आखिर जवाब दे गया खड़ाऊं वंदन

आखिर जवाब दे गया खड़ाऊं वंदन
लोकनाथ तिवारी

सैकड़ों कीमती सैंडल पहननेवाली तमिलनाडु की अम्मा अब जन्नतनशीं हो गयी हैं। आप सोच रहे होंगे कि उनके सैंडल अनाथ पड़े कहीं ध्ाूल फांक रहे होंगे। ऐसी कल्पना कर दुखी होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इन सैडलों की चरणध्ाूलि लेनेवालों की तमिलनाडु की धरा पर कोई कमी नहीं। अपने पन्नीरसेल्वम तो उनके अनाथ पड़े सैंडल को तख्त पर विराजमान कर दिये थे। जिस तरह राम जी के वनवास गमन के बाद भरत ने उनके खड़ाऊं को सिंहासन पर रख अयोध्या पर राज किया उसी तरह से अम्मा के सैंडल को तख्त पर रख कर यह बंदा भरत सरीखा फर्ज अदा करने में व्यस्त रहा। अम्मा के जेल जाने से लेकर बीमार होने और उसके बाद अकाल स्वर्गवासी होने तक  उनके फैन्स बिलख-बिलख कर रोते रहे। अम्मा के अकाल प्रयाण पर इनका रोना जायज भी है। इस कुनबे के मंत्री भी रोने में हम किसी से कम नहीं की तरह कम्पीटिशन लगाये रहे। कैमरे व मीडिया के सामने तो इनकी आंसुओं की धार गंगा, जमुना, घाघरा, नर्मदा सहित कई नदियों को पानी-पानी करने के लिए काफी था। सबसे अधिक बिलखनेवाले पन्नीरसेल्वम को पूर्व की भांति ताज मिला। अपने पन्नीरसेल्वम के बारे में एक और रोचक बात है, जिसे शेयर कर मैं किसी को छोटा नहीं करना चाहता. अपने पनीर (वही भरत रूपी सैंडल शिरोमिण सीएम) भाई भी पहले चाय बेचते थे।  पहली बार 1996 में नगरपालिका के चेयरमैन बने। उसके बाद विधायक और फिर मुख्यमंत्री। अब मुद्दे पर आता हूं, यानी पनीर भाई को बिलखते देख कई बार मुझे शक भी होने लगा था। उनके आंसू गिरते देख लगता था, जैसे ये खुशी के आंसू हों। अरे भई ये रामायण काल के भरत तो हैं नहीं कि राम के नहीं आने तक वनवासी वेशभूषा धारण किये रहें। सत्ता सुख तो अच्छे अच्छों को स्वामीभक्ति से विमुख कर देता है। अम्मा के जीवनकाल में ही पन्नीरसेल्वम की  स्वामीभक्ति से जलनवालों की कमी तो थी नहीं। ऐसे स्वामीभक्तों ने अम्मा की संगिनी रहीं चिनम्मा यानी शशिकला को विरासत सौंपने की ठान ली है। अम्मा के लिए बारंबार सिंहासन त्यागने वाले पन्नीरसेल्वम से पता नहीं क्यों लोगों को उम्मीद बंध गयी थी कि इस बार भी वे च्ाुपचाप अपनी गद्दी छोड़ देंगे।
पनीरसेल्वम के पूरे करियर को देखते हुए किसी को उनसे बगावत की उम्मीद भी नहीं थी। इसलिए जब उनके जयललिता की समाधि पर जाकर ध्यान लगाने की खबरें आईं, तो हर किसी को हैरत हुई। ध्यान लगाने या उसका अभिनय करने के बाद उठकर जब उन्होंने वहां मौजूद मीडिया के सामने मुंह खोला, तो पता चला कि बगावत हो चुकी है। ऐसी बगावत, जिसकी कुछ मिनट पहले तक किसी को भनक भी नहीं लग सकी थी। वैसे तो दिल ही दिल में नाकुर नुकूर करते पन्नीरसेल्वम ने दबाव में आकर त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन 24 घंटे के अंदर ही पैंतरा बदल कर दिखा दिया कि राजनीति उन्हें भी आने लगी है। पन्नीरसेल्वम ने यहां तक बयान दे दिया कि वह राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा वापस लेंगे। वह सदन में अपना बहुमत साबित करेंगे। जनता उन्हें पसंद करती है और उन्होंने दबाव में इस्तीफा दिया था। लेकिन राज्यपाल ने पन्नीरसेल्वम का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और वह फिलहाल कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं। लेकिन पन्नीरसेल्वम गद्दी से फेविकोल की तरह चिपकने के ज्ाुगाड़ में लग गये हैं। तमिनाडु की सियासत को अब तक समझ च्ाुके पन्नीरसेल्वम ने अम्मा  के पोएस गार्डन आवास को स्मारक में तब्दील करने की ठान ली है। अभी इस घर में शशिकला रहती हैं। उधर चिनम्मा शशिकला ने अपने समर्थन में 130 विधायकों को एक तरह से बंदी बनाकर बसों में अज्ञात स्थान पर भेज दिया है। उनके मोबाइल फोन तक रखवा लिये गये हैं। पन्नीरसेल्वम ने अम्मा की मौत को संदेह के घेरे में लेते हुए मौत की जांच का आदेश भी दे डाला है। उनका कहना है कि जब अम्मा बीमार थी तो उन्हें एक बार भी जयललिता से मिलने नहीं दिया गया था जबकि वह रोज अम्मा से मिलने के लिए अस्पताल गए थे। पन्नीरसेल्वम ने यहां तक कहा कि जयललिता चाहती थीं कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो वह मुख्यमंत्री बनें। अब अम्मा के सपनों को पूरा करने के लिए वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने पर आतुर हैं। इधर चिन्नमा भी लोगों की सेवा के लिए सिंहासन पर कब्जा करने की ज्ाुगत में न केवल ज्ाुट गयी हैं बल्कि भारी भी पड़ रही हैं। जनता की सेवा की भ्ाूख में सिंहासन हथियाने की ज्ाुगत में भले ही कोई जीते लेकिन लोकतंत्र एक बार फिर मुंह की खायेगा। क्योंकि अम्मा की विरासत को लेकर इस उठापटक में किसी को यह सुधि नहीं है कि तमिलनाडु की जनता क्या चाहती हैे। 

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