भड़काऊ पहनावा या कमजोर चरित्र

हर वह स्त्री वेश्या नहीं होती और ना ही हो सकती है, जो अपनी पसंद के कपड़े पहने। सवाल यह भी है कि उकसाने वाले कपड़े अगर पहने भी है तो पुरुष की अपनी नैतिकता कौन तय करेगा? पुरुष का चरित्र इतना दुर्बल क्यों हैं कि पहनावे या नारी काया को देखते ही पतनोन्मुख हो जाता है? नैतिकता और गरिमा की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के ही सिर पर क्यों? अगर कोई लड़की सुंदर व आकर्षक लग रही है तो इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि वह यौन आमंत्रण दे रही है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि पुरुष अपने पर काबू ही ना रख पाए और उस पर टूट पड़े तथा बाद में इसका दोष लड़की के कपड़ों पर मढ़ दे?


हमारे देश के दक्षिणी भाग में स्थित एक बड़े राज्य के पुलिस विभाग के मुखिया ने अपने सुविचार व्यक्त करते समय महिलाओं के पोशाक व पहनावे को निशाना बनाया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि केन्द्गीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस बयान का विरोध करते हुए कहा है कि हर नागरिक को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है। पहनावा अवसर के हिसाब से होना चाहिए। जाहिर है कि आप जब फुटबॉल या टेनिस खेलने जाते हैं तो ऊपर से नीचे तक कपड़ों में लिपटकर नहीं जा सकते। वहीं किसी कॉकटेल पार्टी में जाते समय आप स्विमसूट नहीं पहनकर जा सकते।

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के डीजीपी वी दिनेश रेड्डी ने हैदराबाद में कहा था कि बलात्कार की बढ़ती घटनाओें के लिए पुलिस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए महिलाओं का फैशनेबल पहनावा जिम्मेदार है, जिसकी वजह से पुरुषों को उकसावा मिलता है। बलात्कार के मामलों की एक वजह महिलाओं का फैशनेबल होना है।

इससे पहले दूसरे देशों के आला पुलिस अधिकारी भी इस तरह के बयान जारी कर चुके हैं, जिसकी कठोर शब्दों में निन्दा की गई थी। यहां तक कि मनचाहे कपड़े पहनने के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए कई देशों में 'स्लटवॉक’ का आयोजन भी किया जा चुका है।

भारत में भी स्लटवॉक नामक शब्द से लोग परिचित हो गए हैं। दिल्ली के कनॉट प्लेस पर भी स्लटवॉक की घटना हो चुकी है। अब गाहे-बगाहे लोग-बाग अपनी पुरुष मानसिकता की भड़ास निकालने के चक्कर में इस तरह के बयान जारी करते रहते हैं, जिससे समाज को स्लटवॉक सरीखी क्रांति देखने को बाध्य होना पड़ता है। भारतीय परिवेश में इस तरह का विरोध सही संदेश देता है या नहीं, इस पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं। स्लटवॉक के माध्यम से कहीं पुरुषों की लिजलिजी मानसिकता तो अपना स्वाद लेती नजर नहीं न आतीं?

वर्ष 2०11 की शीर्ष चर्चित घटनाओं में स्लटवॉक भी शामिल है। कनाडा के शहर टोरंटो में महिलाओं ने विरोध करने के इस अनोखे तरीके को अपनाया, जिसकी आंच दुनिया भर ने महसूस की। महिलाओं के विरोध जताने के इस तरीके पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली। वास्तव में बलात्कार के मामलों में यूरोप और अमेरिका की अदालतों में आज भी इस बात पर पहले बहस होती है कि कहीं बलात्कार की वजह पीड़ित महिला के कपड़े या उसका फैशनेबल पहनावा या खुला व्यवहार तो नहीं। अब भारत में पुलिस अधिकारी के इस बयान पर भी तीखी प्रतिक्रिया आनी लाजिमी है।

यह तथ्य अक्सर उपेक्षित कर दिया जाता है कि पुरुष ने सामाजिक मर्यादा और नैतिकता के विरूद्ध आचरण किया। इसी प्रकार की घटनाओं से क्षुब्ध होकर महिलाओं ने कम कपड़ों में जुलूस निकालकर विरोध जताया। इनका मानना है कि हर बलात्कार की वजह स्त्री के भड़काऊ कपड़े नहीं बल्कि पुरुष की अपनी चारित्रिक दुर्बलता है।

पुरुष के भीतर के पशु की कारगुजारियों का दोष महिलाओं के वस्त्र पर डालना किसी भी तरह उचित नहीं करार दिया जा सकता। संस्कृति और शालीनता का सारा बोझ महिलाओं पर डालना भी उचित नहीं है। आखिर एक महिला कब अपनी इच्छाओं का गला घोंटती रहेगी वह भी इस डर से कि इससे कोई पुरुष भड़क सकता है।

हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया भर में भारतीय महिलाओं की अपनी एक शालीन पहचान आज भी कायम है। उन्हें विदेशों में जिस सम्मान और गरिमा के साथ देखा जाता है उसके पीछे उसका पहनावा और आचरण प्रमुख है। अत: हमें अपनी छवि बरकरार रखने के प्रति सचेष्ट रहने की भी जरूरत है।

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