काले धनिक कितने महान

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)
हमारे देश में काले धन से महान बने अमीर पूज्यनीय व्यक्ति हैं। वैसे अपने देश में यह कहावत हर छोटे-बड़े खूब चाव से कहते हैं कि जो पकड़ा गया वही चोर है। जब तक पकड़े नहीं गये तब तो उनके नाम के आगे कसीदे पढ़े जाते हैं। अभी दो दिन पहले तक लग रहा था कि इस हरकत में कुछ लोग ही शामिल हैं। कुछ बैंक कर्मचारी, कुछ मैनेजर, कुछ सोने के व्यापारी नोटबंदी के बाद के हालात का फायदा उठाते हुए चांदी काट रहे हैं। अब तो पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर सुरेश आडवाणी पर 10 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोटों की हेराफेरी का आरोप लगा है। फिलहाल सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया है और सीबीआई की एक टीम आरोपों की जांच में जुटी है। 8 नवंबर के बाद कालेधन के खिलाफ छिड़ी मुहिम में अब तक आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और तमाम जांच एजेंसियां अरबों के कालेधन का खुलासा कर चुकी है। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित टीएंडटी लॉ फर्म के मालिक रोहित टंडन, कोलकाता के बड़े कारोबारी पारसमल लोढ़ा से लेकर कई सफेदपोश शख्सियतें अभी तक इस कालेधन के खेल में बेनकाब हो चुकी हैं। सूरत के चाय बेचने वाले अरबपति किशोर भजियावाला की संपत्ति के खुलासे ने तो देश को ही हिला कर रख दिया था।
फिलहाल जांच एजेंसियां लगातार पूरी मुस्तैदी से कालेधन की पड़ताल में जुटी है। उम्मीद है जल्द कई और सफेदपोश लोगों के नाम इस काली फेहरिस्त में दर्ज होंगे। इनके पकड़े जाने की खबरें आश्‍वस्त भी करती हैं कि ऐसे मामले बहुत आगे नहीं जा सकेंगे, क्योंकि सरकार की एजेंसियां सक्रिय हो चुकी हैं। लेकिन पिछले दो दिनों में जिस तादाद में नए नोट बरामद हुए हैं, वे चौंकाते हैं। उस समय, जब आम लोग भटक रहे हैं, बैंक शाखाओं और एटीएम के बाहर लंबी लाइनों में जूझ रहे हैं और उन्हें हजार-दो हजार रुपये भी नहीं मिल पा रहे, तब कई लोगों के पास करोड़ों रुपये के नए नोट बरामद हो रहे हैं। अभी हाल ही में गांव गया था। मोदी के ग्ाुणगान करते लोग अघाते नहीं थे। दिन भर चाय की दुकानों पर गपबाजी करने वाले और सपा, बसपा, कांग्रेस व भाजपा नेताओं की ऐसी की तैसी करनेवाले मुक्त कंठ से आज कल कालेधन के विशेषज्ञ बने फिरते हैं। हालांकि जिनको खेती के बीज, खाद, सिंचाई और घर में शादी व बीमारी जैसे आयोजनों से ज्ाूझना पड़ रहा था, उनकी हालत कुछ और ही थी। वे दबी ज्ाुबान मोदी को बददुआएं ही दे रहे थे। ऐसे ही एक परिचित ने कहा कि काला धन आयेगा तब तक हम जहन्नुम चले जायेंगे। आज ऐटीएम की लंबी कतार में पैंसठवें नम्बर पर खड़ा हो बचपन से साथ पढ़ते समय पहले और दूसरे के अलावा तीसरे आने पर पढ़ाई की रफ्तार बढ़ा देता था। उसे पहली बार मायूस देखा। क्या करें बन्धु, अपना पैसा, अपनी कमाई और अपनी मेहनत की पूंजी को बाहर लाने में ये मशक्कत पड़ेगी, कभी सोचा भी नहीं था। तीन दिनों से लाइन में लगता