मदर टेरेसा जन्मदिन व पुण्यतिथि पर विशेष

हर दुखिया के आंसू पोंछती थीं मदर

हर दुखिया के आंखों से आंसू पोछने और हर बेघर को छत दिलाने की हसरत रखने वाली मदर टेरेसा बीसवीं शताब्दी की ऐसी महान विभूति थी जिन्होंने अपनी करूणा को किसी भौगोलिक सीमा में न बांधते हुए भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया तथा पीड़ितों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगाकर यह साबित कर दिया कि वह सही मायने में विश्व नागरिक थीं।मदर टेरेसा ने अपने बारे में एक बार कहा था कि रक्त से मैं अल्बानियाई (जन्मस्थान) हूं। नागरिकता के अनुसार भारतीय हूं। धर्म के अनुसार मैं एक कैथोलिक नन हूं। मेरी धारणा है कि मैं पूरे विश्व की हूं और दिल से मैं पूरी तरह जीसस की हूं। मकदूनिया के स्कोपजे में 26 अगस्त 1910 को जन्मी मदर टेरेसा के सिर से पिता का साया महज आठ साल की उम्र में उठ गया था। घोर आर्थिक कष्टों के बावजूद उनकी धर्म और प्रभु में आस्था बनी रही। परियों और राजकुमार के सपने देखने वाली 12 साल की उम्र में उन्होंने नन बनने का निश्चय कर लिया। यह निश्चिय पूरा हुआ 18 साल की बालिग उम्र में, जब वह ईसाई ननों की आयरिश संस्था सिस्टर्स आफ लारेट में शामिल हुईं। इस संस्था के कुछ मिशन भारत में थे। उन्होंने डबलिन में कुछ समय तक इंस्टीट्यूट आफ ब्लेस्ड विर्जिन मैरी में प्रशिक्षण लिया।मदर टेरेसा ने अपनी कर्मभूमि भारत में पहली बार छह जनवरी 1929 को कदम रखा। उन्होंने 1931 से 1948 तक कलकत्ता के सेंट मैरी हाई स्कूल में अध्यायपन किया। स्कूल की चाहरदिवारी में रहते हुए उनका मन महानगर की मलिन बस्तियों में रहने वाले बीमार, गरीब और असहाय लोगों के लिए भटकता रहता था।मदर टेरेसा ने 1948 में पटना में चिकित्सा संबंधी एक छोटा सा प्रशिक्षण हासिल किया और इसके बाद कलकत्ता लौटकर वह पीड़ितों, रोगियों और असहाय लोगों की सेवा में जुट गयीं। दीन दुखियों की सेवा की ललक को देखते हुए वेटिकन ने उन्हें सात अक्तूबर 1950 को अपना स्वयं का आर्डर खोलने की अनुमति दे दी और इसी के साथ मिशनरीज आफ चैरिटी की शुरूआत हुई। कलकत्ता में महज 12 सदस्यों के साथ शुरू हुई संस्था आज दुनिया में एक विशाल वटवृक्ष की तरह फैल गयी है। इस संस्था की 100 से अधिक देशों में उपस्थिति है और यह 4000 से अधिक अनाथालय चलाती है।इस संस्था के तहत मदर टेरेसा ने तमाम देशों की यात्राएं कर दीन दुखियों की सेवा के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाया। मदर टेरेसा वास्तव में मानवता प्रेमी व्यक्तित्व थीं और यही कारण है कि ईसाई मिशनरी होने के बावजूद उनका कम्युनिस्ट शासन वाले देशों में उसी तरह सम्मान होता था जैसा कि अन्य किसी भी देश में।मिशनरीज आफ चैरिटी के लिए दिल्ली में काम करने वाली सिस्टर शोमेन ने बताया कि इस संस्था के तहत राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के विभिन्न नगरों में बेसहारा एव असहाय लोगों, रोगियों और अनाथ बच्चों की देखभाल की जाती है। उन्होंने कहा कि तमाम आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद संस्था से जुड़े लोग मदर टेरेसा की प्रेरणा से अपने कामों को पूरे उत्साह के साथ करते हैं। सिस्टर शोमेन ने कहा कि मदर टेरेसा को संत का दर्जा मिलने के लिए एक और चमत्मकार को वेटिकन द्वारा मान्यता दिये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी तक कई लोगों ने इस तरह के चमत्कार का दावा किया है। मदर टेरेसा को तमाम राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय एवं धार्मिक पुरस्कारों से नवाजा गया। विश्व जनमत ने जहां उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया वहीं भारत में उन्हें शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।दीन दुखियों के प्रति उनके मन में प्यार और पूरी मानवता के प्रति उनकी करूणा को देखते हुए रोमन कैथोलिक पंथ ने उन्हें संत की पदवी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया के तहत वेटिकन ने 2002 में मोनिका बेसरा नामक एक भारतीय महिला के उस अनुभव को एक चमत्कार के रूप में मान्यता प्रदान कर दी जिसके तहत मदर टेरेसा के चित्र वाला लाकेट पहनने के कारण इस महिला के पेट में कैंसर वाला ट्यूमर समाप्त हो गया।पोप जान पाल द्वितीय ने 2003 में मदर टेरेसा को ‘ ब्लेस्ड टेरेसा आफ कलकत्ता' की उपाधि प्रदान की। कैथोलिक पंथ की मान्यताओं के अनुसार उन्हें औपचारिक रूप से संत का दर्जा दिये जाने के लिए एक और चमत्कार की घटना सामने आनी चाहिए।

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