथनी सुनकर दिल बाग बाग हुआ जा रहा है, आशा है करनी भी सुखदायक होगी।
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