फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-1

"मैं फूलन देवी हूँ भेनचोद.. मैं हूँ।"




बेंडिट क्वीन फ़िल्म का यह पहला संवाद है, जो दर्शक के कपाल पर भाटे की नुकीली कत्तल की माफिक टकराता है। अगर दर्शक किसी भी तरह के आलस्य के साथ फ़िल्म देखने बैठा है, या बैठा तो स्क्रीन के सामने है और मग़ज़ में और ही कुछ गुन्ताड़े भँवरे की तरह गुन गुन कर रहे हैं, तो सब एक ही झटके में दूर छिटक जाते हैं। दर्शक पूरी तरह से स्क्रीन पर आँखें जमाकर और मग़ज़ के भीतर के भँवरे पर काबू पाकर केवल फ़िल्म देखता है और फ़िल्म यहीं से फ्लैश बैक में चली जाती है।



स्क्रीन पर नमुदार होते हैं, चप्पू के हत्थे को थामें मल्लहा के हाथ, और फिर पूरी नाव। नाव चंबल की सतह पर धीरे से आगे खिसकती है, अपनी गोदी में आदमी, औरत, बच्चे, पोटली, ऊँट और भी बहुत कुछ मन के भीतर का, जो नाव में सवार चेहरों पर दिखता है। शायद काम की तलाश, शायद गाँव को छोड़ने का दुख और भी कुछ। दर्शक इन्हीं चेहरों में खोजता है ख़ुद को और कुछ सोचने की तरफ़ बढ़ता है कि भूरे, मटमेले, ऊँचे बीहड़ों में से निकलता है बकरियों का एक झुण्ड। नदी किनारे आते झुण्ड के पीछे चल रहे हैं एक दाना (बुजुर्ग) और किशोर। यह पूरा दृश्य दर्शक के मन में रोज़गार के अभाव और विस्थापन की त्रसदी की चित्रात्मक कहानी बुनता है।



फिर आता है एक बच्ची की हाँक में एक बच्ची को बुलावा- फूलन … ए फूलन…



वह 1968 की एक दोपहर थी, जिसमें फूलन को पुकार रही थी एक बच्ची, जो शायद उसी की बहन थी। लेकिन ग्यारह बरस की फूलन अपनी सखियों के साथ नदी में किनारे पर डुबुक-डुबुक डूबकियाँ लगा रही थीं। वे केवल नहा नहीं रही थी, बल्कि सब सखियाँ मिलकर नदी में एकदूसरी के साथ और नदी के पानी के साथ खेल रही थीं। एकदम निश्चिंत और उन्मुक्त। शायद ये बेदधड़कपन और उन्मुक्तता चंबल के पानी में घुला कोई तत्व था, जो फूलन के भीतर कुछ ज़्यादा ही मात्रा में घुल गया था।



इस बार हाँक थोड़ी नज़दीक से और कुछ ज़ोर से आयी- फूलन…. ए फूलन…



फूलन ने देखा अपनी बहन के साथ और वहीं से पूछा- कईं है………..



तो के बुला रये ..

काई …?

मोके ना मालुम…



नदी से बाहर आती फूलन सरसों की एक कच्ची फली की तरह नन्हीं लगती है, लेकिन सवालों से भरी आँखें बोलती लगती है। फूलन के नदी से बाहर आने और घर पहुँचने के बीच, फ़िल्म में यह स्थापित किया जा चुका होता है कि फूलन को उसका पति पुत्तीलाल लेने आया है। पुत्तीलाल की उम्र क़रीब 27-28 बरस है। फूलन की माँ अनुरोध करती है कि अभी मोड़ी ग्यारह बरस की ही है। कुछ महीने बाद गौना कर देंगे। लेकिन पुत्तीलाल नहीं मानता है। अपनी माँ के बूढ़ी होने की वजह से काम न कर पाने का हवाला देता है। कहता है कि उसे मोड़ियों की कमी नहीं है। यही नहीं, बल्कि रिश्ता तोड़ने की भी धमकी देता है। फूलन का पिता भी समझाता है, लेकिन जब पुत्तीलाल नहीं मानता और किसी कर्ज़ माँगने वाले की तरह बात करता है। उसे दी गयी गाय को खूँटे से छोड़ लेता है। तब फूलन के पिता कहते हैं – ले जाने दे, अपन को कौन मोड़ी को घर में रखना है। और कोई ऊँच-नीच हो गयी तो … आदि..आदि चिंताएँ व्यक्त करता है। अंततः ग्यारा बरस की फूलन को 27-28 बरस के पुत्तीलाल के साथ रवाना कर दी जाती है।



