.....जब रावण बस्यो पड़ोस
हमारे जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान अगर किसी के लिए होता है तो वे हैं हमारे पड़ोसी, जिनको चाहकर भी हम बदल नहीं सकते। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शायद पड़ोसियों से परेशान होकर या उनके प्रति अपना अगाध प्रेम प्रदर्शित करने के लिए ही कहा होगा कि आप मित्र तो बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते।
पड़ोसियों के मामले में मेरे एक मित्र काफी खुशकिस्मत रहे हैं। घर हो या कार्यस्थल हर जगह उनकी पड़ोस सुखदायी होती है। इस संदर्भ में मेरी किस्मत काफी दगाबाज है। 'जहां गइली खेहो रानी, ऊंहा ना मिले आग पानी’ की कहावत चरितार्थ होती है। वहीं बंजर की स्थिति है। घर में मेरे पड़ोस में बलियाटिकों का जमावड़ा है। दिनदहाड़े हो या घोर अन्हरिया, इनके घरों से दोअर्थी गाने की गंूज सुनाई देती रहती है। सीढिèयों पर चढ़ते-उतरते इनकी मोबाइल फोन पर फुल वॉल्युम में 'लगाई दिहीं ... .. हूक राजाजी’ और 'लगावेलू जब लिपिस्टिक हिलेला आरा डिस्टि्रक्ट’ जैसे गाने बजते रहते हैं। जब धार्मिक मूड में होते हैं तो असमय 'ऊं जय जगदीश हरे’ की धुन भी सुनने को मिल जाती है। उनकी बदौलत अब घर के बच्चे भी 'ओही रे जगहिया दांते काट लिहले राजाजी’ गुनगुनाने लगे हैं और तरह-तरह की गालियां सीख गए हैं।
अपने देश की स्थिति भी कमोबेश मेरी तरह ही हो गई है। दुनिया की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने अपनी ताजा वार्षिक रैंकिग में भारत के पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका को दुनिया के 'सबसे नाकाम देशों’ की सूची में शामिल किया है। सूची में शामिल 6० देशों में पाकिस्तान को 12वें, म्यांमार को 18वें, बांग्लादेश को 25वें, नेपाल को 27वें, श्रीलंका को 29वें और भूटान को 5०वें स्थान पर रखा गया है।
पाकिस्तान के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 'पाकिस्तान को वॉशिगटन के नीति नियामक धड़ों में लंबे समय से दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता है। अब पाकिस्तान न केवल पश्चिम के लिए बहुत खतरनाक है, बल्कि यह अपने लोगों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा हो गया है।’
बांग्लादेश के बारे में रिपोर्ट कहती है कि हर पांच में से दो बांग्लादेशी घोर गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किसी भी सुधार के तहत यहां के पर्यावरण से भी लड़ना होगा। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि समुद्र का स्तर अगर एक मीटर भी बढ़ गया तो इस देश का 17 फीसदी हिस्सा डूब जाएगा।
रक्षा मंत्री ए के एंटनी और गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कई बार आधिकारिक तौर पर बयान दिया है कि पाकिस्तान को अगर भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखने हैं तो उसे अपनी धरती पर आतंक का मूल सफाया करना होगा। भारत की नीति तो हमेशा से ही पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की रही है। हम नए दोस्त तो बना सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते।
बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के होते हुए हम कितने भी विकसित क्यों न हो जाएं समृद्ध नहीं हो सकते। हम अपने ज्यादातर पड़ोसियों से बहुत आश्वस्त और सहज नहीं हैं। कहीं हम सैन्य-तानाशाहों को प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देने के लिए बाध्य हैं तो कहीं द्बिपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए सही आधार और जरूरी विचार नहीं खोज पा रहे।
एशिया में हम जनतंत्र के स्तम्भ हैं पर म्यांमार में सैन्य-शासन का समर्थन करने को बाध्य हैं। पर वहां भी चीन का पलड़ा भारी है। पाकिस्तान से बेहतर रिश्तों का समीकरण विगत साठ वष्रों से जटिल बना हुआ है। श्रीलंका में अंतर्देशीय तनाव के चलते हमने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जैसे नेता को खो दिया। भूटान को छोड़कर हमार रिश्तों में कहीं भी सहजता नहीं है। ऐसे में भारत को पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की नई इबारत गढ़नी होगी। आखिर हम अपने पड़ोसियों तो बदल नहीं सकते लेकिन स्वयं को तो बदल ही सकते हैं।
