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भगवान शिव चमत्कारी मंत्र

भगवान शिव को बिल्वपत्र अत्यंत प्रिय हैं। पौराणिक मान्यता है कि जो भी सच्चे मन एवं श्रद्धा से भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पित करता है, उसके रोग, शोक, संकट नष्ट हो जाते हैं।  शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने के अनेक कारण हैं और इसे लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। बिल्वपत्र मूलत: शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है।  इन नेत्रों से भगवान शिव भूत, भविष्य और वर्तमान - सब पर नजर रखते हैं। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से वे जीवन में समृद्धि, शांति और शीतलता लाते हैं।  अगर बिल्वपत्र प्रेम सहित अर्पित किया जाए तो शिवजी अपने भक्त से यह भेंट अवश्य स्वीकार कर लेते हैं। भगवान शिव को यह चमत्कारी मंत्र पढ़ते हुए बिल्वपत्र चढ़ाने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥ दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥ त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥ अखण्ड

सोनिया का इटली का वह घर

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'फोर्ब्स' पत्रिका ने दुनिया की ताकतवर महिलाओं की सूची में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी को छठे स्थान पर रखा है. सोनिया इस सूची में अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा से एक पायदान ऊपर हैं.    इटली का एक छोटा सा शहर तुरीन और उसका गाँव ओवासान्यो. नौ दिसंबर, 1946 को मध्यमवर्गीय माइनो परिवार में सोनिया का जन्म हुआ. यही है सोनिया का वह घर जहाँ उनका बचपन बीता और वह पली बढ़ीं.

आध्यात्मिक इंदिरा गांधी

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बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि जनता पार्टी के शासनकाल में श्रीमती इंदिरा गांधी पूरी तरह आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो गई थीं। उन दिनों सुबह-सवेरे के नित्यकर्मों से विमुक्त होने के बाद वे लगभग एक घंटे तक  योगाभ्यास  करती थीं और तत्पश्चात मा आनंदमयी के उपदेशों का मनन। सुबह दस बजे से लेकर बारह बजे के मध्य वे आगंतुक दर्शनार्थियों से मिलती थीं।  इन अतिथियों में विभिन्न प्रदेशों के कांग्रेसी नेताओं के अतिरिक्त कतिपय साधु-संत भी होते थे। अपनी उन भेंट-मुलाकातों के मध्य आमतौर पर श्रीमती गांधी के हाथों में ऊन के गोले और सलाइयां रहती थीं। अपने स्वजनों के लिए स्वेटर आदि बुनना उन दिनों उनकी हॉबी बन गई थी।  एक बजे के लगभग भोजन करने के बाद वे घंटेभर विश्राम करती थीं। विश्राम के बाद अक्सर वे पाकिस्तान के मशहूर गायक मेहंदी हसन की गजलों के टेप सुनती थीं। रात में बिस्तर पर जाने के पहले उन्हें आध्यात्मिक साहित्य का पठन-पाठन अच्छा लगता था।  इस साहित्य में मा आनंदमयी के अतिरिक्त स्वामी रामतीर्थ और ओशो की पुस्तकें प्रमुख थीं। ओशो के कई टेप भी उन्होंने मंगवा रखे थे, जिनका वे नियमित रू

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घर की बात घर में ही रहे तो बेहतर