हूँ। नंबर आते तक कैश ख़त्म हो जाता है, आज भी लगता है हो नहीं पायेगा ? तेरे पास एक दो हजार है तो काम चला दे ,आज का काम तो निकले। वो लगभग रुआंसा हो चला था। मंगलवार को बेंगलुरु में जिस तरह से भारतीय रिजर्व बैंक के एक बड़े अधिकारी की गिरफ्तारी हुई, वह बताता है कि भ्रष्टाचार का जाल कितना फैला हुआ है। इस अधिकारी को डेढ़ करोड़ रुपये की नई मुद्रा को पुरानी मुद्रा से बदलने के लिए गिरफ्तार किया गया था। यह मामला अब तक पकड़े गए ऐसे मामलों से कहीं ज्यादा गंभीर है। एक तो इसलिए कि जिस अधिकारी को पकड़ा गया, वह काफी वरिष्ठ है और दूसरे इसलिए कि रिजर्व बैंक ऐसा बैंक नहीं है, जो आम लोगों से पैसे का लेन-देन करता हो और उसमें कुछ हेरा-फेरी कर दी गई हो। रिजर्व बैंक की भूमिका उन व्यावसायिक बैंकों तक नकदी पहुंचाने की है, जो आम लोगों, व्यापारियों, कंपनियों आदि से लेन-देन करते हैं। ऐसे में, अगर रिजर्व बैंक का एक अधिकारी ही घपले में शामिल है, तो इसका अर्थ है कि इस गड़बड़ी के तार कई जगहों से जुड़े हैं। नोटबंदी से अंत में आम लोगों को ही फायदा मिलेगा, इस बात में शायद ही किसी को संदेह हो, लेकिन यह भी सच है कि अभी तक इसने आम लोगों को ही सबसे ज्यादा परेशान किया है। इसका एक कारण नई नकदी की कमी तो है ही, साथ ही यह भी है कि यह काम हमें उसी तंत्र से करवाना है, जो काले धन की अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी की भूमिका निभाता रहा है। रिजर्व बैंक द्वारा छापी गई जिस नई नकदी को लोगों की जेब में पहुंचना चाहिए था, अगर वह उसकी जगह कुछ खास लोगों की तिजोरियों में पहुंच रही है, तो यह चीज अपने आप में बहुत कुछ कहती है। इसका हम अगर ठीक से अध्ययन करें, तो समझ सकेंगे कि हमारी बैंकिंग व्यवस्था की वास्तविक प्राथमिकता कहां है, धन का प्रवाह इस देश में सबसे पहले कहां होता है? यह भी सच है कि अर्थव्यवस्था में जितनी नकदी होनी चाहिए, उसकी एक तिहाई ही इस समय पहुंच सकी है। नकदी की इस किल्लत ने भी समस्या को बढ़ाया है। चूंकि नकदी की किल्लत है, इसलिए इस समय उसकी ही कालाबाजारी हो रही है और उसकी ही जमाखोरी। जब सोने से लेकर जमीन-जायदाद, सबके दाम गिर रहे हों और आगे भी गिरते रहने की आशंका हो, तो नकदी पास में रखना ही बहुत से लोगों को ज्यादा फायदेमंद लग सकता है। लेकिन एक और बात ध्यान देने की है। अगर एक सरकारी व्यवस्था के कुछ लोग इस घपले में शामिल हैं, तो वह भी एक सरकारी व्यवस्था ही है, जो ऐसे घपलों को उजागर कर रही है और घपलेबाजों की धर-पकड़ कर रही है। यह काम किन्हीं एक-दो जगहों पर नहीं, देश भर में हो रहा है। इससे यह उम्मीद तो बंधती ही है कि ऐसी गड़बड़ियां बहुत आगे नहीं जाएंगी और नई नकदी ने पुरानी की जगह ले ली, तो चीजें बहुत कुछ सामान्य होने लगेंगी। जहां तक काले धन का मामला है, तो इसके खिलाफ लड़ाई सिर्फ इतने से खत्म नहीं होगी। यह लड़ाई अभी काफी लंबी चलेगी और इसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं।

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