व्हाई दिस कोलावरी डी ?

इक्कीसवीं सदी की अत्याधुनिकता का असर कहिए या पाश्चात्य जगत की छाया, हमारे देश के अति उत्साही युवाओं में कई गलत प्रवृत्तियां घर करती जा रही हैं। जिसकी भाषा समझ में नहीं आती और धुन में मदहोशी भरी हुई है, इस तरह के 'कोलावरी-डी’ बाजार में लोकप्रियता के शिखर पर हैं। छात्र अपने शिक्षकों का आदर नहीं करते बल्कि उनका उपहास उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। किशोर-किशोरियां अपनी उम्र से जल्दी जवान व वयस्क हो रहे हैं। बच्चे, बड़ों की तरह गम्भीर व जिम्मेदाराना व्यवहार करने लगे हैं। इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों में समाज में कई तरह के अनदेखे आचरण नमूदार हो रहे हैं।

कोलकाता में एक दस वर्ष की बालिका ने ठान लिया है कि वह प्रियंका चोपड़ा की तरह मशहूर अभिनेत्री बनेगी। हावड़ा का सात वर्षीय किशोर सचिन तंेंदुलकर की तरह क्रिकेटर बन अगाध धन कमाना चाहता है। आईएएस या आईपीएस बनने की चाह बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है, लेकिन विजय माल्या सरीखे उद्योगपति की तरह का जीवन जीने की ललक किशोरों में अभी से दिखाई देती है।

मुंबई में 15 साल की एक छात्रा ने अपनी कोख में पल रहे बच्चे के बारे में जानकारी देकर समाज को अचम्भित कर दिया है। उसने तय कर लिया है कि वह बच्चे को जन्म जरूर देगी। यह लड़की दसवीं में पढ़ती है और इस काम के लिए वह अपनी परीक्षाएं तक छोड़ने को तैयार है। जिस दोस्त को वह इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही है, उसकी उम मात्र सत्रह वर्ष बताई गई है। उसने यह जिम्मेदारी लेने तथा इस लड़की से शादी करने से भी इनकार कर दिया है। फिलहाल वह नाबालिग पिता सरकारी सुधार गृह में है। इस लड़की को उसके अभिभावकों ने समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वह बच्चे को जन्म देने व उसे पालने पर अडिग है।

लड़की एक बार अपने बच्चे को उसके पिता को सौंपने और उसे शादी के लिए मनाने की कोशिश करना चाहती है। उसे उम्मीद है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस तरह की स्थिति की किसी भी दृष्टि से प्रशंसा नहीं की जा सकती। इस तरह की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि वर्तमान युग में इस तरह की नई चुनौतियों का सामना करने में हम असमर्थ हैं।

यौन शिक्षा के दायरे को प्रभावी ढंग से बढ़ाकर इस कमी को पाटा जा सकता है। अपनी सोच में भी थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है। ऑनर किलिंग इस समस्या का समाधान किसी भी सूरत में नहीं हो सकता। हमारे देश में लड़कियों की कम उम्र में शादी करना एक आम बात है। चौदह साल के बाद से ही वर ढूंढने की कवायद शुरू हो जाती है। फलस्व्रूप कम उम्र में ही लड़कियां मां भी बन जाती है। इस तरह की घटनाएं यह प्रमाणित करती हैं कि कम उम्र में ही यौन सम्बन्ध बनाने की बातों पर अब केवल पश्चिमी जगत का ही कॉपीराइट नहीं रह गया है। आरजे, डीजे, मॉडलिंग, फैशन व ग्लैमर जगत की बातें गांवों तक पहुंच गई है। इसमें बहुत अधिक बुराई नहीं है, लेकिन संस्कार व परंपराओं से परे किशोर उम्र में यदि अनुशासनहीनता घर कर जाए तो भटकने की गुंजाइश बढ़ जाती है।

अब जरूरत इसे गंभीरता से समझने और नई पीढ़ी को समझाने की है कि किस तरह एक छोटी सी भूल उनकी पूरी जिदगी को बदल डालती है। किशोरांे को केवल सीख देकर हम इस तरह की गलतियों से रोक नहीं सकते। कोलावरी डी व पेज 3 के हीरो जिनके आदर्श रहेंगे, उनको हम थोथे आदर्श बताकर सही रास्ते पर नहीं ला सकते। जरूरत है दादी-नानी के किस्सों को सही तरीके से बच्चों के जेहन तक पहुंचाया जाए। आधुनिकता के साथ-साथ हमें अपनी परम्पराओं को भी आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ढालकर बच्चों को बताने की जरूरत है। यौन शिक्षा व सामाजिक शिक्षा को साथ-साथ बिना किसी लाग-लपेट के किशोरों को पढ़ाए जाने की जरूरत है।


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