नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन पड़ा कुंद

नोटबंदी के बाद गांवों में लोग अपने ही पैसे के लिए मारे मारे फिर रहे हैं, लेकिन विपक्षी शहरों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लगन (शादी विवाह) के समय में लोगों की इज्जत दाव पर लगी है। किसानों की जमीन में नकदी बिना सिंचाई नहीं हो पा रही, लेकिन विरोधी पार्टियां इस मौके का लाभ लेने में विफल रहीं। इनका विरोध केवल शहरों तक सीमित रहा। लोगों की सहानुभ्ाूति अर्जित करने में विपक्षी पार्टियां नाकाम रही हैं। नोटबंदी के बाद कितना कालाधन आया या कितने लोग पकड़े गये, इसकी आम जनों को फिक्र नहीं है। इसका लाभ या नुकसान पता करने में सरकार भी नाकाम है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी स्पष्ट किया है कि नोटबंदी के बाद कितना कालाधन बैंकों में जमा हुआ यह बताना मुमकिन नहीं है। ऐसे में आंकड़ों की बाजीगरी बताने के बजाय ग्रामीणों व किसानों की समस्या पर बहस हो तो विपक्ष को माइलेज मिल सकती है। यहां तो विपक्ष ख्ाुद ही बिखरा हुआ है। संसद का शीतकालीन सत्र बेवजह नोटबंदी की भेंट चढ़ गया। कमजोर और बिखरा विपक्ष अकसर सत्तारूढ़ दल को निरंकुश बना देता है, यह बात नोटबंदी के फैसले से उजागर हुई। एक बेहद संवेदनशील और अहम मुद्दे पर कांग्रेस सहित तमाम क्षेत्रीय दल एकदूसरे का मुंह ताकते नजर आए कि क्या करें। अपना रूख उन्होंने जनता का मूड भांपते तय किया तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राहत देने वाली बात थी क्योंकि इस मसले को विपक्ष न उगल पाया और न ही निगल पाया। जन आक्रोश दिवस पर विपक्षी दलों ने नोटबंदी के फैसले के खिलाफ सड़कों पर आ कर विरोध जताया लेकिन इस क्रम में वे उद्देश्य की एकता नहीं दिखा पाए। बारीकी से देखें तो यही लगता है कि इन दलों के बीच इस पर ही कोई स्पष्ट समझ नहीं है कि वे किस चीज का विरोध कर रहे हैं। तात्कालिक प्रतिक्रिया यह आई कि इस फैसले का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से गहरा ताल्लुक है और घाटे में बहुजन समाज पार्टी रहेगी क्योंकि मायावती के पास अरबों की नकदी बड़े नोटों की शक्ल में है। इस कथित आरोप को धता बताते मायावती ने कहा कि इस फैसले से आम लोगों खासतौर से गरीबों को तरह-तरह की तकलीफें उठानी पड़ रही हैं। इस बाबत उन्होंने कुछ उदाहरण भी गिना दिए।
यही कांंंग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने कहा तो समाजवादी पार्टी की तरफ से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने कुछ छूटें देने की मांग नरेंद्र मोदी से की। तुक की बात पश्‍चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह कही कि वे कालाधन बरामद करने के खिलाफ नहीं पर इस फैसले से देश में आर्थिक अराजकता का माहौल बना है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी घोटाले की तरफ इशारा करते नजर आए तो उनके गुरू समाजसेवी अन्ना हजारे ने इसे साहसिक कदम बताते केंद्र सरकार की तारीफों में कसीदे गढ़ डाले। चौंका देने वाली एक प्रतिक्रिया शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दी। उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि लोग सरकार के खिलाफ ही सर्जिकल स्ट्राइक कर दें। केंद्र सरकार ने बड़े नोट बंद करने का दांव उस समय चला है जब उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत कई राज्यों में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा के चुनाव लड़ने के लिए भारी तादाद में पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इनमें बड़े नोट सबसे ज्यादा होते हैं। विरोधी दल इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे दलों के प्रचार को प्रभावित करने के लिए यह दांव चला है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बड़े नोट बंद होने से खलबली मची है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नोटबंदी को जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया। बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती ने कहा कि मोदी सरकार ने गरीब, मजदूरों और किसानों की परेशानियों का ध्यान नहीं रखा। तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और आम आदमी पार्टी ने नोटबंदी वाला निर्णय वापस लेने की मांग की है। प्रतिरोध कैसे हो, इस पर भी उनमें मतभेद रहे। 14 दलों ने मिल कर जन आक्रोश दिवस मनाने का फैसला किया जबकि वामपंथी दलों ने भारत बंद की अपील कर दी। बाद में जनता दल(यू) विरोध मुहिम से ही अलग हो गया। दरअसल, इस पार्टी के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी का पुरजोर समर्थन किया है। यही रूख ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और उनके बीजू जनता दल(बीजद) का भी है। जाहिर है इनमें से कोई दल जरूरत के मुताबिक आक्रामक नहीं हो पाया तो उसकी वजह शुरू में आम लोगों का इस फैसले से इत्तेफाक रखना था। ऐसा लग रहा है जैसे फिलहाल देश में बैंकों से नकदी निकालने के अलावा बाकी हर कार्य बंद हो गये हैं। यही अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि लोगों का जीवन थम सा गया है। फिर भी विपक्ष दिशाहीन है। केंद्र के खिलाफ जोरदार आंदोलन के बजाय संसदठप कर अपनी भड़ास निकाल रहा है। 

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