झरिया एक्शन प्लान-बहुआयामी योजना को सरकार की हरी झंडी

झरिया एक्शन प्लान-बहुआयामी योजना


लोकनाथ तिवारी

बहुप्रतीक्षित झरिया एक्शन प्लान को इन्फ्रास्ट्रक्चर कैबिनेट कमेटी की मंजूरी मिल गई है। झरिया और रानीगंज कोलफील्ड में छिपे बहुमूल्य कोकिंग कोल के भंडार को निकालने, यहां पर बसे लाखों लोगों के पुनर्वास, भूगर्भ खदानों में लगी आग को बुझाने तथा इस क्षेत्र के विकास के लिए यह योजना अति महत्वपूर्ण है।



सर्व प्रथम इस योजना का प्रस्ताव वर्ष 1999 में किया गया और कोयला मंत्रालय इसे केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए भेज दिया था। राज्य सरकार ने भी इस योजना को गत वर्ष मंजूरी दे दी थी।



इस योजना के तहत भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) और ईस्टर्न कोलफील्ड्स (ईसीएल) क्षेत्र में बसे लोगों का पुनर्वास, बुनियादी सुविधाओं का विकास और खदानों में लगी आग को बुझाने के लिए अनुमानित 9657.61 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसमें से 7028.40 करोड़ रुपए झरिया कोलफील्ड और 2629.21 करोड़ रुपए रानीगंज कोलफील्ड क्षेत्र के विकास पर खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा विभिन्न एन्वायरमेंटल मेजर एंड सब्सिडेंस कंट्रोल (ईएमएससी) स्कीम के लिए 116.23 करोड़ रुपए पहले ही दिए जा चुके हैं।



यह किसी भी सरकारी कम्पनी द्वारा शुरू की जाने वाली सबसे बड़ी पुनर्वास व मुआवजा प्रदान करने की योजना है जो वर्ष 1999 से ही सरकार के अनुमोदन के लिए अटकी पड़ी थी। इसे पूरा करने मंें 10 वर्षों का समय लगेगा।



इस योजना के तहत लगभग 5,00,000 लोगों को झारखंड के झरिया क्षेत्र के खतरनाक इलाके से निकालकर पुनर्वास किया जाएगा। इस योजना के क्रियान्वयन से 13 बिलियन टन कोयला (जिसमें 1,464 मिलियन टन कोकिंग कोल है) के खनन में मदद मिलेगी जो कोल इंडिया की सहायक कम्पनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) और ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) के अधीन है।



कोल इंडिया के चेयरमैन पी. एस. भट्टाचार्य ने कहा कि यह दुनियां की सबसे बड़ी पुनर्वास योजना है, जिसमें लगभग 5,00,000 लोगों को उचित आवास व परिवेश मुहैया कराया जाएगा। कम्पनी इस खतरनाक क्षेत्र में रहने वाले 78,000 से अधिक परिवारों को सुरक्षित क्षेत्र में बसाएगी।



बीसीसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस योजना की मंजूरी कम्पनी के दीर्घकालिक हित में है। झरिया कोलफील्ड के विकास से इस्पात कम्पनियों को न केवल बहुमूल्य कोकिंग कोल आसानी से उपलब्ध होगा बल्कि इससे बीसीसीएल का भी पुनरुद्धार होगा जो विकास के लिए सतत प्रयास कर रही है।



झरिया को आबादी से मुक्त करने से भारी पैमाने पर कोकिंग कोल का उत्पादन किया जा सकेगा। लोगों के विस्थापन से बीसीसीएल ओपेन कास्ट खनन कर सकेगी जो फिलहाल भूगर्भ खनन करती है। इससे कम्पनी की 62 खदानों में से 41 खदानें नुकसान में चल रही हैं, जिनको प्रति टन 1,000 रुपए का नुकसान हो रहा है।