पड़ोसियों के मामले में मेरे एक मित्र काफी खुशकिस्मत रहे हैं। घर हो या कार्यस्थल हर जगह उनकी पड़ोस सुखदायी होती है। इस संदर्भ में मेरी किस्मत काफी दगाबाज है। 'जहां गइली खेहो रानी, ऊंहा ना मिले आग पानी’ की कहावत चरितार्थ होती है। वहीं बंजर की स्थिति है। घर में मेरे पड़ोस में बलियाटिकों का जमावड़ा है। दिनदहाड़े हो या घोर अन्हरिया, इनके घरों से दोअर्थी गाने की गंूज सुनाई देती रहती है। सीढिèयों पर चढ़ते-उतरते इनकी मोबाइल फोन पर फुल वॉल्युम में 'लगाई दिहीं ... .. हूक राजाजी’ और 'लगावेलू जब लिपिस्टिक हिलेला आरा डिस्टि्रक्ट’ जैसे गाने बजते रहते हैं। जब धार्मिक मूड में होते हैं तो असमय 'ऊं जय जगदीश हरे’ की धुन भी सुनने को मिल जाती है। उनकी बदौलत अब घर के बच्चे भी 'ओही रे जगहिया दांते काट लिहले राजाजी’ गुनगुनाने लगे हैं और तरह-तरह की गालियां सीख गए हैं।
अपने देश की स्थिति भी कमोबेश मेरी तरह ही हो गई है। दुनिया की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने अपनी ताजा वार्षिक रैंकिग में भारत के पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका को दुनिया के 'सबसे नाकाम देशों’ की सूची में शामिल किया है। सूची में शामिल 6० देशों में पाकिस्तान को 12वें, म्यांमार को 18वें, बांग्लादेश को 25वें, नेपाल को 27वें, श्रीलंका को 29वें और भूटान को 5०वें स्थान पर रखा गया है।
पाकिस्तान के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 'पाकिस्तान को वॉशिगटन के नीति नियामक धड़ों में लंबे समय से दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता है। अब पाकिस्तान न केवल पश्चिम के लिए बहुत खतरनाक है, बल्कि यह अपने लोगों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा हो गया है।’
बांग्लादेश के बारे में रिपोर्ट कहती है कि हर पांच में से दो बांग्लादेशी घोर गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किसी भी सुधार के तहत यहां के पर्यावरण से भी लड़ना होगा। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि समुद्र का स्तर अगर एक मीटर भी बढ़ गया तो इस देश का 17 फीसदी हिस्सा डूब जाएगा।
रक्षा मंत्री ए के एंटनी और गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कई बार आधिकारिक तौर पर बयान दिया है कि पाकिस्तान को अगर भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखने हैं तो उसे अपनी धरती पर आतंक का मूल सफाया करना होगा। भारत की नीति तो हमेशा से ही पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की रही है। हम नए दोस्त तो बना सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते।
बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के होते हुए हम कितने भी विकसित क्यों न हो जाएं समृद्ध नहीं हो सकते। हम अपने ज्यादातर पड़ोसियों से बहुत आश्वस्त और सहज नहीं हैं। कहीं हम सैन्य-तानाशाहों को प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देने के लिए बाध्य हैं तो कहीं द्बिपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए सही आधार और जरूरी विचार नहीं खोज पा रहे।
एशिया में हम जनतंत्र के स्तम्भ हैं पर म्यांमार में सैन्य-शासन का समर्थन करने को बाध्य हैं। पर वहां भी चीन का पलड़ा भारी है। पाकिस्तान से बेहतर रिश्तों का समीकरण विगत साठ वष्रों से जटिल बना हुआ है। श्रीलंका में अंतर्देशीय तनाव के चलते हमने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जैसे नेता को खो दिया। भूटान को छोड़कर हमार रिश्तों में कहीं भी सहजता नहीं है। ऐसे में भारत को पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की नई इबारत गढ़नी होगी। आखिर हम अपने पड़ोसियों तो बदल नहीं सकते लेकिन स्वयं को तो बदल ही सकते हैं।
Comments