सबको खाने की गारंटी
जब से काका ने सुना है कि सरकार ने सबको खाने की गारंटी देनेवाला कानून बनाया है, तब से उनको सुस्ती घेरेरहती है. अब तो बेचारे उस दिन के इंतजार में हैं, जब यह कानून जमीन पर उतरे और खाने की गारंटी सरकारले ले. अब तो वे दिन भर सुदर्शन चक्रधारी, बंसरीबजैया, रासरचैया ‘मनमोहन’ का नाम लेते नहीं थकते. अगरकहीं कोई लौहपुरुष तृतीय या रथ-वीर नेता का नाम लेता है, काका उसे कोसने लगते हैं.
मंदिर, मसजिद, विकास, लैपटॉप-टैबलेट, साइकिल, साड़ी के नाम पर लोगों का दिल लूटनेवाले बहुत देखे, पर खानेकी गारंटी पहली बार कोई दे रहा है. है तो यह समझदारी भरा कदम! क्योंकि दिल का रास्ता पेट से होकरगुजरता है. पेट को पापी कहा जाता है और भूख को आग. जानकार लोग चोरी-डकैती से लेकर माओवादी हिंसातक की वजह ‘खाली पेट’ को बताते हैं.
भला हो इस सरकार का, जो उसकी नजर आम लोगों के पेट पर पड़ी. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद. कुछ लोगशिकायत कर रहे हैं कि चुनाव देख कर सरकार ने यह कानून बनाया है. अब भाई, इसमें क्या गलत है? हर पार्टीजो कुछ करती है, चुनाव जीतने के लिए ही करती है. काका सरीखे लोगों का मानना है कि अब तो बस पांच वर्षोमें एक बार वोट दे आयेंगे, और बैठ कर खायेंगे.
कुछ दिन और खटना है, उसके बाद सारा काम बंद. अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कहगये सबके दाता राम. यानी, सरकार भगवान की भूमिका में होगी और लोग अजगर की. बिना हिले-डुले भोजनलो और चैन से पड़े रहो.
काका को एड़ी से चोटी तक गदगद देख ताऊ से रहा न गया. हर समय काम-काज से जी चुरानेवाले काका कीखुशी का राज खुलते ही ताऊ को उनकी बुद्धि पर सदा की तरह तरस आया. बड़े प्यार से उन्होंने कहा, अरेबुद्धिवीर, ये कौन-सा नया कानून है! हम तो पिछले पचास बरस से देखते आ रहे हैं कि भाई लोग बिना काम कियेऔर बिना किसी कानून के खाते आ रहे हैं. खाना तो हर कोई खाता है. लेकिन वो लोग घूस, ईंट, सीमेंट, छड़,बालू, अलकतरा और पता नहीं क्या-क्या खा जाते हैं. बस नाम बदल जाता है. चारा से लेकर कोयला तक,टेलीफोन से लेकर खाद तक, ताबूत से लेकर हेलीकॉप्टर तक हजम कर जानेवालों को किसी खाने के अधिकारकानून की जरूरत नहीं पड़ती.
हां, कुछ हम जैसे अभागे भी होते हैं, जो बिना बात के मार और गालियां खाते रहते हैं. अब जब सरकार खानेकी गारंटी देनेवाली है, तो हम जैसे लोगों को एक उम्मीद बंधी है. हो सकता है आनेवाले दिनों में हमें भी बिनाकाम किये ही खाने को मिलने लगे. हां, अपने कपार और हाथों की लकीरों को देख कर इस उम्मीद पर भी पानीफिरने की सोलह आने आशंका है.
मंदिर, मसजिद, विकास, लैपटॉप-टैबलेट, साइकिल, साड़ी के नाम पर लोगों का दिल लूटनेवाले बहुत देखे, पर खानेकी गारंटी पहली बार कोई दे रहा है. है तो यह समझदारी भरा कदम! क्योंकि दिल का रास्ता पेट से होकरगुजरता है. पेट को पापी कहा जाता है और भूख को आग. जानकार लोग चोरी-डकैती से लेकर माओवादी हिंसातक की वजह ‘खाली पेट’ को बताते हैं.
भला हो इस सरकार का, जो उसकी नजर आम लोगों के पेट पर पड़ी. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद. कुछ लोगशिकायत कर रहे हैं कि चुनाव देख कर सरकार ने यह कानून बनाया है. अब भाई, इसमें क्या गलत है? हर पार्टीजो कुछ करती है, चुनाव जीतने के लिए ही करती है. काका सरीखे लोगों का मानना है कि अब तो बस पांच वर्षोमें एक बार वोट दे आयेंगे, और बैठ कर खायेंगे.
कुछ दिन और खटना है, उसके बाद सारा काम बंद. अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कहगये सबके दाता राम. यानी, सरकार भगवान की भूमिका में होगी और लोग अजगर की. बिना हिले-डुले भोजनलो और चैन से पड़े रहो.
काका को एड़ी से चोटी तक गदगद देख ताऊ से रहा न गया. हर समय काम-काज से जी चुरानेवाले काका कीखुशी का राज खुलते ही ताऊ को उनकी बुद्धि पर सदा की तरह तरस आया. बड़े प्यार से उन्होंने कहा, अरेबुद्धिवीर, ये कौन-सा नया कानून है! हम तो पिछले पचास बरस से देखते आ रहे हैं कि भाई लोग बिना काम कियेऔर बिना किसी कानून के खाते आ रहे हैं. खाना तो हर कोई खाता है. लेकिन वो लोग घूस, ईंट, सीमेंट, छड़,बालू, अलकतरा और पता नहीं क्या-क्या खा जाते हैं. बस नाम बदल जाता है. चारा से लेकर कोयला तक,टेलीफोन से लेकर खाद तक, ताबूत से लेकर हेलीकॉप्टर तक हजम कर जानेवालों को किसी खाने के अधिकारकानून की जरूरत नहीं पड़ती.
हां, कुछ हम जैसे अभागे भी होते हैं, जो बिना बात के मार और गालियां खाते रहते हैं. अब जब सरकार खानेकी गारंटी देनेवाली है, तो हम जैसे लोगों को एक उम्मीद बंधी है. हो सकता है आनेवाले दिनों में हमें भी बिनाकाम किये ही खाने को मिलने लगे. हां, अपने कपार और हाथों की लकीरों को देख कर इस उम्मीद पर भी पानीफिरने की सोलह आने आशंका है.
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