बीसीसीएल के कर्मचारियों के अलावा इस योजना के अंतर्गत इस क्षेत्र में स्थित उद्योगों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को हटाकर सुरक्षित इलाके में ले जाया जाएगा। पश्चिम बंगाल के रानीगंज इलाके का कुछ क्षेत्र भी इस योजना में शामिल किया गया है। वहां से भी लोगों को हटाया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार झरिया इलाके में छिटपुट विरोध किया



बीसीसीएल के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक टी. के. लाहिड़ी के अनुसार इस तरह के कार्यक्रमों की सफलता के लिए राजनैतिक आमसहमति बनाकर जागरुकता फैलानी चाहिए, जिससे लोगों को इस कार्यक्रम से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दी जाए।



गौरतलब है कि झरिया के लगभग 67 कोल ब्लॉकों में आग लगी हुई है, तथा इस क्षेत्र की आबादी 4,00,000 लाख से अधिक है। आग को बुझाने तथा खनन शुरू करने के लिए यहां स्थित लोगों को अन्यत्र बसाए जाने की जरूरत होगी। इसे ध्यान में रखकर झरिया एक्शन प्लान नामक इस कार्य योजना का निर्माण किया गया। वैज्ञानिक तरीके से खनन शुरू करने के बाद ही खदानों में आग बुझाई जा सकेगी। कोल इंडिया के एक अधिकारी के अनुसार झरिया एक्शन प्लान के क्रियान्वयन से कोल इंडिया ऐसी स्थिति में आ सकेगी जिससे देश की इस्पात मिलों की कोकिंग कोल की जरूरतों को पूरा किया जा सके।



कम्पनी का अनुमान है कि झरिया एक्शन प्लान के लागू होने के 10 वर्षों में आग पर काबू पा लिया जाएगा तथा वर्ष 2020 से उत्पादन शुरू हो जाएगा। कम्पनी नौ ओपेन कास्ट कोयला खदानों में कार्य शुरू करेगी जिससे इस्पात उद्योग की जरूरतों को पूरा किया जा सके। उन्होंने कहा कि यदि कार्य योजना को वर्ष 2031 तक लागू कर दिया जाए तो घरेलू इस्पात उद्योग की 50 फीसदी जरूरतों को पूरा कर लिया जाएगा।



इस्पात कम्पनियां

भारतीय इस्पात कम्पनियों की उत्पादन क्षमता विस्तार की योजना के मद्देनजर देश में कोकिंग कोल की मांग बढ़ेगी। वर्तमान समय मेंे इस्पात कम्पनियां अपनी कोकिंग कोल की जरूरतों का अधिकांश भाग आयात के जरिए पूरा करती हैं, लेकिन अनुमान है कि निकट भविष्य मे देश में कोकिंग कोल के उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।



भारत की सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कम्पनी स्टील ऍथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार झरिया कोल फील्ड में 2.8 बिलियन टन कोकिंग कोल का भंडार है। स्टील का उत्पादन वर्ष 2011-12 तक बढ़कर 65 मिलियन टन होने की संभावना के साथ ही कोकिं ग कोल की वार्षिक मांग लगभग 45 मिलियन टन हो जाएगी।



देश में घरेलू कोयले का भंडार 93 बिलियन टन है जिसका 13 फीसदी भाग ही कोकिंग कोल है तथा शेष थर्मल कोल है। इसमें से 28 फीसदी प्राइम कोकिंग कोल और शेष मीडियम और सेमी कोकिंग कोल है। एक ब्लास्ट फर्नेस में 70 फीसदी प्राइम और 30 फीसदी मीडियम कोकिंग कोल है।



भारतीय इस्पात उद्योग के विकास में सबसे बड़ी बाधा प्राइम कोकिंग कोल की अनुपलब्धता है। वर्तमान योजना के अनुसार कोकिंग कोल का उत्पादन 8 मिलियन टन से बढ़ाकर वर्ष 2024-25 तक 18 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा गया है जबकि इस्पात उद्योग की मांग 97 मिलियन टन की होगी। मांग व आपूर्ति को देखते हुए झरिया एक्शन प्लान का महत्व बढ़ जाता है।