फूलन का माँ-बाप से अलग होना और पुत्तीलाल के साथ जाने का दृश्य बहुत ही मार्मिक है। जैसे कोई गाय का दूध धाहती बछड़ी को स्तनों से अलग खींचता है और वह दौड़कर फिर स्तन को मुँह में ले लेती है। लेकिन जब बछड़ी स्तन को मुँह में लेने जाये और गाय भी उसे लात या भिट मारने को विवश हो जाये, तब दोनों ही पर क्या गुज़रती होगी, जबकि उस वक़्त उसे स्नेह के दूध की बेहद ज़रुरत होती है। दर्शक के मन में यही दृश्य उभरता है।



जब ससुराल पहुँचती है। फूलन गाँव के बीच के कुए पर गारे का हण्डा लेकर पानी भरने जाती है। अभी भी कई गाँव में दबंगों और नीची समझी जाने वाली जाती के लोगों के पानी के कुए अलग-अलग होते हैं। लेकिन फूलन की ससुराल में 1968 में भी ठाकुर और मल्लाह का एक ही कुए से पानी भरना बताया है। एक कुए से पानी भरते हैं, लेकिन एक दूसरे के बर्तनों को आपस में छूने से बचाते हैं। पानी खींचने की रस्सी, बल्टी भी अलग रखते हैं। लेकिन जब ग्यारह बरस की बहू को पता नहीं होता है, और अनजाने में या भूल से वह ठाकुर वाली बाल्टी को छूने लगती है, तो कुए से पानी भरने वाली ठकुराइने वहीं उसे घुड़क देती है और वह दूसरे छोर से, दूसरी रस्सी,बाल्टी लेकर कुए से पानी खींचती है। पानी लेकर चलती है, तो उसका हम उम्र मोड़ा और मोड़ों के साथ मिलकर उसका हण्डा फोड़ देता है। फूलन हण्डा फोड़ने वालों पर ज़ोर से चिल्लाती है, उसका चिल्लाना ठकुराइनों के कान खड़े कर देता है।



जब बग़ैर पानी लिए घर पहुँचती है, तो सास हण्डा फूटने की बात को लेकर डाँटती है। फूलन का सास के सामने भी वही तेवर बरकरार होता है। वह सास को ताना मारती है- गारे का हण्डा टूट गया, तो पीतल का लाओ, जैसे ठकुराइनों के पास है।

सास को यह ताना गचता है। गचना स्वाभाविक भी है, क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति ठाकुरों की बराबरी करने की नहीं होती है। सास कहती है- बहुत जबान चलती है, बुलाऊँ पुत्तीलाल को..



पुत्तीलाल फूलन को इस बात पर मारता है। वही पुत्तीलाल रात में ग्यारह बरस की फूलन के साथ बलात्कार करता है। पुत्तीलाल के इस कृत्य ने फूलन के जीवन में किसी भी तरह के सुख की संभावना को जैसे पोंछ दिया था। उस घटना से फूलन के मन में पुरुष के प्रति जो घृण का रिसाव हुआ, वह पूरी फ़िल्म में कई जगह प्रकट होता है। फूलन भागकर माइके आ जाती है। पुत्तीलाल से रिश्ता ख़त्म हो जाता है।

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