भड़काऊ भड़ास पर अंकुश



मन में जो आए बक दें और दिल में जो आए कलमबंद कर दें, भले ही उससे किसी की इज्जत का भTा बैठ जाए। यदि इतनी छूट किसी भी आदमजात को दे दी जाए तो वह क्या-क्या कर सकता है? इसकी छोटी सी मिसाल सोशल नेटवîकग साइट्स पर देखने को मिल जाती है। किसी के धड़ में आपका सिर या आपके नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ देना तो बच्चों के खेल से भी आसान व सहज हो गया है। कई बार तो अर्द्ध नंगे बदन में आपकी काया भी इन साइट्स पर दिख सकती है, बशर्ते आप मशहूरियत की बिरादरी के सदस्य हों। जब तक बात हंसी-मजाक तक थी तब तक तो सबको मजा आ रहा था लेकिन अब यह नाक का फोड़ा हो गया है।

जब इस आग की लपट पार्टी के आला नेताओं को अपनी लपेट में लेने लगी तो सरकार की नींद खुली। लाजिमी है कि तीखा हमला सरकारी पक्ष पर ही होता है। विपक्ष अभी चटखारे भरकर मजे ले रहा है, लेकिन कल इनकी भी बारी आ सकती है। बात सत्ता पक्ष या विपक्ष के चरित्र हनन की नहीं है। इस तरह की हरकत पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।

हमारे महापुरुषों व देवी-देवताओं के चित्र के साथ भी अतीत में खिलवाड़ होता रहा है, जो किसी भी सूरत में सहन नहीं की जा सकती। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी का मान-हनन नहीं किया जाना चाहिए। भारतीय परम्पराओं के अनुसार भी इस तरह की प्रवृत्ति निन्दनीय है। सोशल नेटवîकग साइट्स पर कंटेंट को लेकर सरकार की आपत्ति सही लग रही है। इसका उपयोग करने वाले सभी चिंतनशील व परिपक्व व्यक्तित्व के मालिक ही नहीं हैं बल्कि कई किशोर व ऊटपटांग चरित्र वाले सज्जन भी हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के निरंकुश होने के कारण ही इसमें तरह-तरह के आपत्तिजनक चित्र व टिप्पणियां संग्रहित हैं।

सरकार की इन साइट्स पर अंकुश लगाने की मंशा से कुछ लोग नाराज भी दिख रहे हैं। ये उस जमात के लोग हैं जिनकी फेसबूक व ट्विटर पर प्रशंसकों की संख्या लाखों में है। उपन्यासकार चेतन भगत जैसे लोग चाहते हैं कि इस तरह की टीका-टिप्पणी पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। जबकि कांग्रेस सांसद और पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने कहा है कि सांप्रदायिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली तस्वीरों और भाषाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए।

कुछ नेता इसे राजनीतिक रंग देने पर भी तुले हुए हैं, भाजपा के युवा नेता वरुण गांधी का मानना है कि इंटरनेट ही सही मायने में लोकतांत्रिक माध्यम है, जहां हर कोई अपनी बात कह सकता है। अब हर कोई अपनी बात किस तरह कहेगा, यह तो उस पर निर्भर करता है। अमेरिकी समाज का अनुसरण करने वाले सोशल साइट्स गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फ़ेसबुक और याहू के प्रतिनिधियों ने कंटेंट को लेकर कुछ कर पाने में असमर्थता जाहिर की है। इस पर कठोर रुख अपनाते हुए सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के साइट्स पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली टिप्पणियों और चरित्र हनन करने वाले चित्रों को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अभी तक इन साइट्स पर लगाम लगाने की सरकार की रणनीति का खुलासा नहीं किया गया है। लोगों ने çइन सोशल साइट्स को सरकार के खिलाफ गुस्से का इजहार करने और उस पर ताने कसने के लिए भी इस्तेमाल किया है। फिलहाल विपक्ष को यह अच्छा लग रहा है, लेकिन इनकी निरंकुशता को सही नहीं ठहराया जा सकता।

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