मलाई काटने वालों पर नकेल : समय की मांग



सरकार जब अपनी हो तो मलाई काटने की मंशा रखने वालों की फौज तैयार हो जाती है। पश्चिम बंगाल मंे तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस गठबंधन की सरकार के गठन के बाद इस तरह की गतिविधियों में तेजी आना लाजिमी है। इन दोनों ही पार्टियों में नेताओं और कार्यकर्ताओं में रेवड़ी बटोरने की होड़ लग गई है।

कई जगह इसे लेकर भयानक मारा-मारी भी मची हुई है। कोलकाता से सटे के ष्टोपुर में तृणमूल कांग्रेस के अंदरुनी घमासान की परिणति ने एक युवा नेता की जान ले ली। इसकी मौत को पहले तो राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई। माकपाइयों पर इस हत्या का आरोप मढ़ने की कोशिश की गई। भारी हाय तौबा के बीच सत्ताधारी पार्टी के दबाव में आकर पुलिस ने भी आनन-फानन कार्रवाई करते हुए सच्चाई की तह तक पहुंचने मंे सफलता अर्जित की। जब बात उजागर हुई तो शीर्ष नेताओं की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई। मीडिया में जब यह खबर प्रकाशित हुई तो लीपा-पोती की कोशिश शुरू हो गई। बाध्य होकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। शीर्ष नेताओं के कान उमेठने की प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इसके पीछे असली वजह कमाई में हिस्सेदारी पर हुआ बवाल माना जा रहा है।

जबकि मां, माटी मानुष की सरकार के सत्ता संभालते ही ममता दीदी को यह भान हो गया था कि नेता व कार्यकताã निरंकुश हो सकते हैं। उन्होंने सत्ता संभालने के बाद ही अपने नेताओं को ताकीद कर दी थीं कि प्रमोटरी, गुंडई व अवैध गतिविधियों के माध्यम से कमाई करने से बाज आएं। उनकी चेतावनी को अनसुनी कर कुछ लोग सत्ता परिवर्तन के साथ ही पैसा बटोरने की जुगत में तत्पर हो गए। लगातार ३५ वष्रों तक सत्ता से दूर रहने वाले नेताओं को नई सरकार के आगमन से अपने वारे-न्यारे होने की आशाएं जग उठी थीं।

हालांकि इस सरकार में उनकी जुगत बहुत सफल होती नहीं दिख रही। नेताओं के बीच भी दबी जुबान से यह चर्चा हो रही है कि आखिरकार पार्टी संचालन और सभाओं के आयोजन की व्यवस्था कब तक अपने खर्चे पर की जाती रहेगी। दयानतदारी, समाजसेवा, दान, चंदे व कई तरह के कारण दर्शाते हुए लोग-बाग पॉकेट भरने के जुगाड़ में लग गए हैं, जिसका खामियाजा पार्टी को आने वाले समय में भरना पड़ सकता है।

राजनीति को आसानी से पैसा कमाने का जरिया समझने वाले नेताओं को ममता दीदी का निर्देश नागवार गुजर रहा है। स्थानीय काउंसिलर हो या मंत्री, सभी को अपनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। सरकार के बदलने के बाद से आम जनता का मनोबल भी बढ़ा है, कोई किसी से दबने को तैयार नहीं। ऐसे में अनुशासन व अंकुश लगाए रखना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है। पार्टी नेताओं को प्रदेश, जिला, ब्लॉक व स्थानीय स्तर पर दीदी के निर्देशों को लागू करने के लिए मलाई काटने वाले नेताओं पर नकेल लगाने की जरूरत है। दीदी को संगठन के अलावा प्रदेश की बागडोर को भी सही दिशा देनी है, अत: उनके समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है, जिससे निपटना उनको बखूबी आता है।

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