मैं पीता नहीं हूं, पिलायी गयी है

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
कौन कहता है कि मैं पियक्कड़ हूं। अरे भई इसमें मेरा दोष नहीं बल्कि यह तो मेरे जीन का दोष है। हमारे शरीर में एक ऐसा जीन है, जिसके कमजोर पड़ते ही हम पर पियक्कड़ी का भूत सवार हो जाता है। वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में एक ऐसा जीन खोज निकाला है, जो लोगों को एक हद से ज्यादा शराब पीने से रोकता है। बीटा क्लोथो नाम का यह जीन व्यक्ति के अंदर शराब के उपभोग को एक सीमा से ज्यादा न बढ़ाने की इच्छा पैदा करता है। अगर यह बीटा क्लोथो कमजोर पड़ जाये तो हम मधुशाला की डगर पर चलने को मजबूर हो जाते हैं। टेक्सास यूनिवर्सिटी ने इसके लिए एक लाख से भी ज्यादा लोगों पर शोध किया और पाया कि जिन लोगों में यह जीन था, उनमें बेतरह पीने की लत नहीं थी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने कुछ चूहों में यह जीन डालकर एक और प्रयोग किया, तो पाया कि इस जीन वाले चूहों को शराब की लत नहीं लगी। उन्होंने पाया कि इस जीन की वजह से हमारे लीवर में बीटा क्लोथो नाम का एक हार्मोन पैदा होता है। इस हार्मोन के असर करने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है। लेकिन जब यह हार्मोन सक्रिय होता है, तब पीने वाले के मस्तिष्क को यह संदेश भेजता है कि अब उसे पीना बंद कर देना चाहिए। इस प्रयोग के दौरान ही वैज्ञानिकों ने पियक्कड़ या ज्यादा पीने वाले की परिभाषा भी तय कर दी। वे इस नतीजे पर पंहुचे कि जो लोग एक सप्ताह में 21 या उससे ज्यादा पैग शराब पीते हैं, उन्हें ज्यादा पीने वालों की श्रेणी में रखा जा सकता है। अब आगे का शोध इस बात पर हो रहा है कि जो जरूरत से ज्यादा पीते हैं, क्यों उनके पीने पर कुछ रोक लगाई जा सकती है। एक तरीका तो यह है कि उन्हें बीटा क्लोथो हार्मोन दवा के रूप में दिया जाए और वे बिना किसी नैतिक शिक्षा यह समझदारी की सलाह के खुद अपनी प्रेरणा से ही अपने पीने को सीमित कर दें। जाहिर है कि इसका असर भी सीमित ही रहेगा, क्योंकि जब तक वह शख्स दवा लेता रहेगा, उसके शराब पीने पर लगाम लगी रहेगी, हालांकि बाद में हो सकता है कि वह फिर से वैसे ही पीने लगे। दूसरा तरीका यह है कि उसे शरीर में बीटा क्लोथो जीन को ही ट्रांसप्लांट कर दिया जाए, जिसके बाद उसे बार-बार दवा देने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। जीन थेरेपी तकनीक जिस तरह से विकसित हो रही है, उसमें अब यह असंभव काम भी नहीं है। बहरहाल, ज्यादा पीने वाले अगर चाहें, तो इस अध्ययन का एक फायदा तुरंत उठा सकते हैं। वे यह कह सकते हैं कि अगर वे ज्यादा पीते हैं, तो इसमें उनकी अपनी कोई गलती नहीं, दरअसल यह गलती तो उनके जीन की है।  
शराब को देखने का भारतीय तरीका बाकी दुनिया से काफी अलग है। यहां किसी न किसी रूप में शराब हमेशा से मौजूद रही है, इसका प्रचलन भी रहा है, लेकिन इसे नैतिकता से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। लेकिन दुनिया के बहुत सारे दूसरे हिस्सों में ऐसा नहीं है और वहां इसे नैतिकता से जोड़कर नहीं देखा जाता। कई जगहों पर तो इसे बाकायदा सामाजिक पेय माना जाता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उन देशों में शराब को लेकर परेशानियां नहीं हैं। खासकर दिक्कत उन लोगों को लेकर है, जो बहुत ज्यादा पीते हैं, यानी जिन्हें पियक्कड़ कहा जा सकता है। ऐसे लोग सामाजिक परेशानियां तो खड़ी करते ही हैं, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र पर भी बोझ बढ़ाते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, पूरी दुनिया में हर साल अधिक शराब पीने की वजह से तीस लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इस आंकड़े में शराब के सेवन के कारण हुई दुर्घटनाएं शामिल नहीं हैं। यह समस्या वैज्ञानिकों को हमेशा ही परेशान करती रही है कि क्यों कुछ लोग शराब से दूरी बना लेते हैं, जबकि कुछ लोग थोड़ी-बहुत पीकर अपने हाथ खड़े कर देते हैं, मगर वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो जब तक शरीर में जुंबिश रहती है, तब तक शराब पीते रहते हैं? वैज्ञानिक अब इस पहेली का हल निकालने के नजदीक पहुंच चुके हैं। हमारे यहां तो सड़कों पर दुर्घटनाओं के लिए भी शराब व शराबियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यहीं कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राष्ट्रीय और राजकीय राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और ताकीद की है कि ऐसी शराब की दुकानों का लाइसेंस 31 मार्च के बाद नवीनीकरण न किया जाए। शीर्ष अदालत ने राजमार्गों के किनारे लगे शराब की दुकानों के संकेतक भी हटाने का निर्देश दिया है। अदालत ने पिछले सप्ताह ही इस मामले पर सुनवाई करते हुए सड़क हादसों में होने वाली मौतों पर चिंता जताकर अपने रुख का संकेत दे दिया था। अदालत ने पंजाब सरकार द्वारा इस मामले में रियायत दिए जाने की अपील पर भी सख्त टिप्पणी की थी और याद दिलाया था कि उसने किस तरह लोगों की जान की परवाह न करके शराब की दुकानों के लाइसेंस महज राजस्व कमाने के लिए बांट रखे हैं। बात चाहे जो हो, हमारे समाज में हर ब्ाुराइयों की जड़ शराब को मान लिया गया है। तभी तो हमारे सुशासन बाबू नीतीश कुमार शराब बंदी का वादा कर तीसरी बार  सत्तासीन हो गये। शराब की महिमा पर भले ही मशहूर कवि हरिवंशराय बच्चन साहब ने मधुशाला रच डाली हो, हम तो अगर शराब सूंघ कर राम चरित मानस की पंक्तियां भी कहते हैं तो लोग दो चार खरी खोटी सुना देते हैं। 

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