गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में

'वैलेंटाइन डे’ का मौसम शुरू हो गया है। कुछ देकर दिल लेने या देने की परंपरा हमारे देश में कहाँ से आई, इसका कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं मिल पाया है। 'रोज डे’, 'प्रपोज डे’, 'चॉकलेट डे’, टेडी बीयर डे, 'हग डे’ और 'किस डे’ के बाद वैलेंटाइन डे का बहुप्रतीक्षित दिवस आता है। इन दिनों को माध्यम बनाकर प्रेमी युगल एक दूसरे के प्रति अपने दिल की भावनाओं को उजागर करते हैं। हाँ, इसके पहले कुछ न कुछ देकर अपनी सुरक्षा पुख़्ता करने की कोशिश जरूर की जाती है।


स्वयंभू प्रेमगुरुओं का मानना है कि पहले किसी के समक्ष प्रेम का इजहार करना खतरे से खाली नहीं होता था। पता नहीं कब लेने के देने पड़ जाए। कुछ देकर खुश करने के बाद अपने दिल की भावनाओं को जुबान देने में कम खतरा होता है।

पहले तो चिTियों के माध्यम से दिल की बात कही जाती थी, जिसमें बहुत खतरा भी होता था। खत के साथ गुलाब या गेंदे का फूल भी होता था। साथ में यह करबद्ध अनुनय विनय भी होती थी कि इसे अपने भाई, पिता या काका के हाथ में नहीं पड़ने दें। भले ही प्रेम प्रस्ताव ठुकराकर राखी बाँधने की नौबत आ जाए, प्रेम के इजहार में अच्छे-अच्छों की घिग्घी बंध जाती थी। कभी कबूतर, कभी मुहल्ले का पप्पू तो कभी 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’ की तरह सखी या सखा के माध्यम से अपनी चाहत को भाषा प्रदान की जाती थी।

अब तो न पहले सा खतरा रहा और ना ही मुसीबत। शुक्र है मोबाइल फोन का, जिसने प्यार के इजहार को हलवा खाने जितना आसान कर दिया है। एसएमएस भेज कर आप अपनी बात बेहिचक कह सकते हैं। कई अतिजागरूक संभावित प्रेमी प्रत्यक्ष फोन करने का रिस्क उठा लेते हैं। इसके अलावा नेट चैट, सोशल साइट्स, एमएमएस, ई-मेल के जरिए भी आधुनिक प्रेमी अपनी बात गंतव्य तक पहुँचा देते हैं।

अब तो प्यार के इजहार के लिए बाकायदा अलग-अलग दिवस को अलग-अलग तरीके से अपनी बातें रखने का अवसर प्रेमियों के समक्ष है। 'ना इज्जत की चिंता, ना फिकर किसी अपमान की’ का फार्मुला अपनाने वालों को किसी गाली या थप्पड़ का डर नहीं होता। ये तो राह चलते शोहदों की तरह अपनी बात कह देते हैं। बदले में इडियट, स्टुपिड या मुँह झौंसा जैसे विशेषण सुनकर भी ही-ही कर दाँत निकालते हैं।

प्यार की सौगात के साथ वैलेंटाइन डे की तैयारियों में जुटे प्रेमियों के लिए यह करो या मरो की तरह की स्थिति होती है। यह एक ऐसा अवसर है जो हाथ से गया तो साल भर हाथ मलने की नौबत आ सकती है। पूरे साल इस दिन का इंतजार करने वाले कई तरह की तैयारियाँ करते हैं। जानकार प्रेमगुरुओं का मानना है कि प्रेम का इजहार करने में जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए। एक दिन में किला फतह नहीं किया जा सकता। प्रपोज करने से डरते हैं तो सबसे पहले उससे दोस्ती करें और बातचीत कर, ग्राउंड तैयार करें। फोन पर दिन में दो-तीन बार अच्छे-अच्छे मैसेज भेजें।

यह एक खुशी का अवसर है लेकिन असफलता मिलने पर दिल छोटा करने वाले प्रशंसा के पात्र नहीं हो सकते। प्यार में पिटने की नौबत तक आ सकती है। लेकिन वीर-बहादुर वही कहलाते हैं जो गिर-गिर कर संभलते है और जब तक किला फतह नहीं करते, चैन से नहीं बैठते। कहा भी गया है कि 'ये इश्क नहीं आसां गालिब ये समझ ली जै, इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।’

प्यार की डगर उतनी भी कठिन नहीं है जितना कि शायर ने अर्ज किया है, बस कोशिश की जानी चाहिए। प्यार की डगर पर चलने वाले कुछ समय तक राह तो भटक सकते हैं, लेकिन यह गन्तव्यहीन नहीं होती। कुछ देर तक असफलता हाथ लगने पर वैराग्य का सहारा लेना बिल्कुल उचित नहीं। गाली अपमान झेलकर भी अपनी जिदगी के सुख को हासिल किया जा सकता है। गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरेंगे, जो घुटनों के बल चले। बस सब्र करिए, गालियों को मुस्कान में बदलते देर नहीं लगती।

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