घर फूटे, गंवार लूटे

बचपन में यह कहावत प्राय: सुना करता था. हम भाई जब भी आपस में लड़ते, तो मां इसे दोहराती थी. समय के साथ कहावत का मर्म समझ में आया और इसका दायरा भी घर से बढ़ते हुए टोला, गांव, जवार, जिला, प्रांत, देश, दुनिया के स्तर तक पहुंच गया. हमारे राजनेता भी इस कहावत से नावाकिफ नहीं हैं. इसका मतलब भी वे बखूबी समझते हैं.
अपने हित में इसका उपयोग भी करते हैं. भले ही इस चक्कर में अपनी नाक कटा बैठते हैं. नाक कटाने पर काका की एक बात याद आ गयी. अरे, वही अपने काका, जो हर बात में अपना फायदा निकालने के लिए कुख्यात हैं. उनका मानना है कि दुश्मन का जतरा (यात्रा का शुभ मुहूर्त) भंग करने के लिए अपनी नाक भी कटानी पड़े तो परहेज नहीं है.
आजकल हमारे राजनेताओं ने भी काका का अनुसरण करना शुरू कर दिया है. पता नहीं काका ने कब उनको गुरुमंत्र दे दिया. संसद में बैठे कई दर्जन महानुभाव ‘नमोनिया’ की ‘मोदीसीन’ (मेडिसिन) खोजने के चक्कर में अपनी नाक कटाने पर तुले हुए हैं.
अमेरिकी सुप्रीमो को पत्र लिख कर वीजा नहीं देने का अनुरोध कर रहे हैं. इस भगीरथ प्रयास में कुछ लोगों ने तो अपने ही मित्रों का फर्जी हस्ताक्षर भी जुगाड़ लिया है. लेकिन झूठ खुल गया. कुछ लोगों का मानना है कि उनका हस्ताक्षर हाइजैक कर लिया गया है. प्रबुद्ध भाइयों ने आजकल के मौलिक लेखकों की तरह कट-पेस्ट वाला तरीका अपना कर हस्ताक्षर जुगाड़ा है. अरे भाई, अमेरिका के लिए वीजा नहीं मिलने से आप किसी का क्या बिगाड़ लेंगे. जैसे अमेरिका न हो गया स्वर्ग की सीढ़ी हो गयी.
लगता है नमोनिया अब मौसमी बीमारी बन गयी है. इसकी चपेट से बचने के लिए पप्पू ने अपनी सेना को सतर्क कर दिया है. कहा गया है बयानों के तीर सोच समझकर तरकश से बाहर निकालो वरना हाथ नहीं बचेगा. हाथ नहीं रहने पर आम तक कैसे पहुंचेंगे.
सबसे पहले नमोनिया की चपेट में आये लौहपुरुष को महाभारत के भीष्म याद आ गये थे. यशवंत भाई को सरेआम कहना पड़ा कि उनको यह बीमारी नहीं है. अब नमोनिया पीड़ितों की जमात में एक और नया नाम जुड़ गया है, बॉलीवुड को खामोश कर चुके शॉटगन का. बेचारे इससे बचने के लिए नाक कटाने से भी परहेज नहीं कर रहे. सरेआम बयान बम छोड़ रहे हैं.
कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना की तरह ये किसी को खुश कर दूसरे पर तंज कस रहे हैं. रामायण के पात्र पर भले ही इनका नाम हो, लेकिन इन्होंने रामायण शायद ठीक से नहीं पढ़ी. जो भी हो, घर में भेदी हो तो लंका को ढहने से भला कौन बचा सकता है? गंवारों को मौका देने के लिए घर फोड़नेवालों को कौन समझाये कि अपने हमाम का दृश्य दूसरों को दिखाने के पहले यह तो देख लो कि तन ढका हुआ है कि नहीं.

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

राजीव गांधी: एक युगद्रष्टा

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..