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची विकास की हड़बड़ी में वास्को डि गामा बने नेताजी को हर जगह बस एक ही राग सूझ रहा है. जवाब में जनता भी टेप रिकॉर्डर की तरह तालियां बजा रही है. बीच-बीच में कोरस ध्वनि में हौसला बढ़ाती गूंज भी सुनायी देती है. ऐसे में नेताजी को खुशफहमी होना लाजिमी है.    लेकिन काका सरीखे लोगों को यह तनिक भी नहीं भा रहा. उनका मानना है कि अपने घर की बात घर की चहारदीवारी में ही रहे तो मान-मर्यादा बची रहती है.    हम अपनी गंदगी का ढिंढोरा बाहर पीटने लगेंगे, तो बाहरवाले बस मजा लेंगे. अपने सदाबहार भाषणों से रॉकस्टार को मात देते नेताजी जब कहते हैं कि गंदगी करनेवाले गंदगी करके चले गये, अब उसे साफ करने के लिए उन्होंने भारत में स्वच्छता अभियान चला रखा है, तो कहीं न कहीं वह अपने घर की छवि धूमिल करते ही नजर आते हैं.   लोकतांत्रिक देशों में कहां नहीं विरोधियों के खिलाफ जहर उगला जाता है? हर जगह विपक्षी नाक में दम किये रहते हैं, लेकिन उनके नेता बाहर जाकर देश का महिमामंडन ही करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी उनके नेता हैं, तो उनसे सीख भी लेनी चाहिए. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत

क्या खूब उल्लू बनाते हैं जनाब!

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची किसान का दर्द कौन नहीं जानता, अर्थात् सभी जानते हैं. या यूं कहिए कि जानने का दावा करते हैं. आखिर क्यूं न करें? दावा करने में कुछ लगता जो नहीं. कभी विदेश से काला धन वापस ला कर हर व्यक्ति को 15-20 लाख रुपये देने का दावा भी तो यूं ही किया गया था. आज भी 56 इंच के सीनेवाले के उस ओजस्वी भाषण की याद आती है, तो कानों में मिसरी सी घुलने लगती है. अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि जिस दिन भारतीय जनता पार्टी को मौका मिलेगा, हिंदुस्तान की एक-एक प ाई वापस लायी जायेगी और देश के गरीबों के कल्याण के काम में लगायी जायेगी. उस समय किसी ने काला धन कितना है, कैसे लायेंगे, यह सवाल नहीं किया था. जादुई चुनावी अभियान में सारे तथ्य बेमानी हो गये थे. दावे पर भरोसा करके लोगों ने जी खोल कर भाजपा को वादा निभाने का मौका दिया, लेकिन मोदी जी ने अपने ‘मन की बात’ में गरीबों की आशाओं पर पानी फेर दिया. कहा कि काला धन कितना है, उनको नहीं पता. पिछली सरकार को भी नहीं पता था. यदि ऐसी ही बात थी तो बड़े-बड़े दावे क्यों किये? खैर मोदीजी न सही, पर उनके सिपहसालार अमित शाह ने मा

करो कम, नगाड़ा बजाओ जमकर

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची बॉस लोग बेवजह फजीहत करने लगे हैं. बात बेबात फींचने लगे है. लगता है मार्च का महीना कपार पर आ गया है. अप्रेजल टाइम हो और आपके बॉस बिना बात के आपको डांटे नहीं. ऐसा होते कम से कम हमने तो नहीं देखा. इसलिए हमने भी ठान लिया है कि अब गुजरात मॉडल का सहारा लिये बिना कोई चारा नहीं है. वरना पिछली बार की तरह इस बार भी बाबा जी के ठुल्लू से ही संतोष करना पड़ेगा. अरे भाई गुजरात मॉडल नहीं जानते ? इसे तो अब अपना बराक भी जान गया है. गुजरात का मॉडल यह है कि करो जितना भी, नगाड़ा बजाओ जमकर. इसे अपने भाई लोग दूसरी तरह भी समझाते हैं, लेकिन उसे लिखना मुनासिब नहीं है.  खैर पते की बात यह है कि गुजरात मॉडल अपनाकर आप फेल नहीं हो सकते है. भले ही आपका परफॉर्मेस कैसा भी हो. अपने कई शब्दकोषी भाई बंधु तो नगाड़े की बदौलत ही चांदी काट रहे हैं. यह मॉडल आजकल सफलता की कुंजी माना जा रहा है. अब तो इस मॉडल को उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्य भी अपनाने लगे हैं. इनका मानना है कि नगाड़ा बजाने यानी पब्लिसिटी पर पूरा जोर देने की जरूरत है. गुरु घंटालों का कहना है कि गुजरात में मीडिया को