गांधी आज भी उतने ही प्रासंगिक

लोकनाथ तिवारी
बापू की पुण्यतिथि पर विशेष
बापू और महात्मा के नामों से जाने-जानेवाले युगपुरुष, सत्य, अहिंसा, कर्तव्यपराण्यता, सहनशीलता एवं संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति मोहनदास करमचंद गाँधी की पुण्यतिथि पर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि.  महात्मा गांधी जी का ऐसा मानना था कि व्यक्ति के विचारो में परिवर्तन ला कर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है.
गांधीजी ने अपने विचारों के माध्यम से राजनीतिक, दार्शनिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन किये. उन्होंने सबको सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया. वह  एक समाज सुधारक भी थे. उन्होंने नीची जाति के लोगो के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. छुआ-छूत का विरोध किया. निम्न जाति के लोगो को आदरसूचक शब्द हरिजन कह कर बुलाना प्रारंभ किया जिसका शाब्दिक अर्थ “ईश्वर की संतान” है. राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश जी का मानना है कि गांधी विकल्पहीन हैं. 72 साल पहले 30 जनवरी के दिन नाथूराम गोडसे नामक हत्यारे ने अहिंसा के इस पुजारी की हत्या कर दी थी. दूसरी ओर अखिल भारतीय हिंदू महासभा की नेता पूजा पांडे जैसे लोग भी हैं जो गांधी जी के पुतले को गोली मारते हैं और उनके पुतले को फूंकते हैं. 'गोडसे जिंदाबाद' के नारे लगाते हैं.
एक बार जब महात्मा गांधी जी के पिता जी का तबादला पोरबंदर से राजकोट हो गया था. जहाँ गाँधी जी रहते थे वही उनके पड़ोस में एक सफाईकर्मी भी रहता था. गाँधी जी उसे बहुत पसंद करते थे. एक बार किसी समारोह के मौके पर गाँधी जी को मिठाई बाँटने का काम सौंपा गया. गाँधी जी सबसे पहले मिठाई पड़ोस में रहने वाले सफाईकर्मी को देने लगे. जैसे ही गाँधी जी ने उसे मिठाई दी वह गाँधी जी से दूर हटते हुए बोला कि ” मैं अछूत हूँ इसलिए मुझे मत छुएं ”. गाँधी जी को यह बात बुरी लगी और उन्होंने उस सफाई वाले का हाथ पकड़कर मिठाई पकड़ा दी और उससे बोले कि ” हम सब इंसान है, छूत – अछूत कुछ भी नहीं होता. गाँधी जी बात सुनकर सफाईकर्मी के आँसू निकल गये.
गांधी जी एक धार्मिक व्यक्ति थे. वह ईश्वर को मानने वाले सच्चे हिंदू थे. लेकिन वह दूसरे धर्मों का भी उतना ही आदर करते थे. जीवन के अंतिम दिनों में अपनी पूजा-पाठ और रामचरित मानस के मंत्रों पर उन्हें इस कदर भरोसा था कि उन्हें महसूस होता था कि वह अपनी बीमारियों का निदान भी इसी से कर लेंगे. गांधीजी का मानना था कि राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उनके अनुसार ईश्वर तो सत्य एवं प्रेम का रूप हैं, उनका भी यही मानना था की सबका मालिक एक है बस सब ईश्वर की अलग अलग व्याख्या करते हैं, गांधीजी का स्वयं का जीवन मानव और समाज के लिए उदाहरण है.
गांधीजी की बातें आज भी प्रासंगिक हैं. गांधी जी कहते थे कि जब भी आपको संदेह हो या आपका अहम् आप पर हावी होने लगे तो यह कसौटी आजमाओ, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी आपने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का आप विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए उपयोगी होगा या नहीं ? उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य को कुछ सुधार सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगो को स्वराज मिल सकेगा जिनका पेट भूखा है और जिनकी आत्मा अतृप्त है? तब आप देखोगे कि आपका संदेह मिट रहा है और अहम् समाप्त होता जा रहा है. प्रशासनिक पदों पर बैठे छोटे से बड़े स्तर के लोगों को इसका अनुसरण अवश्य करना चाहिए.
गांधीजी पूंजीवादी विचारधारा के विरोधी थे. वह शक्ति के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखते थे. उन्होंने ग्राम पंचायतों को शक्तिशाली बनाने पर जोर दिया, उन्होंने हमेशा से राम राज्य की कल्पना की जहाँ हिंसा नहीं अहिंसा का बोलबाला हो, गांधीजी ने कहा था कि, “मैं उस राम में आस्था नहीं रखता जो रामायण में हैं मैं तो उस राम में आस्था रखता हूँ जो मेरे मन में हैं” उनके अनुसार भारत की सभी समस्याओं का समाधान अहिंसा में छिपा है.
गांधीजी का ऐसा मानना था की व्यक्ति को हर परिस्थिति में अपना धैर्य बनाये रखना चाहिए और कभी भी असत्य के मार्ग को नहीं अपनाना चाहिए, गांधीजी ने निज स्वार्थ के लिए कभी भी कोई कार्य नहीं किया. वह कभी भी किसी लाभ के पद पर नहीं रहे. उनका ऐसा मानना था की निज स्वार्थ मनुष्य के अंदर कायरता, लोभ, मोह जैसे दुर्गुणों का संचार करती है जिससे न हीं व्यक्ति का भला होता है और न ही उस समाज का जहाँ वह रह रहा है.
अहिंसा एवं सत्य के सिद्धांत के जनक के रूप में गांधी जी को पूरी दुनिया याद करती है. बात उन दिनों की है. गाँधी जी के बड़े भाई कर्ज में फंस गये थे. अपने भाई को कर्ज से मुक्त कराने के लिए गाँधी जी ने अपना सोने का कड़ा बेंच दिया और उसके पैसे अपने भाई को दे दिए. मार-खाने के डर से गाँधी जी ने अपने माता-पिता से झूठ बोला कि कड़ा कही गिर गया है. किन्तु झूठ बोलने के कारण गाँधी जी का मन स्थिर नहीं हो पा रहा था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था और उनकी आत्मा उन्हें बार – बार यह बोल रही थी की झूठ नहीं बोलना चाहिए.
गाँधी जी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए सारी बात एक कागज में लिखकर पिताजी के टेबल पर रख दी. गाँधी जी ने सोचा की जब पिता जी को मेरे इस अपराध की जानकारी होगी तो वह उन्हें बहुत पीटेंगे. लेकिन पिता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. वह बैठ गये और उनके आँखों से आंसू आ गये. गाँधी जी को इस बात से बहुत चोट लगी. उन्होंने महसूस किया की प्यार के माध्यम से हिंसा से ज्यादा असरदार तरीके से दंड दिया जा सकता है.
गांधीजी की विचारधारा को शब्दों की माला में पिरोना असाध्य कार्य है, लेकिन उनके जीवन की छोटी से छोटी घटनाएं हमें उपयोगी जीवन जीने की प्रेरणा देती है. गांधी जी के निधन के सात दशक बीत जाने के बाद भी उनके जीवन पर कई ऐसे देशों में अध्ययन किया जाता है, जिनके बारे में गांधी जानते तक नहीं थे. पूरी दुनिया में उनके विचारों की तारीफ होती है. गांधी के वैश्विक महत्व का पता हर साल बड़े पैमाने पर दुनियाभर में उन पर प्रकाशित होने वाली पुस्तकों से भी चलता है.

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