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क्या आप जानना चाहेंगे, किस उम्र में शादी करनी सबसे सुखद होगी, तो पढ़िये यह रिसर्च रिपोर्ट

Lokenath Tiwary (लोकनाथ तिवारी) भाई साहेब आप शादीशुदा हैं, जी नहीं वैसे ही दुखी हूं. बगैर शादी किये दुखी हैं और शादी के लड्डू का स्वाद लेना चाहते हैं तो यह रिसर्च आपके लिए ही की गयी है. आप शादी करने जा रहे हैं या शादी की सफलता को लेकर चिंतित हैं. फिर आपको इस शोधपरक रिपोर्ट को अवश्य पढ़ना चाहिए. अमेरिका के एक विश्वविद्यालय की ओर से अलग-अलग उम्र में शादी करनेवालों की शादी की असफलता और तलाक लेने के आंकड़ों पर रिसर्च कर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि शादी करने की कौन सी उम्र सबसे अच्छी है. कौन सी उम्र में शादी करना ज्यादा खतरनाक है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ ऊटा में किये गये रिसर्च के अनुसार शादी के लिए 30 से 34 साल की उम्र सर्वोत्तम होती है. इस उम्र में शादी करनेवाले जोड़े का पहले पांच वर्ष में तलाक होने की संभावना सबसे कम यानी 10 फीसदी होती है. 35 वर्ष या इससे अधिक उम्र में शादी करनेवालों में विच्छेद होने की संभावना 17 फीसदी होती है. अर्थात ऐसे लोगों में तलाक की संभावना 7 फीसदी बढ़ जाती है. ऊटा विश्वविद्यालय में सात साल के शोध बाद यह आंकड़ा हासिल हुआ है. इस र

तबाही की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान, फिर कैसे शांति से रह सकता है हिंदुस्तान

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हमारे जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान अगर किसी के लिए होता है तो वे हैं हमारे पड़ोसी, जिनको चाहकर भी हम बदल नहीं सकते. हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शायद पड़ोसियों से परेशान होकर या उनके प्रति अपना अगाध प्रेम प्रदर्शित करने के लिए ही कहा होगा कि आप मित्र तो बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते. हमारा देश भी पड़ोसियों के मामले में भाग्यहीन ही है. सबसे करीबी पड़ोसी पाकिस्तान तो तबाही की ओर बढ़ता हुआ देश घोषित किया गया है. फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स 2017 में पाकिस्तान 18वें पायदान पर है. वह भी इस साल स्थिति में सुधार होने के बाद. फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स में ऐसे देशों को शामिल किया जाता है, जिन्हें खुद की सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए. यदि आतंकवादी पाक पर पकड़ बना लेते हैं तो यह सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं, बल्कि विश्व के लिए भी खतरनाक होगा. पाकिस्तान के शासकों को देश को इस खतरे से बचाने के लिए व्यापक नीति बना कर अमल में लाने की दिशा में प्रयास शुरू कर देना चाहिए. पाकिस्तान के बारे में तो क

गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में

गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) ’वैलेंटाइन डे’ का मौसम शुरू हो गया है। कुछ देकर दिल लेने या देने की परंपरा हमारे देश में कहाँ से आई, इसका कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं मिल पाया है। ’रोज डे’, ’प्रपोज डे’, ’चॉकलेट डे’, टेडी बीयर डे, ’हग डे’ और ’किस डे’ के बाद वैलेंटाइन डे का बहुप्रतीक्षित दिवस आता है। इन दिनों को माध्यम बनाकर प्रेमी युगल एक दूसरे के प्रति अपने दिल की भावनाओं को उजागर करते हैं। हाँ, इसके पहले कुछ न कुछ देकर अपनी सुरक्षा पुख़्ता करने की कोशिश जरूर की जाती है। स्वयंभू प्रेमगुरुओं का मानना है कि पहले किसी के समक्ष प्रेम का इजहार करना खतरे से खाली नहीं होता था। पता नहीं कब लेने के देने पड़ जाए। कुछ देकर खुश करने के बाद अपने दिल की भावनाओं को जुबान देने में कम खतरा होता है। पहले तो चिट्ठियों के माध्यम से दिल की बात कही जाती थी, जिसमें बहुत खतरा भी होता था। खत के साथ गुलाब या गेंदे का फूल भी होता था। साथ में यह करबद्ध अनुनय विनय भी होती थी कि इसे अपने भाई, पिता या काका के हाथ में नहीं पड़ने दें। भले ही प्रेम प्रस्ताव ठुकराकर राखी बाँधने की नौबत आ

