कारो पौष मास कारो सर्वनाश



कोई मर गया और किसी को खेल सूझ रहा है. बांग्ला की एक कहावत याद आ रही है- कारो पौषमास, कारो सर्वनाश. यानी किसी का सब कुछ नष्ट हो गया और कोई आनंद मना रहा है. पिछलेदिनों 162 वर्षीय अपने टेलीग्राम (तार) बाबा ने आखिरी सांस ली. विडंबना देखिए, लोगों ने आखिरीघड़ी में उनका मजाक बना कर रख दिया. कोई अपने प्रियजनों को तार भेज कर इस दिन कोखास बनाना चाहता था तो कोई खुद को ही तार भेज रहा था. कुछ लोग चाटुकारिता रूपी तैलीयअस्त्र को और पैना करने के लिए अपने बॉस को ‘प्रेम संदेश’ भेज कर भविष्य संवारने की जुगतमें जुट गये थे. ऐसे में राजनीतिक लोग ही क्यों पीछे रहें! कांग्रेसियों ने अपने युवराज को हीअंतिम तार भेज डाला.



देखादेखी पुण्य और देखादेखी पाप. डाकघर में लाइन देख अपने काका भी वहां पहुंच गये थे. पताचला कि तार अब इतिहास बननेवाला है. काका पहले तो थोड़ी देर के लिए मायूस हुए. फिर तारसे जुड़ी स्मृतियों का स्मरण हुआ, तो रोम-रोम सिहर उठा. बात तब की है, जब काकाकिशोरावस्था से जवानी में पदार्पण करने वाले थे. उन्हीं दिनों शहर से एक तार आया. गांव के पंडीजी (पंडित) के दरवाजे पर डाकमुंशी ने बताया कि रामखेलावन के भइया का कलकत्ता से तारआया है. बस जंगल की आग की तरह यह खबर काका के घर तक पहुंची और रोवन-पीटन मचगया. सभी ताऊ के अनिष्ट की आशंका को भांप कर कांप गये थे. पंडी जी के दुआर पर तार कोखोला गया, लेकिन डकमुंशी या वहां उपस्थित कोई मनई इसके मजमून को नहीं बता पाया. हां,एक बात स्पष्ट हो गयी थी कि रामखेलावन के भइया से संबंधित जानकारी है.

साइकिल दौड़ा कर बगल के गांव उपधिया टोला से मिसिर जी को बुलाया गया तब जाकर पताचला कि खुशी की खबर है. कलकत्ता में पढ़ने गये रामचरित्तर की नौकरी पक्की हो गयी थी. उसीके सिलसिले में तार से जानकारी दी गयी थी. बस क्या था, गम का माहौल खुशी में परिवर्तित होगया. रामखेलावन काका की माई ने ब्रह्मा बाबा को बधाव बजवाने की तैयारी शुरू कर दी. सभी कागुड़ से मुंह मीठा करवाया गया. डाकमुंशी को दो रुपये देकर विदा किया गया.



इस तरह की कई घटनाएं काका के जेहन में मंडराने लगीं. तार के परलोक गमन की खबर ने कईप्रियजनों के परलोकवास की यादें ताजा कर दीं. उनको स्वर्गवासी काकी की याद आ गयी, जोचिट्टी में लिखा करती थीं कि इसे तार समझ कर चले आना. खैर अब तो चिट्ठी भी इतिहासबनती जा रही है. डाकघर में युवा पीढ़ी के बीच तार की अंतिम घड़ी को यादगार बनाने कीअफरा-तफरी से काका को लगा, जैसे एक सदी का अंत हो रहा हो और हम इसे सहर्ष विदा कररहे हों.

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