भड़काऊ पहनावा या कमजोर चरित्र
हर वह स्त्री वेश्या नहीं होती और ना ही हो सकती है, जो अपनी पसंद के कपड़े पहने। सवाल यह भी है कि उकसाने वाले कपड़े अगर पहने भी है तो पुरुष की अपनी नैतिकता कौन तय करेगा? पुरुष का चरित्र इतना दुर्बल क्यों हैं कि पहनावे या नारी काया को देखते ही पतनोन्मुख हो जाता है? नैतिकता और गरिमा की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के ही सिर पर क्यों? अगर कोई लड़की सुंदर व आकर्षक लग रही है तो इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि वह यौन आमंत्रण दे रही है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि पुरुष अपने पर काबू ही ना रख पाए और उस पर टूट पड़े तथा बाद में इसका दोष लड़की के कपड़ों पर मढ़ दे? हमारे देश के दक्षिणी भाग में स्थित एक बड़े राज्य के पुलिस विभाग के मुखिया ने अपने सुविचार व्यक्त करते समय महिलाओं के पोशाक व पहनावे को निशाना बनाया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि केन्द्गीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस बयान का विरोध करते हुए कहा है कि हर नागरिक को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है। पहनावा अवसर के हिसाब से होना चाहिए। जाहिर है कि आप जब फुटबॉल या टेनिस खेलने जाते हैं तो ऊपर से नीचे तक कपड़ों में लिपटकर नहीं जा सकते। वहीं किसी कॉ...