आखिर जवाब दे गया खड़ाऊं वंदन

आखिर जवाब दे गया खड़ाऊं वंदन लोकनाथ तिवारी सैकड़ों कीमती सैंडल पहननेवाली तमिलनाडु की अम्मा अब जन्नतनशीं हो गयी हैं। आप सोच रहे होंगे कि उनके सैंडल अनाथ पड़े कहीं ध्ाूल फांक रहे होंगे। ऐसी कल्पना कर दुखी होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इन सैडलों की चरणध्ाूलि लेनेवालों की तमिलनाडु की धरा पर कोई कमी नहीं। अपने पन्नीरसेल्वम तो उनके अनाथ पड़े सैंडल को तख्त पर विराजमान कर दिये थे। जिस तरह राम जी के वनवास गमन के बाद भरत ने उनके खड़ाऊं को सिंहासन पर रख अयोध्या पर राज किया उसी तरह से अम्मा के सैंडल को तख्त पर रख कर यह बंदा भरत सरीखा फर्ज अदा करने में व्यस्त रहा। अम्मा के जेल जाने से लेकर बीमार होने और उसके बाद अकाल स्वर्गवासी होने तक  उनके फैन्स बिलख-बिलख कर रोते रहे। अम्मा के अकाल प्रयाण पर इनका रोना जायज भी है। इस कुनबे के मंत्री भी रोने में हम किसी से कम नहीं की तरह कम्पीटिशन लगाये रहे। कैमरे व मीडिया के सामने तो इनकी आंसुओं की धार गंगा, जमुना, घाघरा, नर्मदा सहित कई नदियों को पानी-पानी करने के लिए काफी था। सबसे अधिक बिलखनेवाले पन्नीरसेल्वम को पूर्व की भांति ताज मिला। अपने पन्नीरसेल्वम के बारे म

वादा पे तेरे मारा गया...

वादा पे तेरे मारा गया... हर च्ाुनाव के पूर्व राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन वादे करती हैं। पढ़े लिखे समझदार होने का दावा करने वाले सीधे सादे बंदे इन वादों पर अपना वोट वार देते हैं। माना जाता है कि चुनाव के हर मौसम की एक थीम होती है। अक्सर कोई एक मुद्दा होता है, जिस पर चुनाव लड़े जाते हैं। या फिर कुछ वादे होते हैं, हर बार चर्चा का कोई एक मामला तो होता ही है, जिसके आस-पास चुनाव होते हैं। इस बार के विधानसभा चुनावों की थीम है- देसी घी। कम से कम पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश तक चुनाव देसी यानी शुद्ध घी और उसके वादे के आस-पास लड़े जा रहे हैं। शुरुआत पंजाब से हुई। वहां भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में कहा कि उनका गठबंधन अगर सत्ता में आया, तो निम्न वर्ग के नीले राशन कार्डधारकों को 25 रुपये प्रति किलो की दर से देसी घी दिया जाएगा। यह मामला दिलचस्प इसलिए है कि पंजाब के इस गठजोड़ में भाजपा दूसरे नंबर की सहयोगी है, पहले नंबर का या नेतृत्व करने वाला बड़ा सहयोगी अकाली दल है, जिसने अपने चुनाव घोषणापत्र में हर गांव में मुफ्त वाई-फाई और क्लोज सर्किट टीवी की बात तो की, लेकिन देसी घी उसमें कहीं नहीं था। बाद में

हमारे संस्कृति प्रेमी योद्धा

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) संस्कृति प्रेमी योद्धाओं के समर्थन में सड़कछाप ज्ञानियों व बयानवीरों की फौज मुखर हो गयी है। उन्हें शायद यह नहीं पता कि जयपुर के जयगढ़ किले में करणी सेना के लोगों ने फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट करके राजस्थान की उस महान सांस्कृतिक दृष्टि का अपमान किया है जो अपने संगीत और कलाप्रेम के लिए पूरी दुनिया में पहचानी और सराही जाती है। उन्होंने निर्माणाधीन फिल्म ‘पद्मावती’ की उस स्वघोषित स्क्रिप्ट को लेकर फिल्म यूनिट के खिलाफ हिंसा का रास्ता चुना जिसे वह जानते तक नहीं थे। इससे वह सभी जगहों पर हास्य के पात्र भी बने हैं। कलाकार की वह रचना जो अभी सामने ही नहीं आई, जिसके स्वरूप के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं, उसपर इस तरह का विरोध सरासर नाजायज ही कहा जाएगा।  भंसाली प्रॉडक्शन्स ने स्पष्ट कहा है कि फिल्म की पटकथा में पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच कोई रोमांटिक दृश्य नहीं है। भंसाली प्रॉडक्शन ने साफ किया कि पद्मावती और खिलजी के किरदारों के बीच कोई भी आपत्तिजनक या फिर रोमांटिक सीन नहीं फिल्माया गया है। जब फिल्म बनकर रिलीज होती और फिर यह बात सामन

सम्मान दें बजुर्गों के तजुर्बे को

लोकनाथ तिवारी (लोकनाथ तिवारी) बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है।’ किसी ने सच ही कहा है: ‘फल न देगा न सही, छाँव तो देगा तुमको। पेड़ बूढ़ा ही सही, आंगन में लगा रहने दो।’ बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं। बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं। वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं। जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है। एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था। आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी निष्ठुर और कर्तव्यहीन हो गई है। जिसका खामिया