झरिया कोल फील्ड में स्थित कोयला उत्पादन की क्षमता को आंकने के लिए हाल का उदाहरण लिया जा सकता है जिसमें आग से प्रभावित धनबाद-पाथरडीह रेलवे लाइन को हटा दिया गया। झरिया कोलफील्ड के इस छोटी सी जगह की खुदाई से वर्ष 2006-07 से अब तक 1 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन हुआ है।



बड़े पैमाने पर पुनर्वास



झरिया एक्शन प्लान पैकेज मेंे कोयला खदानों में लगी आग से प्रभावित क्षेत्रों के पांच लाख लोगों के लिए लगभग 79,179 मकानों का निर्माण सुरक्षित जगहों पर किया जाना है। इस योजना के तहत इन लोगों के लिए सुरक्षित जगहों पर बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। इन क्षेत्रों में लगी आग में से कुछ तो खदानों के राष्ट्रीयकरण के पहले से जल रही है।



खदानों में लगी जानलेवा आग में प्राइम ग्रेड का कोकिंग कोल खाक हो रहा है, जिसमें अबतक लगभग 37 मिलियन टन जल चुका है। इस योजना के मूल भाग में खदानों में लगी आग पर काबू पाना, यहां के लोगों का विस्थापन व पुनर्वास तथा खदानों में ओपेन कास्ट माइनिंग से कोकिंग कोल व कोयले को बाहर निकालना शामिल है।

इस महती योजना के पहले चरण के तहत झरिया से 10 किमी दूर बेलगुरिया बाजार में 46,000 मकानों का निर्माण किया जाएगा। दूसरे चरण में अन्य 34,000 मकान का निर्माण बेलियापुर में बनाया जाएगा जिस पर कुल 20,000 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। झारखंड सरकार लोगों के विस्थापन व पुनर्वास पर सहमत है जबकि कुछ कोयला यूनियनें इसका विरोध कर रही हैं।



झरिया डेवलपमेंट ऍथारिटी के एक अधिकारी ने कहा कि पुनर्वास के दौरान सर्वाधिक संवेदनशील इलाकों में रहने वालों को प्राथमिकता दी जाएगी। नई कॉलोनियों में विद्यालय, अस्पताल और बाजारों का निर्माण भी किया जाएगा। झरिया से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए बेलगुरिया में निर्माणाधीन योजना राज्य सरकार की पायलट परियोजना है।



झारखंड सरकार ने झरिया रीहैबिलिटेशन डेवलपमेंट ऍथारिटी (जेआरडीए) का गठन किया है, जिसका मुख्य कार्य यहां के विस्थापितों के लिए गैर कोयला क्षेत्रों में बेहतर टाउनशिप का निर्माण करना है।



इसके साथ ही बीसीसीएल को अपने कर्मचारियों को भी खतरनाक इलाके से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पुनर्वास करना होगा। जेआरडीए और बीसीसीएल द्वारा इस योजना को हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की मदद से पूरा किए जाने की संभावना है।



धन की उपलब्धता



झरिया एक्शन प्लान के लिए धन की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है। बीसीसीएल की होल्डिंग कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड गत तीन वर्षों से अपनी लाभजनक इकाइयों से प्रति टन 6 रुपए का शुल्क वसूलती है, जिससे झरिया और रानीगंज पुनर्वास योजना का कार्य किया जाएगा।



इससे प्रति वर्ष 400 करोड़ रुपए का संग्रह किया जाता है। हर तरह के कोयले (कोकिंग व नॉन कोकिंग) पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि कर 10 रुपए किया गया है, जो पहले 3.50 रुपए प्रति टन नॉन कोकिंग पर तथा 4.25 रुपए कोकिंग कोल पर था।



इससे प्रति वर्ष 240 करोड़ रुपए जमा होने का अनुमान है। इसके अलावा आग पर काबू पाने की योजना के लिए बीसीसीएल को कार्बन क्रेडिट मिलने की आशा है जिससे क्योटो प्रोटोकॉल की क्लीन डेवलपमेंट मेकेनिज्म के लिए यह क्वालिफाई कर लेगी।

(कोल इनसाइट्स)

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