आजादी की लड़ाई और मीडिया का तोप
आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने के लिए मीडिया रूपी तोप का सहारा लिया जा रहा है। तोप के गोले की जगह महत्वपूर्ण लोगों के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोपों की झड़ी लगाई जा रही है, जिसे मीडिया का भरपूर समर्थन मिल रहा है। मीडिया का भरोसा करने वाले समाजसुधारकों को यह भान होना चाहिए, कि वर्तमान समय में मीडिया भी बंटा हुआ है। कब कौन मीडिया किसके पक्ष में होगा, यह समय के अनुसार तय किया जाता है, जिसका कोई तय फार्मुला नहीं होता। अब आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू करने की घोषणा की जा रही है। ऐसा लगता है कि इस बार भी मीडिया के सहारे ही जग जीतने की योजना है।
देश में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की संख्या में हुई भारी वृद्धि का लाभ आजकल सरकार विरोधी मुहिम को आसानी से मिल जाता है। इसका लाभ अन्ना हजारे व उनकी टीम को भी मिला। सरकार के विरोध में जब विपक्ष की धार कमजोर हो गई थी तो भष्टाचार के मुद्दे पर टीम अन्ना को मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। टीआरपी वृद्धि के लिए मीडिया ने उस आन्दोलन को मसालेदार बनाकर परोसा। जनता को भाया भी। इसका श्रेय किसे मिला इस पर चर्चा नहीं भी की जाए, तो सभी जानते हैं कि कौन इस आन्दोलन का हीरो बनकर उभरा।
आजादी की दूसरी लड़ाई के बारे में चर्चा करते समय हमें पहली लड़ाई की जन भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। उस समय जाति-धर्म व वर्ग भेद को भुला कर लोग घर-बार छोड़कर जंग में कूद पड़े थे। किसी को प्रचार की ललक नहीं थी। परिणाम की परवाह किए बिना किशोर से लेकर मृतप्राय बूढ़े भी संघर्ष कर रहे थे। स्वार्थ से परे उन क्रांतिवीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में हो रही तथाकथित आजादी की दूसरी लड़ाई में संघर्ष करने उतरे रणबांकुरों के अंदर क्रांति की भावना भी होनी चाहिए। यदि मीडिया के बूते आजादी की पहली लड़ाई लड़ी गई होती तो शायद आज भी हमें गुलामी के साये में ही जीना पड़ता।
मजबूत लोकपाल बिल के लिए आंदोलन कर रहे समाज सेवी अन्ना हजारे ने घोषणा की है कि आजादी की दूसरी लड़ाई में बहुत लोगों को जेल जाना होगा, लाठियां खानी होंगी और कुछ को कुर्बानी भी देनी होगी। जब तक हम बलिदान नहीं देंगे तब तक सही आजादी नहीं मिलेगी। अब इस पर अमल करने वाले कितने जीवट हैं, यह तो समय ही बताएगा।
टीम अन्ना के निशाने पर कांग्रेस पार्टी व इसके शीर्ष नेता हैं। इसका सीधा फायदा विपक्ष को मिलेगा। अन्ना का मानना है कि स्टैंडिग कमिटी ने लोकपाल बिल के नाम पर जो घपला किया है, उसके पीछे राहुल गांधी का हाथ है। लोकपाल बिल स्टैंडिग कमिटी के खिलाफ रविवार को जंतर मंतर पर अन्ना का एक दिन का सांकेतिक अनशन होगा और उसके बाद अगर इस सत्र में मजबूत लोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो पांच राज्यों के चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी का खुलकर विरोध होगा।
अन्ना का आरोप है कि सरकार धोखाधड़ी कर रही है। प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि मजबूत लोकपाल बिल लाया जाएगा, लेकिन इसे पोस्ट ऑफिस जैसा रूप दे दिया गया है। उसे जांच का अधिकार दिया ही नहीं है। अन्ना की ओर से इसके खिलाफ आंदोलन की एक झांकी पेश करने का दावा किया गया है, जबकि उनकी असली लड़ाई 27 दिसंबर से शुरू होगी।
केवल नारे बुलंद करने से संघर्ष सफल होता तो देश में वाममोर्चा का ऐसा हाल नहीं होता। देश से भष्टाचार मिटाने के लिए सर्वप्रथम हमे स्वयं पाक-साफ होना होगा। स्वार्थ व प्रचार की ललक से परे होकर हमें सबसे पहले अपने भीतर आन्दोलन की चिंगारी को आग बनानी होगी। भष्टाचार व घुसखोरी से लड़ने के लिए हमें स्वयं पहल करनी होगी।
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